जी.एस.टी. काऊंसिल की बैठक पर टिकी निगाहें

punjabkesari.in Sunday, Sep 08, 2024 - 06:09 AM (IST)

वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) की दरों पर चर्चा के लिए जी.एस.टी. काऊंसिल की बैठक 9 सितम्बर को होने जा रही है। इस बैठक से पूर्व कर व्यवस्था में संभावित बदलावों पर काम कर रहे राज्यों के मंत्रियों के एक समूह ने संकेत दिया है कि फिलहाल उनकी योजना चार दरों वाले मौजूदा ढांचे को बरकरार रखने की है। हालांकि अभी चर्चाएं चल रही हैं और कोई निर्णय नहीं लिया गया है लेकिन समूह के कुछ सदस्यों का कहना है कि चूंकि जी.एस.टी. व्यवस्था स्थिर हो चुकी है इसलिए शायद इसके साथ छेड़छाड़ करना उचित नहीं होगा। जी.एस.टी. परिषद की अध्यक्ष और  केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जुलाई में अपने बजट भाषण में कहा था कि सरकार जी.एस.टी. कर ढांचे को सरल और युक्तिसंगत बनाने के प्रयास करेगी और इसे बाकी बचे क्षेत्रों तक विस्तार दिया जाएगा। 

राज्यों के मंत्रिसमूह को इस प्रक्रिया की पहल करनी चाहिए। इस संबंध में सीतारमण ने स्पष्ट किया है कि आगामी 9 सितंबर को होने वाली जी.एस.टी. परिषद की बैठक में इस विषय पर चर्चा की जाएगी। इस बीच देश भर के उद्योग और व्यापार जगत की नजरें भी काऊंसिल की इस महत्वपूर्ण बैठक पर लगी हुई  हैं और उद्योग एवं व्यापार जगत भी इस बैठक से कर ढांचे में ऐसे बदलाव की उम्मीद कर रहा है जिस से अनुपालन में आसानी हो और व्यापारियों और ग्राहकों को भी राहत मिले। 

तीन दरों वाले कर ढांचे पर हो सकता है विचार: परिषद इस बैठक  में 3 दरों वाले ढांचे को अपनाने पर विचार कर सकती है। अनिवार्य वस्तुओं के लिए कर दर कम रखी जाए, अधिकांश वस्तुओं सेवाओं के लिए मध्यम दर रखी जाए और चुनिंदा वस्तुओं या नुकसानदायक वस्तुओं के लिए दरों को ऊंचा रखा जाए। यह सुझाव भी दिया गया है कि 12 और 18 प्रतिशत की स्लैब को मिलाकर 16 प्रतिशत का एक नया स्लैब तैयार किया जाए। इससे जटिलता में काफी कमी आएगी और दरों की बहुलता के कारण उत्पन्न विसंगतियों में से कई दूर होंगी। इसके अलावा समायोजन और दरों को सहज बनाने का काम इस प्रकार करना होगा कि समग्र जी.एस.टी. कर संग्रह राजस्व निरपेक्ष दर के करीब पहुंच सके। ध्यान देने वाली बात है कि कर संग्रह का बड़ा हिस्सा 18 फीसदी के स्लैब से आता है। 

जी .एस. टी. काऊंसिल को उपकर पर भी लेना पड़ सकता है निर्णय : शुरूआती वर्षों में जी.एस.टी. दरों को समय से पहले कम कर दिया गया जिससे इसके प्रदर्शन में कमजोरी आई। हालांकि इस कर के क्रियान्वयन के बाद से संग्रह में प्रभावी इजाफा हुआ है। जैसा कि अर्थशास्त्री अरविंद सुब्रमण्यन और अन्य लोगों ने लिखा है कि 2023-24 में उपकर समेत विशुद्ध जी.एस.टी. संग्रह सकल घरेलू उत्पाद (जी.एस.टी.) का 6.1 प्रतिशत था जो 2012-17 के जी.एस.टी. से पहले के दौर के लगभग समान था। यह भी ध्यान देने लायक है कि मौजूदा संग्रह में क्षतिपूर्ति उपकर भी शामिल है जिसे उस कर्ज को चुकाने के लिए जुटाया जा रहा है जो महामारी के दौरान राज्यों के राजस्व में कमी की भरपाई के लिए लिया गया था। 

जी.एस.टी. परिषद को निकट भविष्य में कर्ज चुकता हो जाने के बाद कभी न कभी इस उपकर के बारे में निर्णय लेना होगा। एक सुझाव यह है कि इसे कर दर में शामिल किया जाए। हालांकि इससे उपभोक्ताओं के वास्तविक कर व्यय पर असर नहीं होगा लेकिन किसी भी निर्णय की सावधानीपूर्वक जांच करनी होगी। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि उपकर को सीमित समय के लिए लागू किया गया था और इसका एक खास उद्देश्य था- पहले 5 सालों में राज्यों के राजस्व में कमी की भरपाई के लिए संसाधन जुटाना। संग्रह जारी रहा क्योंकि सरकार को इस पूरी अवधि में राज्यों की भरपाई करनी पड़ी। 

व्यापक तौर पर दरों को राजस्व निरपेक्ष दर के अनुसार समायोजित किया जाना चाहिए। इससे केंद्र और राज्य के स्तर पर राजस्व संग्रह में इजाफा होगा। बढ़ा हुआ राजस्व सरकार के दोनों स्तरों पर उच्च राजस्व को समायोजित करेगा। यह ऐसे समय में होगा जब देश को आम सरकारी बजट घाटा और सार्वजनिक ऋण कम करने की जरूरत है। इस विषय को टालने से जी.एस.टी. व्यवस्था के लिए जरूरी समायोजन में देरी होगी।


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