अनमोल विरासत : भगवान शिव की ‘गुफा’ तथा माई सुंदरां की ‘बाऊली’

punjabkesari.in Friday, Feb 15, 2019 - 04:38 AM (IST)

भगवान भोलेशंकर शिवजी महाराज की गुफा का जिक्र चलता है तो सहज ही मन में अमरनाथ गुफा की तस्वीर उभर आती है। यह बात अधिकतर लोगों की जानकारी में नहीं होगी कि भगवान शिव की एक अन्य गुफा भी बेहद ऐतिहासिक तथा मान्यता प्राप्त है और अलग बात यह भी कि यह गुफा भोले शंकर ने अपने हाथों से बनाई थी। जो जानकारी या इतिहास संबंधित क्षेत्र से सुनने में आया, उसके अनुसार तो लोगों में यह भी मान्यता है कि भगवान शिव अपने परिवार सहित इस गुफा में विराजमान हैं। यह पवित्र गुफा जम्मू क्षेत्र के जिला रियासी में स्थित है और इस स्थान को ‘शिव खोड़ी’ के नाम से जाना जाता है।

इस क्षेत्र के ऐतिहासिक स्थान तथा हालात देखने का अवसर तब मिला जब ‘पंजाब केसरी’ पत्र समूह द्वारा 495वें तथा 496वें ट्रकों की राहत सामग्री बांटने के लिए राजौरी तथा सुंदरबनी जाना हुआ। राहत टीम के सदस्य गुफा के दर्शन करने के लिए बहुत उत्साहित थे। रणसू नामक कस्बे तक सड़क मार्ग से अपने वाहनों में जाया जा सकता है, जबकि इससे आगे 3-4 किलोमीटर तक की चढ़ाई है, जो पैदल ही पूरी करनी पड़ती है। जो लोग पैदल चल कर नहीं जा सकते वे खच्चरों या घोड़ों की सवारी ले लेते हैं। बच्चों तथा महिलाओं के लिए पालकी का भी प्रबंध है।

रमणीक पहाड़ी नजारा है ‘रणसू’
गुफा के आसपास रणसू क्षेत्र में रमणीक पहाड़ी नजारा रूह को सुकून प्रदान करता है। हरियाली भरे क्षेत्र में उस दिन हल्की बूंदाबांदी के बावजूद पक्षी चहक रहे थे। इस क्षेत्र में आबादी बहुत कम है और अधिकतर लोगों की रोजी-रोटी अपने छोटे-मोटे कामों पर निर्भर करती है। रणसू में एक छोटा-सा बाजार है, जिसमें अक्सर गुफा के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की चहल-पहल रहती है, जो न केवल देश के विभिन्न राज्यों से संबंधित होते हैं, बल्कि वहां विदेशी पर्यटक भी आते रहते हैं। उस दिन वहां दक्षिण भारतीय राज्यों से कुछ यात्री बसों तथा कारों के माध्यम से पहुंचे थे। कभी-कभी फिल्मी हस्तियां भी गुफा के दर्शन करने के लिए पहुंच जाती हैं और राजनीतिज्ञ तो हर दिन-त्यौहार के अवसर पर वहां नतमस्तक होते हैं। 

श्रद्धालुओं के आने से क्षेत्र के बहुत से लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी हुई है, जबकि श्रद्धालुओं को आकर्षित करने के लिए सरकार की ओर से कोई विशेष प्रयास नहीं किए गए। बड़ी बात तो यह है कि गुफा तथा इसके इतिहास को लोकप्रिय बनाने के लिए भी कोई कदम नहीं उठाए गए। अच्छे होटलों, सड़कों, सरायों तथा अन्य प्रबंधों की भी बहुत कमी है। इस क्षेत्र में कोई रेल सम्पर्क नहीं है, जबकि हवाई सेवाएं तो दूर की बात है। यदि सरकार प्रयास करे तो रणसू तथा शिव खोड़ी का नाम भी विश्व प्रसिद्ध पर्यटन तथा दर्शनीय स्थलों में शामिल हो सकता है, जबकि इनकी ऐतिहासिक तथा धार्मिक महानता बहुत अधिक है। रणसू के मैदान में ही भगवान शिव का भस्मासुर नामक राक्षस के साथ युद्ध हुआ था, जिसमें भस्मासुर का अंत हुआ था। 

गुफा की महिमा
शिव खोड़ी स्थित गुफा की लम्बाई 150 मीटर बताई जाती है और इसमें 4 फुट ऊंचा शिवलिंग स्थापित होता है। जल की एक धारा सदैव इस शिवलिंग के ऊपर गिरती रहती है। गुफा में भगवान शिव, माता पार्वती तथा अन्य देवताओं की पिंडियां विराजमान हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने अपने हाथों से यह गुफा बनाई थी। इस गुफा का अंतिम सिरा दिखाई नहीं देता। लोगों ने यह भी बताया कि आगे जाकर गुफा दो हिस्सों में बंट जाती है, जिसका एक रास्ता अमरनाथ गुफा तक पहुंचता है। यह भी बताया जाता है कि गुफा के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की मन्नतें पूरी होती हैं। गुफा में पूजा तथा सेवा का कार्य पंडित दीपक शास्त्री सम्भाल रहे हैं। 

बकरवालों की दयनीय हालत
सुंदरबनी, रियासी, राजौरी आदि क्षेत्रों में बहुत से बकरवाल परिवार भी रहते हैं, जिनकी हालत बेहद दयनीय तथा खानाबदोशों वाली है। इनका कोई पक्का ठिकाना नहीं है। इनका पेशा भेड़-बकरियां पालना है। गर्मियों के मौसम में ये ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में चले जाते हैं, जबकि सर्दियों में निचले पहाड़ी इलाके इनका ठिकाना बनते हैं। 

सारे जम्मू-कश्मीर में बकरवालों की गिनती 10 लाख के करीब बताई जाती है। इन परिवारों के पास अपनी हैसियत के अनुसार भेड़-बकरियां होती हैं, जबकि कपड़े, रोटी-पानी बनाने-खाने वाले बर्तन तथा झुग्गी-झोंपड़ी बनाने का सामान एक से दूसरी जगह ले जाने के लिए एक-दो घोड़े या खच्चर होते हैं। ये लोग जहां भी बसेरा करते हैं, वहां लकड़ी की लम्बी लाठियों तथा फटे-पुराने कपड़ों-चादरों से ‘रिहायश’ का निर्माण कर लेते हैं। बारिश, आंधी, तूफान, बर्फबारी आदि हर मौसम में सिर ढकने के लिए यही इनकी छत होती है। 

पीर पंजाल की पहाडिय़ां तथा हिमालय से संबंधित क्षेत्र इनकी ‘रियासत’ के तौर पर जाने जाते हैं। इन परिवारों के बच्चे अक्सर अनपढ़ होते हैं क्योंकि ये लोग न एक स्थान पर पक्के तौर पर रहते हैं और न ही उनको पढ़ा सकते हैं। सरकारों ने बकरवाल परिवारों के लिए कुछ नहीं किया, जबकि ये लोग सरकार बनाने में अपनी वोट का इस्तेमाल करते हैं। इनके नाम विशेष हलकों में वोटर के तौर पर दर्ज हैं और ये चुनावों के समय वहां जाकर अपने ‘वोट के अधिकार’ का इस्तेमाल करते हैं। गरीबी रेखा से नीचे जीवन गुजार रहे इन परिवारों के लिए सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने चाहिएं। 

पवित्र महिला का नेक प्रयास
वह पवित्र महिला इतिहास के पन्नों का हिस्सा बन चुकी है। उसके जन्म, निधन या जीवन संबंधी कोई ब्यौरा प्राप्त नहीं, फिर भी उसका नाम हर व्यक्ति की जुबान पर उस समय अपने आप आ जाता है जब वह ‘सुंदरबनी’ कहता है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में सुंदरबनी वाले स्थान पर माई सुंदरां नामक एक धार्मिक प्रवृत्ति की महिला रहती थी, जिसने क्षेत्र के लोगों की सुविधा हेतु पानी की ‘बाऊली’ बनवाई थी। बाऊली को डोगरी भाषा में ‘बानी’ या ‘बनी’ कहते हैं और समय के चक्र के साथ उस बाऊली को सुंदरबनी के नाम से जाना जाने लगा। 

यह क्षेत्र उस समय नौशहरा तहसील के भजवाल गांव का नजरअंदाज हिस्सा था, जो बाद में सुंदरबनी के तौर पर प्रचलित हुआ तथा देश के विभाजन के बाद इसे तहसील का दर्जा प्राप्त हुआ। वह बाऊली आज भी इस शहर में स्थित है, जिसका पानी बेहद निर्मल तथा स्वच्छ है। शहर की आबादी बढऩे के कारण यह बाऊली सब लोगों की पानी की जरूरतें पूरी नहीं कर सकती तथा पानी के अन्य स्रोत भी विकसित किए गए हैं। 2007 में इस बाऊली के आसपास का हिस्सा पक्का करके इस पर लैंटर डाल दिया गया और साथ ही एक कमरा भी बना दिया गया। इसके नजदीक दो छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं, जिनमें से एक हनुमान जी तथा दूसरा माता काली से संबंधित है। आज भी बाऊली का पानी टैंकरों से शहर के विभिन्न हिस्सों में सप्लाई किया जाता है। 

सुंदरता से वंचित है सुंदरबनी
शहर का नाम सुंदरता से संबंधित है और इसके आसपास घने पेड़ों वाले वातावरण से घिरे होने के बावजूद सुंदरबनी ‘सुंदरता’ से वंचित है। शहर में जैसे हर तरफ अव्यवस्था फैली हो। बेकाबू आवागमन, पार्किंग की अपर्याप्त व्यवस्था, जगह-जगह गंदगी तथा कूड़े के ढेर, नालियों में बहता गंदा तथा बदबूदार पानी, बेसहारा पशुओं के झुंड सुंदरबनी की सुंदरता पर गंदे दाग लगते हैं। 

नगरपालिका लाचार, बेबस तथा कार्यहीन स्थिति में दिखाई देती है या उसे लोगों की सुविधा के लिए कुछ करने की चिंता ही नहीं। सरकार का इस महत्वपूर्ण नगरी की ओर कोई ध्यान ही नहीं है, अन्यथा मीडिया में बार-बार यहां की अव्यवस्था का जिक्र होने के बाद अवश्य कोई कार्रवाई की जाती। आर्थिक तंगी तथा बेरोजगारी की मजबूरियों में जकड़े लोग अपने बलबूते पर भी कुछ नहीं कर सकते। ऐसी हालत में माई सुंदरां के शहर को सम्भालने कौन आगे आएगा, इस प्रश्र का उत्तर भविष्य के पास ही है।-जोगिन्द्र संधू


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