अमित शाह शायद ‘कश्मीर समस्या’ हल कर पाएं

punjabkesari.in Monday, Jul 01, 2019 - 04:21 AM (IST)

संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद  देते हुए भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने जितना दमदार भाषण दिया, उससे आतंकवादियों के हौसले जरूर पस्त हुए होंगे। शाह ने बिना लागलपेट के दो टूक शब्दों में आतंकवादियों, विघटनकारियों और देशद्रोहियों को चेतावनी दी कि वे सुधर जाएं, वरना उनसे सख्ती से निपटा जाएगा। 

अब तक देश ने अमित शाह को भाजपा के अध्यक्ष के रूप में देखा है। इस पद पर रहते हुए उन्होंने एक सेनापति के रूप में अनेक चुनावी महाभारत जिस कुशलता से लड़े और जीते, उससे देश की राजनीति में उनकी कड़ी धमक बनी है। उनके विरोधी भी यह मानते हैं कि इरादे के पक्के, जुझारू और रात-दिन जुटकर काम करने वाले अमित शाह जो चाहते हैं, उसे हासिल कर लेते हैं। इसलिए दिल्ली की सत्ता के गलियारों और मीडिया के बीच यह चर्चा होने लगी है कि अमित शाह शायद कश्मीर समस्या का हल निकालने में सफल हो जाएं। हालांकि इस रास्ते में चुनौतियां बहुत हैं। 

हिजबुल मुजाहिदीन को आर्थिक मदद
गृहमंत्री शाह ने अपने भाषण में यह साफ कहा कि आतंकवादियों को मदद पहुंचाने वालों या शरण देने वालों को भी बख्शा नहीं जाएगा। उल्लेखनीय है कि कश्मीर के खतरनाक आतंकवादी संगठन ‘हिजबुल मुजाहिदीन’ को दुबई और लंदन से आ रही अवैध आर्थिक मदद का खुलासा 1993 में मैंने ही अपनी वीडियो समाचार पत्रिका ‘कालचक्र’ के 10वें अंक में किया था। इस घोटाले की खास बात यह थी कि आतंकवादियों को मदद देने वाले स्रोत देश के लगभग सभी प्रमुख दलों के बड़े नेताओं और बड़े अफसरों को भी यह अवैध धन मुहैया करा रहे थे। इसलिए सी.बी.आई. ने इस कांड को दबा रखा था। घोटाला उजागर करने के बाद मैंने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और आतंकवादियों को आ रही आॢथक मदद के इस कांड की जांच करवाने को कहा। 

सर्वोच्च अदालत ने मेरी मांग का सम्मान किया और भारत के इतिहास में पहली बार अपनी निगरानी में इस कांड की जांच करवाई। बाद में यही कांड ‘जैन हवाला कांड’ के नाम से मशहूर हुआ, जिसने भारत की राजनीति में भूचाल ला दिया, पर मेरी चिंता का विषय यह है कि इतना सब होने पर भी इस कांड की ईमानदारी से जांच आज तक नहीं हुई और यही कारण है कि आतंकवादियों को हवाला के जरिए, पैसा आना जारी रहा और आतंकवाद पनपता रहा। उन दिनों हांगकांग से ‘फार ईस्टर्न इकोनोमिक रिव्यू’ के संवाददाता ने ‘हवाला कांड’ पर मेरा इंटरव्यू लेकर कश्मीर में तहकीकात की और फिर जो रिपोर्ट छपी, उसका निचोड़ यह था कि आतंकवाद को पनपाए रखने में बहुत से प्रभावशाली लोगों के हित जुड़े हैं। उस पत्रकार ने तो यहां तक लिखा कि कश्मीर में आतंकवाद एक उद्योग की तरह है, जिसमें बहुतों को मुनाफा हो रहा है। 

‘दिल्ली के आतंकवादी’
उसके 2 वर्ष बाद जम्मू के राजभवन में मेरी वहां के तत्कालीन राज्यपाल गिरीश सक्सेना से चाय पर वार्ता हो रही थी। मैंने उनसे आतंकवाद के बारे में पूछा, तो उन्होंने अंग्रेजी में एक व्यंग्यात्मक टिप्पणी की जिसका अर्थ था कि ‘मुझे ‘‘घाटी के आतंकवादियों’’ की चिंता नहीं है, मुझे ‘‘दिल्ली के आतंकवादियों’’ से परेशानी है’। अब इसके क्या मायने लगाए जाएं? 

कल ही मैंने इस सारे मुद्दे पर चार टिप्पणियां ट्विटर पर की हैं, जिसमें मैंने गृहमंत्री को आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध में सफलता की शुभकामनाओं के साथ इस बात का भी स्मरण दिलाया है कि ‘जैन हवाला कांड’ की आज तक जांच नहीं हुई है। उम्मीद की जानी चाहिए कि गृहमंत्री हवाला कारोबार को पूरी तरह से नियंत्रित करने का काम करेंगे, जिससे आतंकवाद की कमर टूट जाए। उल्लेखनीय है कि 9/11 की घटना के बाद अमरीका की खुफिया एजैंसियों और आयकर विभाग ने ऐसा सख्त जाल बिछाया कि वहां किसी भी आतंकवादी को हवाला के जरिए पैसा पहुंचाना नामुमकिन हो गया। नतीजतन अमरीका में 9/11 के बाद कोई उल्लेखनीय आतंकवादी घटना नहीं हुई। 

शाह निर्णय लेने में सक्षम
अमित शाह जैसे कुशल सेनापति को किसी की सलाह की जरूरत नहीं होती। वह अपने निर्णय लेने  में स्वयं सक्षम हैं, पर फिर भी उन्हें यह सावधानी बरतनी होगी कि आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे पर कोई निर्णय लेने से पहले वह उन सभी लोगों से राय जरूर लें, जिनका इस समस्या से लडऩे में गत 30 वर्षों में कुछ न कुछ महत्वपूर्ण योगदान रहा है। केन्द्रीय खुफिया ब्यूरो के पुराने निदेशक ही नहीं, जम्मू-कश्मीर में नौकरी कर चुके स्वच्छ छवि वाले पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से भी अमित शाह को बात करनी चाहिए, ताकि एक ऐसी रणनीति बने, जो कारगर भी हो और उसमें जानमाल की कम से कम हानि हो। अगर अमित शाह 72 साल से लटकी हुई कश्मीर की समस्या को हल करवाने में सफल हो जाते हैं, तो वह एक बड़ा इतिहास रचेंगे।-विनीत नारायण


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