...और ‘मंजिल’ अभी दूर है

Thursday, Aug 06, 2020 - 03:21 AM (IST)

4 माह हो चुके हैं जबकि भारत तथा विश्व ने लाखों प्रवासी मजदूरों को अपने घरों की ओर लौटते हुए पैदल या फिर वाहनों पर हजारों किलोमीटर का लम्बा सफर तय करते देखा है। इसके बाद सरकार ने उनको घर पहुंचाने के लिए विशेष ट्रेनों का प्रबंध किया। ये बातें सदा के लिए हमारे दिलो-दिमाग पर छाई रहेंगी क्योंकि इन्होंने एक गहरी छाप छोड़ी है। 

हाल ही में आई रिपोर्टें दर्शाती हैं कि ज्यादातर अपने घरों की ओर लौटने वाले लोगों की गिनती बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल तथा छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से संबंधित है जोकि अपने कार्यस्थलों की तरफ लौटने के लिए बेकरार हैं। उनके लिए यह दोहरा आघात है। जब वे अपने घरों तक पहुंचे तो पहले उन्हें क्वारंटाइन किया गया। अब जबकि वे अपने कार्यस्थलों की ओर वापस लौट रहे हैं वे फिर से क्वारंटाइन को झेलेंगे। 

मनरेगा का वर्तमान आंकड़ा आंखों को खोल देने वाला है। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि देश के गरीब लोगों के बीच एक बहुत बड़ा तनाव है। जून के दौरान जब श्रमिकों को कृषि कार्य में काम उपलब्ध करवाया जाता है तब आंकड़े खुलासा करते हैं कि 62 मिलियन लोगों ने काम की मांग की जिसे उन्हें न्यूनतम मजदूरी पर दिया गया जोकि प्रति वर्ष 100 दिनों से ज्यादा है। यह आंकड़ा वर्ष की इस अवधि के दौरान आम गिनती से तीन गुना है। यह स्पष्ट है कि विस्थापित प्रवासी अपने गृह राज्यों में रोजगार ढूंढ रहे हैं। 

जबकि प्रवासियों का एक वर्ग फिर से अपने कार्यस्थलों पर लौटा है वहीं अन्यों को उनके पूर्व मालिकों ने अनुबंधित किया है। उन्हें ऊंची मजदूरी पर वापस रखा गया है। कुछ ऐसी भी मिसालें हैं जिसमें बड़ी तथा विशेष कम्पनियां जिसमें सूरत में डायमंड कटिंग उद्योग भी शामिल हैं, ने प्रवासियों को काम पर वापस आने के लिए चार्टर्ड विमानों का इंतजाम किया है। इन सब बातों ने अर्थव्यवस्था की रिकवरी में थोड़ा योगदान दिया है। अपेक्षित रिकवरी से ज्यादा उम्मीद की गई है। हालांकि अर्थव्यवस्था के पुनर्जीवित होने के लिए यह कहना जल्दबाजी होगा। 

हालांकि सरकार ने अधिक फंड जारी किया है तथा नकदी राहत भी उपलब्ध करवाई है। इसके अतिरिक्त नि:शुल्क तथा सब्सीडाइज्ड राशन की अवधि को भी बढ़ाया गया है। मगर यह स्पष्ट है कि सरकार के ऐसे कदम नाकाफी हैं। नकदी राहत का विस्तार करना वह भी ऐसे कठिन मौके पर न्यायोचित है। अपने लिए तथा देश के अच्छे के लिए ज्यादा से ज्यादा रोजगार मौके उपलब्ध करवाने होंगे और इसके लिए मूलभूत ढांचे के निर्माण में बड़ा निवेश करने की जरूरत है। भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना वायरस महामारी के विश्व को घेरने से पहले से ही नीचे की ओर सरक चुकी थी। इसकी वृद्धि दर जोकि करीब 8 प्रतिशत पर मंडरा रही थी, में नोटबंदी तथा जी.डी.पी. के गिरने के कारण और प्रभावित हुई है। कोविड महामारी के बाद वृद्धि दर में एक या दो प्रतिशत की गिरावट हो चुकी है और ऐसी संभावनाएं हैं कि यह नकारात्मक वृद्धि दर हासिल करेगी। 

वर्तमान हालात में अर्थ शास्त्री मानते हैं कि पहली बार गरीबी की रेखा से नीचे रह रहे लोग और ज्यादा नीचे गिर जाएंगे। पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह जिनकी अर्थव्यवस्था पर अच्छी पकड़ है, ने कहा था कि इस कठिन समय पर सबसे ज्यादा जरूरी बात पूरे ईको सिस्टम में विश्वास भरने की है। उन्होंने कहा था कि लोगों को अपने जीवन और जीविका में विश्वास महसूस करना चाहिए। उद्यमियों को भी विश्वास हासिल करना होगा और नए निवेश पैदा करने होंगे। बैंकरों को भी निवेश पूंजी उपलब्ध करवाने के लिए विश्वास हासिल करना होगा। 

बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को भी आत्मविश्वास महसूस करना होगा ताकि वे भारत में निवेश कर सकें तथा सरकार को ऋणों के भुगतान के लिए अपनी प्रतिबद्धता को कायम रखना होगा। 5 ट्रिलियन अमरीकी डालर की अर्थव्यवस्था को पाने का भारतीय सपना जोकि 2024-25 तक देखा गया है, के लिए अभी और इंतजार करना होगा। यह महामारी के अप्रत्याशित फूटने के कारण हुआ है जिसने पूरे विश्व को हिला कर रख दिया है। यह सब संभव है मगर यह सरकार पर निर्भर करता है कि वह किस तरह वर्तमान आॢथक संकट से निपटती है।  मगर ...मंजिल अभी दूर लग रही है।-विपिन पब्बी

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