अगला भिंडरांवाला बनने का इच्छुक है अमृतपाल

punjabkesari.in Friday, Mar 03, 2023 - 05:02 AM (IST)

एक कट्टरपंथी उपदेशक के रूप में वर्णित अमृतपाल सिंह अगला भिंडरांवाला बनने की इच्छा रखता है। हालांकि यह लक्ष्य  हासिल करना आसान नहीं होगा। भिंडरांवाला गड़बड़ा गई राजनीतिक साजिशों की उपज थे। अमृतपाल सिंह स्पष्ट रूप से बेरोजगारी और आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों के कारण और रूस-यूक्रेन युद्ध से बढ़े पंजाबी युवाओं के वर्तमान उदास मूड का फायदा उठाना चाहता है।

मीडिया रिपोर्टस के अनुसार पुलिस ने चमकौर साहिब के वरिन्द्र सिंह को कथित तौर पर अगवा करने और मारपीट करने के आरोप में उसके एक साथी लवप्रीत सिंह ‘तूफान’ को गिरफ्तार किया था। अजनाला थाने में दर्ज प्राथमिकी में अमृतपाल का नाम भी है। अमृतपाल ने लवप्रीत की रिहाई की मांग को लेकर थाने तक मार्च निकालने का ऐलान किया। गड़बड़ी की आशंका को देखते हुए आसपास के थानों से पुलिस कर्मियों को बुलाकर अजनाला में तैनात किया गया था।

जगह-जगह अवरोधक लगाए गए फिर भी अमृतपाल और उसके ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन के समर्थकों की भारी भीड़ तलवारों और कुछ बंदूकों से लैस होकर अवरोधकों पर चढ़ गई और पुलिस स्टेशन में घुस गई। सरकारी सम्पत्ति को व्यापक नुक्सान पहुंचाया गया। 100 प्रशिक्षित पुलिसकर्मी जिन्हें भीड़ द्वारा हमला किए जाने पर उन्हें क्या करना चाहिए, इस बारे में निर्देश दिए गए थे, उन्हें सामान्य रूप से भीड़ से निपटने और तितर-बितर करने में सक्षम होना चाहिए था लेकिन अगर उन्हें स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया गया होता कि भीड़ द्वारा ङ्क्षहसा का मुकाबला करने के लिए वे किस प्रकार और किस हद तक बल का उपयोग कर सकते हैं तो स्थिति नियंत्रण से बाहर हो सकती थी और यही हुआ।

मैं प्रतिक्रिया को स्पष्ट रूप से पुलिस नेतृत्व और राज्य के राजनीतिक नेतृत्व की मंशा स्पष्ट नहीं करने की विफलता के रूप में वर्गीकृत करूंगा।  विचित्र परिस्थितियों से निपटने के दौरान कुर्सी पर बैठ कर की जाने वाली पुलिस की आलोचना ठीक नहीं। धरातल पर त्वरित निर्णय लेना कभी आसान नहीं होता है क्योंकि मौके पर प्रभारी पुलिस अधिकारी के समक्ष घटनाएं सुलझ जाती हैं। यदि वह अपने बारे में अपनी बुद्धि के साथ एक आश्वस्त व्यक्ति है तो जनता को निर्णय स्वीकार करना चाहिए, भले ही परिणाम खराब हों।

यह निर्णय लेने वाले की मंशा है जो मायने रखती है। रिपोर्टस के मुताबिक वरिष्ठ आई.पी.एस. अधिकारी बाद में पहुंचे और अमृतपाल से बातचीत की। ऐसा लगता है कि उसने अमृतसर के पुलिस कमिश्रर और अजनाला के एस.एस.पी. को आश्वस्त कर लिया था कि लवप्रीत वरिन्द्र के अपहरण में शामिल व्यक्ति नहीं था! आला अधिकारी लवप्रीत को रिहा करने पर राजी हो गए। ऐसा समर्पण ही पुलिस और राजनीतिक नेतृत्व को परेशान करेगा।

वरिन्द्र ने अपनी शुरूआती शिकायत में लवप्रीत का नाम लिया था। पुलिस को तथ्यों की जांच करने की जरूरत थी कि  वास्तव में अपहरण हुआ था या नहीं। वरिन्द्र को किसने पीटा? यह बताया गया है कि उसने अमृतपाल की बातों पर आपत्ति जताई थी और यदि यह सच है तो हमले का कारण उपलब्ध था। अजनाला पुलिस इतनी महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना पर अपने अधिकारियों को फांसे पर रखती।

पड़ोसी थानों से अतिरिक्त बल तैनात करने का आदेश केवल एक ही अधिकारी द्वारा दिया जा सकता था जिसके पास सभी पांच थानों का अधिकार हो। यदि सशस्त्र बटालियन की प्रति नियुक्ति की जाती तो आदेश केवल राज्य के डी.जी.पी. कार्यालय से जारी किया जा सकता था। ऐसा कोई तरीका नहीं है कि वरिष्ठ अधिकारी यह दावा कर सकें कि उन्हें प्राथमिकी में नामित व्यक्तियों को गिरफ्तार करने के फैसले की जानकारी नहीं थी। यह कट्टरपंथी उपदेशक अमृतपाल के लिए पुलिस का समर्पण है जो प्रशासन को डराने के लिए वापस आएगा।

मैं गैर-कानूनी मांगों के लिए इस आत्मसमर्पण में राजनीतिक नेतृत्व का हाथ देखता हूं। किसी भी तरह से मुख्यमंत्री भगवंत मान को पाश से बाहर नहीं रखा गया। यह स्पष्ट है कि मान सरकार अभी भी सुरक्षा के मोर्चे पर पैर जमाने में लगी हुई है। यह उसकी दुखती रग हो सकती है। इससे भी बदत्तर स्थिति इस संवेदनशील सीमावर्ती राज्य में आतंक के संभावित पुन:आगमन की है। हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान आर्थिक दलदल में फंसा हुआ है। वह सीमा पार संकट में फंसने की कोशिश करेगा।

1980 के दशक में इसने खालिस्तानी आतंकियों को ट्रेनिंग और पनाह दी थी। इसने सीमा पार हथियारों की आवाजाही को भी सुगम बनाया था। पाकिस्तान अमृतपाल सिंह के साथ सहयोग करने की कोशिश करेगा अगर उसने पहले से ऐसा नहीं किया है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल हस्तक्षेप करने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में हैं। वे जानते हैं कि कब क्या करना है और कैसे करना है? और किसे कार्य सौंपा जाना चाहिए। अमृतपाल को ‘लार्जर दैन लाइफ’ बनने नहीं दिया जाएगा।

अजेयता की आभा ग्रहण करने से पहले उसे समाहित करना होगा। उन्होंने अजनाला में जीत का स्वाद चखा है। नतीजतन पंजाब में उनका समर्थन बढ़ेगा। केंद्र सरकार अजनाला में मान सरकार की विफलता का लाभ उठाने की कोशिश कर सकती है ताकि राज्य में राजनीतिक लाभ हासिल किया जा सके जिसने भाजपा का स्वागत नहीं किया। ऐसा करना भूल होगी। आम आदमी पार्टी (आप) भारी बहुमत से सत्ता में आई थी। मान को ‘आप’ के सिख चेहरे के रूप में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया गया।

कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के रूप में भाजपा का अपना सिख चेहरा है। लेकिन वह एक खर्चीली ताकत है। मोदी सरकार के लिए बेहतर विकल्प यह है कि वह इस राज्य को अकेला छोड़ दे, कहीं ऐसा न हो कि उसकी उंगलियां जल जाएं। 1980 के दशक और 1990 के दशक की शुरूआत में आबादी के बड़े हिस्से के तौर पर गांवों में जट-सिख किसानों ने आतंकवाद का कहर झेला था।

उन्हें कई मंचों पर सुविचारित तर्कों से जीता जा सकता है। जैसे-जैसे आम लोगों के साथ संचार के साधन विकसित होते जा रहे हैं, अमृतपाल और उसके साथियों को तुरन्त घेरा जाना चाहिए। भाजपा सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों और आलोचकों के खिलाफ जिन कानूनों का इस्तेमाल करती है उन्हें इस उभरते खतरे के खिलाफ इस्तेमाल किया जाना चाहिए। -जूलियो रिबैरो (पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)


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