अजीत पवार की ‘अलग राह’

punjabkesari.in Monday, Nov 25, 2019 - 02:22 AM (IST)

राकांपा नेता अजीत पवार के पार्टी से अलग रास्ता चुनने के परिणामस्वरूपन केवल पार्टी टूटी है बल्कि शरद पवार का परिवार भी टूट गया है। पूर्व में ऐसे ही एक मामले में अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव ने समाजवादी पार्टी और मुलायम परिवार से अपना रिश्ता तोड़ लिया था। राकांपा सूत्रों के अनुसार शरद पवार द्वारा शिवसेना-कांग्रेस गठबंधन को समर्थन देने के समय अजीत पवार द्वारा भाजपा को समर्थन देने का फैसला आश्चर्यजनक तो है लेकिन अनापेक्षित नहीं है।

दरअसल शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार के बीच तभी से शीत युद्ध चल रहा था जब से शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले और अपने पौत्र रोहित पवार (अन्य भतीजे के बेटे) को राजनीति में मजबूत करना शुरू कर दिया था।  लेकिन यह सब तब सामने आया जब विधानसभा चुनाव से पहले ई.डी. की ओर से शरद पवार और उनके भतीजे को महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक घोटाले के मामले में नोटिस जारी किए गए। उस समय सभी राकांपा नेताओं और कार्यकत्र्ताओं ने शरद पवार का पूरा बचाव किया था लेकिन अजीत पवार का नहीं और उन्हें विधानसभा चुनाव से पहले विधायक के पद से इस्तीफा देना पड़ा था और वह पार्टी से गायब हो गए थे। लेकिन अजीत ने कभी भी अपने चाचा और पार्टी के खिलाफ कोई बात नहीं की।

उप मुख्यमंत्री बनने के शीघ्र बाद उन्होंने अपने फैसले का बचाव किया। इसके शीघ्र बाद सुप्रिया सुले ने कहा कि न केवल पार्टी में बल्कि परिवार में भी फूट पड़ गई है। लेकिन राकांपा के बहुत से वरिष्ठ नेताओं का दावा है कि अजीत पवार ने इसलिए पार्टी छोड़ी है क्योंकि उन्हें डर है कि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में उन्हें ब्लैकमेल किया जा सकता है। इस बीच संजय राऊत ने दावा किया है कि उनके पास यह जानकारी है कि कैसे अजीत पवार को ब्लैकमेल किया गया। राऊत ने कहा कि वह इसका पर्दाफाश करेंगे। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार अजीत भाजपा के साथ मर्जी से या गैर मर्जी से डील कर सकते हैं लेकिन यह आम धारणा है कि वह पार्टी की नहीं तोड़ेंगे। हालांकि इस बात की जानकारी नहीं है कि उनका भाजपा के साथ क्या समझौता हुआ है। बहरहाल किसी को भी यह उम्मीद नहीं थी कि अजीत पवार परिवार से अलग हो जाएंगे। 

उद्धव ठाकरे के परिवार की महत्वाकांक्षा
गत दिनों उद्धव ठाकरे ने एन.डी.ए. से अलग होने और मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोकने का फैसला लिया जिसके पीछे उनकी पत्नी रश्मि और सामना के सम्पादक संजय राऊत का दबाव माना जा रहा है। विधानसभा चुनावों के दौरान शुरू में उद्धव ठाकरे के बड़े बेटे आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश किया गया।

चुनाव के बाद शुरू में शिवसेना भाजपा नीत सरकार में आदित्य को उपमुख्यमंत्री बनाना चाहती थी लेकिन सूत्रों के अनुसार जब रश्मि ने देखा कि भाजपा बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है तो उन्होंने अपने पति पर दबाव डाला कि उन्हें (उद्धव ठाकरे को) आधे कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री बनाया जाए तथा संजय राऊत ने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर उद्धव ठाकरे के नाम की घोषणा कर दी। इसके बाद मुम्बई की गलियों में उद्धव ठाकरे और उनके बेटे के पोस्टर नजर आने लगे तथा रश्मि ने घर पर और कुछ सार्वजनिक समारोहों में पार्टी की बैठकों में भाग लेना शुरू कर दिया। संजय राऊत शिवसेना के प्रवक्ता हैं और उनकी एंजियोप्लास्टी होने के बावजूद उन्हें प्रैस कांफ्रैंस करनी पड़ी। उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने की परिवार की महत्वाकांक्षा के कारण शिवसेना को एन.डी.ए. से नाता तोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। 

दिल्ली में पानी का मुद्दा
दिल्ली विधानसभा का चुनाव  नजदीक आते ही आप और भाजपा में जंग तेज होती जा रही है और दोनों में से कोई भी मौका नहीं चूकना चाहता। अब वर्तमान में भाजपा यह दावा कर रही है कि आप सरकार दिल्ली में लोगों को मुफ्त पानी दे रही है लेकिन पानी की गुणवत्ता ठीक नहीं है। भाजपा का दावा है कि पहले दिल्ली वासियों को पानी की कीमत देनी पड़ती थी  लेकिन उस समय पानी साफ था और इस समय आप सरकार गंदे पानी की सप्लाई कर रही है। 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को कहा कि पानी के मसले पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। केजरीवाल का यह बयान दिल्ली सरकार के उस दावे के एक दिन बाद आया है जिसमें यह कहा गया था कि राज्य में पानी पीने के लिए उपयुक्त है। इस बीच आप ने भाजपा पर यह कहते हुए प्रहार करना शुरू कर दिया है कि वह दिल्ली में अनधिकृत कालोनियों को नियमित नहीं कर रही है। केन्द्रीय कैबिनेट पहले ही अनधिकृत कालोनियों को नियमित करने का फैसला ले चुकी है लेकिन इस संबंध में कोई कानून नहीं बनाया गया है। यही कारण है कि आप भाजपा पर आक्रामक हो रही है और वह इसे आगामी चुनावों में मुद्दा बनाना चाहती है।-राहिल नोरा चोपड़ा
              


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