वायु प्रदूषण आर्थिक विकास पर प्रभाव डालता है
punjabkesari.in Monday, Nov 06, 2023 - 05:18 AM (IST)

पारम्परिक ज्ञान वायु प्रदूषण को आर्थिक विकास के एक अपरिहार्य उप-उत्पाद के रूप में खारिज कर देता है जो समस्या पर नीति प्रतिक्रिया तैयार करने की तात्कालिकता को सीमित कर देता है। हालांकि बहुत सारे नए शोध इसकी ओर इशारा करते हैं। वायु प्रदूषण का सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि और प्रति व्यक्ति आय के स्तर पर सीधा और दुर्बल प्रभाव पड़ता है जिससे श्रमिक उत्पादन कम हो जाता है। उपभोग आधारित सेवाओं में उपभोक्ता की संख्या कम हो जाती है जिससे बाधा उत्पन्न होती है। परिसम्पत्ति उत्पादकता और विशेष रूप से उत्पादक आयु ग्रुपों में स्वास्थ्य खर्च और कल्याण आबंटन में वृद्धि लक्षित होती है।
यह भारत जैसे देश के लिए विशेष रूप से चिंताजनक है जहां प्रमुख आॢथक केंद्र प्रभावित हैं। दिल्ली-एन.सी.आर. क्षेत्र अब हर सॢदयों की शुरूआत में उच्च प्रदूषण के आवर्ती चरण का सामना करता है। मुम्बई दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी के बाद प्रदूषणकारी धुंध से निपटने के लिए संघर्ष कर रहा है।
प्रभाव की सीमा : आर.बी.आई. के आर्थिक विभाग और पॉलिसी रिसर्च (डी.ई.पी.आर.) ने मुद्रा और वित्त 2022-23 पर अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा है कि अत्यधिक गर्मी और घरेलू परिवर्तन के मुद्दों से श्रम के घंटों की हानि के कारण 2030 तक भारत की जी.डी.पी. का 4.5 प्रतिशत जोखिम पर हो सकता है। यदि प्रमुख विनिर्माण और सेवा केंद्रों में प्रदूषण के वार्षिक चक्करों का प्रभाव उस अनुमान में जोड़ा जाता है जो आर्थिक उत्पादकता पर व्यय कहीं अधिक होगा। जून 2023 में विश्व बैंक के एक पेपर के साक्ष्यों की ओर इशारा किया गया कि स्वास्थ्य, उत्पादन और अन्य आर्थिक रूप से प्रासंगिक परिणामों पर वायु प्रदूषण के सूक्ष्म स्तर के प्रभाव कुल मिलाकर ऐसे प्रभाव हैं जो सकल घरेलू उत्पाद में साल-दर-साल बदलाव में देखे जा सकते हैं। विश्लेषण आधारित रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लगभग 550 जिलों का डाटा भारत की वास्तविक जी.डी.पी. में 90 प्रतिशत योगदान देता है। द लांसेट प्लैनेटरी हैल्थ में 2021 के एक पेपर में जिसने भारत में मृत्यु दर और रूग्णता पर वायु प्रदूषण के प्रत्यक्ष प्रभावों का अध्ययन किया जिसके तहत राज्य सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में आर्थिक नुक्सान में बड़ी अंतर्राज्यीय भिन्नताएं पाई गईं।
प्रभाव के चार क्षेत्र : कर्मचारी खोए हुए समय की भरपाई के लिए अधिक काम कर सकते हैं जिसके परिणामस्वरूप जलन, नौकरी छूटना और प्रतिभा को आकॢषत करने में कठिनाई हो सकती है। निवेश चैकिंग और साफ्टवेयर विकास जैसे मानसिक उत्पादन पर निर्भर क्षेत्र अतिरिक्त असुरक्षित हैं। जब हवा खराब होती है तो लोग घर के अंदर ही रहते हैं। 2019 में यदि प्रदूषण के स्तर में सुधार होता तो उपभोक्ता संबंधित कारोबार को 22 बिलियन डालर का राजस्व प्राप्त हो सकता था। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे कम प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद वाले राज्यों में कपड़ा खरीदने में घाटा हुआ।
यह प्रासंगिक है क्योंकि आर.बी.आई. के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत की जी.डी.पी. का 50 प्रतिशत उन क्षेत्रों से आता है जो गर्मी के सम्पर्क में है। सल्फर डाइऑक्साइड और अन्य प्रदूषक इलैक्ट्रॉनिक सर्किटरी के क्षरण को तेज करते हैं जो आई.टी. परिसम्पत्तियों को प्रभावित करता है। वायु जनित प्रदूषक कृषि उपज में 5 से 12 प्रतिशत की हानि का कारण बनते हैं। असामयिक मौतों से आर्थिक नुक्सान भी वायु प्रदूषण के चलते होता है। 2019 में भारत में सभी मौतों में से 18 प्रतिशत के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार था। यानी कि 3.8 मिलियन कार्य दिवसों का नुक्सान झेलना पड़ा। क्लीन एयर फंड, ब्लू स्काई एनालिटिक्स और भारतीय उद्योग परिसंघ के साथ सांझेदारी में डालबर्ग एडवाइजर्स की अपनी तरह की पहली रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि वायु प्रदूषण के कारण भारतीय व्यवसायों को सालाना करीब 95 बिलियन डालर की लागत आती है जो भारत की जी.डी.पी. का लगभग 3 प्रतिशत है।
सितम्बर 2021 में प्रकाशित अध्ययन में पूरे भारत में वास्तविक साक्ष्य एकत्रित किए गए। नवम्बर और जनवरी के बीच अत्यधिक प्रदूषित अवधि के दौरान मुम्बई के लिंकिंग रोड शॉपिंग जिले में ग्राहकों की संख्या में 5 प्रतिशत की गिरावट आई। उच्च प्रदूषण वाले दिनों में एक सौर ऊर्जा कंपनी ने अपने सौर पैनलों की उत्पादकता में 13 प्रतिशत की कमी दर्ज की जिससे भारत में सौर ऊर्जा के लिए आर्थिक व्यावहार्यता कम हो गई। अध्ययन में कहा गया है कि खराब वायु गुणवत्ता की लागत 6 अलग-अलग तरीकों से प्रकट होती है। (1) कम श्रम उत्पादकता, (2) कम उपभोक्ता फुटफॉल, (3) कम परिसम्पत्ति उत्पादकता, (4) स्वास्थ्य खर्च में वृद्धि, (5) कल्याणकारी नुकसान और (6) असामयिक मृत्यु।
भारत के लिए चुनौती : दुनिया के सबसे खराब वायु प्रदूषण वाले 30 शहरों में से 20 से अधिक भारत में है। वैश्विक स्तर पर शहरों में दिल्ली की वायु गुणवत्ता सबसे खराब है जोकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) के लक्ष्य से लगभग 10 गुणा अधिक है। दिल्ली को प्रमुख भारतीय शहरों में प्रदूषण के कारण प्रति व्यक्ति आर्थिक नुकसान के उच्चतम स्तर वाले शहर के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। भारत के लिए जहां रोजगार सृजन अभी भी बड़े पैमाने पर आर्थिक गतिविधियों से जुड़ा है जिसमें बाहरी क्षेत्र-कृषि, निर्माण, वितरण सेवाएं, सुरक्षा एजैंसी का काम आदि शामिल है। हालांकि वायु प्रदूषण घरेलू नौकरियों की उत्पादकता पर भी असर डालता है।-अनिल ससी