‘विरोधाभासी’ भाषण से विरोधियों को स्वयं मुद्दे दे गए अमित शाह
Wednesday, Jun 27, 2018 - 04:29 AM (IST)
जम्मू में अपने विरोधाभासी भाषण के दौरान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पी.डी.पी., नैशनल कांफ्रैंस, कांग्रेस एवं नैशनल पैंथर्स पार्टी समेत तमाम विरोधी दलों को खुद भाजपा को घेरने के मुद्दे दे दिए और विरोधी दलों ने भी इन मुद्दों को लपकने में देर नहीं लगाई।
भाजपा आज विभिन्न मुद्दों पर अपनी विफलता के लिए पी.डी.पी. विशेषकर पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को जिम्मेदार ठहरा रही है, लेकिन सच्चाई तो यह है कि वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद जब दोनों पार्टियों ने मिलकर एजैंडा ऑफ अलायंस का मसौदा तैयार किया, उसी समय भाजपा ने अपने तमाम मूल, राष्ट्रहित एवं जम्मू हित के मुद्दों को तिलांजलि दे दी थी। यदि धारा 370 व 35-ए जैसे विवादास्पद मुद्दों पर पी.डी.पी. नहीं भी मान रही थी तो भी अपने जनाधार वाले जम्मू एवं लद्दाख क्षेत्रों से भेदभाव समाप्त करने के लिए भाजपा उसे परिसीमन पर तो मना ही सकती थी। फिर यदि आतंकवाद के प्रति भाजपा इतनी ही गंभीर थी तो उसे मलाईदार विभाग लेने के बजाय गृह विभाग अपने पास रखना चाहिए था।
जम्मू-कश्मीर में विफलता के लिए राज्य इकाई के बजाय भाजपा हाईकमान पूरी तरह जिम्मेदार है, क्योंकि विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद मोदी सरकार के एक बेहद ताकतवर मंत्री ने तमाम भाजपा विधायकों के हस्ताक्षर लेकर निर्णय लेने के पूरे अधिकार सुरक्षित कर लिए थे। इसके बाद एजैंडा ऑफ अलायंस का मसौदा तैयार करते हुए भी, राज्य इकाई को विश्वास में लेने के बजाय दोनों पार्टियों के कथित ऐसे ‘चाणक्यों’ की अहम भूमिका रही जो राज्य, विशेषकर जम्मू वासियों की मनोभावनाओं से पूरी तरह वाकिफ नहीं थे।
सरकार बनने के बाद भी केंद्र सरकार एवं भाजपा हाईकमान पहले मुफ्ती मोहम्मद सईद और बाद में महबूबा मुफ्ती के सीधे संपर्क में रही जबकि राज्य के भाजपा नेता केवल मूकदर्शक बन सब देखते रहे और अपने पद बचाने के चक्कर में किसी की भी पार्टी हाईकमान के सामने मुंह खोलने की हिम्मत नहीं थी। इसके अलावा पद के चक्कर में राज्य के भाजपा नेताओं में पनपी गुटबाजी, खींचतान एवं चुगलखोरी ने पार्टी हितों, राष्ट्रीय हितों एवं जम्मू के हितों में लगी आग में घी डालने का काम किया।
देखा जाए तो जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पी.डी.पी. से समर्थन वापस लेकर राज्य सरकार गिराने के बाद भाजपा नेतृत्व राज्य के विकास और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के मुद्दों पर अपनी भूमिका को लेकर बेहद दुविधा में नजर आता है। तभी तो पार्टी अध्यक्ष अमित शाह समेत तमाम नेता एक तरफ तो मोदी सरकार के दौरान राज्य में सुरक्षा बलों का निशाना बने आतंकवादियों का आंकड़ा गिनाते और केंद्र सरकार द्वारा राज्य के विकास के लिए जारी धनराशि एवं विकास परियोजनाओं का जिक्र करते नहीं थकते, दूसरी तरफ आतंकवाद के प्रति नरम रुख अपनाने और विकास न होने को लेकर अपनी ही पूर्व सरकार को विफल साबित करने में जुटे हैं।
दिलचस्प पहलू यह है कि 7 जनवरी, 2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद जब पी.डी.पी. और भाजपा नेतृत्व के बीच फिर से सरकार बनाने की चुनौती थी तो पी.डी.पी. अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती भी 10 महीने तक रही मुफ्ती सरकार की विफलताओं का उल्लेख करते हुए गठबंधन को जारी रखने पर आपत्ति जता रही थीं। उनका कहना था कि दोनों पार्टियों के बीच बने एजैंडा ऑफ अलायंस पर काम नहीं हुआ है। इसके चलते कांग्रेस भी मुफ्ती परिवार के प्रति सहानुभूति दिखाने के बहाने ‘बिल्ली के भाग का छींका टूटने’ की आस में पी.डी.पी. नेतृत्व के साथ खड़ी नजर आ रही थी। यह बात अलग है कि पी.डी.पी. के कुछ नेताओं के भाजपा नेतृत्व के संपर्क में आ जाने से दबाव में आई महबूबा फिर से उन्हीं शर्तों पर सरकार बनाने पर राजी हो गईं, जिन शर्तों पर मुफ्ती सरकार का गठन हुआ था।
बहरहाल, अपने जम्मू प्रवास के दौरान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा पूर्ववर्ती सरकार की कई उपलब्धियों और कई नाकामियों का जिक्र किया गया। उनका कहना था कि सबसे ज्यादा आतंकवादी मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान मारे गए हैं, लेकिन साथ ही उन्होंने महबूबा मुफ्ती पर सुरक्षा के मामले में समझौता करने का आरोप लगाया। सच्चाई तो यह है कि कश्मीर में जब आतंकवादी मारे जा रहे थे तो न केवल राज्य की गृहमंत्री, बल्कि मुख्यमंत्री होने के नाते तमाम सुरक्षा बलों के अधिकारियों पर आधारित यूनिफाइड कमांड की अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती ही थीं। आतंकवादियों को ढेर करने वाले तमाम अभियानों में केंद्रीय सुरक्षा बलों के अलावा राज्य पुलिस की भी अहम भूमिका रही है। ऐसे में आतंकवादियों के खात्मे का श्रेय भाजपा अकेले नहीं ले सकती।
जहां तक आतंकवादियों एवं अलगाववादियों के प्रति नरमी का सवाल है तो महबूबा मुफ्ती के हर निर्णय पर केंद्रीय गृह मंत्रालय की मोहर होती थी, इसलिए सुरक्षा से समझौते के मामले में भी केवल महबूबा को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इसी प्रकार अमित शाह ने राज्य में सड़क सम्पर्क की तारीफ की, जबकि इस विभाग का कार्यभार पी.डी.पी. कोटे के मंत्री संभाल रहे थे। भाजपा अध्यक्ष ने जम्मू एवं लद्दाख क्षेत्रों के विकास में भेदभाव के लिए पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया, जबकि लद्दाख के विकास का जिम्मा भाजपा कोटे से लद्दाख मामलों के मंत्री बने शेरिंग दोरजे के हवाले था और जम्मू के विकास का काम भाजपा के मंत्रियों समेत 25 विधायक देख रहे थे।
उन्होंने आई.आई.टी., आई.आई.एम. एवं एम्स सरीखे संस्थान ही नहीं, बल्कि केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर के लिए जारी भारी धनराशि का श्रेय लेने के बजाय इसे यह कहकर नकार दिया कि राज्य सरकार की नाकामी के चलते केंद्र सरकार द्वारा जारी धनराशि खर्च ही नहीं हो पाई। आई.आई.टी. और आई.आई.एम. में समय पर शैक्षणिक सत्र शुरू नहीं हो पाया, जबकि यह कार्य केंद्र सरकार को करना था। जहां तक एम्स और मैडीकल कालेजों की स्थापना में देरी का सवाल है तो केन्द्र में स्वास्थ्य मंत्रालय भाजपा नेता जगत प्रकाश नड्डा संभाल रहे हैं तो राज्य में भी स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग का कार्यभार तो उन्हीं की पार्टी भाजपा के मंत्री संभाल रहे थे।-बलराम सैनी