एयर इंडिया ने रखी हुई है ‘निखट्टुओं की फौज’

punjabkesari.in Friday, Jun 24, 2016 - 01:36 AM (IST)

(डा. चरणजीत सिंह गुमटाला): एक समय था, जब एयर इंडिया ‘महाराजा’ के नाम से दुनिया भर में प्रसिद्ध थी और भारतीयों को इस पर गर्व था। यह लाभ अर्जित करती थी लेकिन 2007 में जब तत्कालीन नागर विमानन मंत्री ने बिना जरूरत के विमानों का आर्डर दे दिया तो इंडियन एयरलाइन्स एवं एयर इंडिया का विलय करके भारतीय राष्ट्रीय विमानन कम्पनी (एन.ए.सी. आई.एन.) गठित कर दी गई तथा इंडियन एयरलाइंस के सभी लाभ कमाने वाले मार्ग किंगफिशर कम्पनी को दे दिए गए। परिणाम यह हुआ कि इंडियन एयरलाइंस 40000 करोड़ रुपए की ऋणी हो गई थी। 

 
इस समय एयर इंडिया की सभी अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानें घाटे में चल रही हैं, जबकि जैट एयरवेज की अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानें लाभ अर्जित कर रही हैं। सरकारी कम्पनी होने के कारण एयर इंडिया के प्रबंधकों ने अतीत से कोई सबक नहीं सीखा। एयर इंडिया ने विदेशों में ऐसे शहरों में भी निखट्टुओं की फौज रखी हुई है जहां इसका कोई विमान नहीं जाता। विदेशों में स्टाफ को महंगी कोठियों के अलावा वेतन भी अधिक दिया जाता है। इसके अलावा विशेष भत्ते, बच्चों की पढ़ाई का खर्च और अन्य सुविधाएं भी देनी पड़ती हैं। 31 मई 2014 को इंगलैंड के समाचार पत्र डेली मेल द्वारा दी गई रिपोर्ट के अनुसार एयर इंडिया के 53 विदेशी स्टेशन हैं, जिनमें से 24 आफलाइन हैं। यानी कि वहां पर कोई उड़ान नहीं जाती। ये केवल सरकारी कागजों में ही हैं और इन्हें ‘भूत स्टेशन’ कहा जा सकता है।
 
न्यूयार्क में 55 मैनेजर, शिकागो में 13 और टोरंटो (कैनेडा) में 17 मैनेजर हैं, हालांकि टोरंटो में एयर इंडिया की कोई उड़ान नहीं जाती और न्यूयार्क में भी केवल एक ही उड़ान जाती है। इसी प्रकार लॉस एंजल्स तथा वाशिंगटन में बिना किसी उड़ान के भी क्रमश: 5 और 2 मैनेजर हैं। जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में केवल 1 उड़ान जाती है लेकिन वहां 17 मैनेजर हैं। पैरिस में भी केवल एक उड़ान के लिए 12 मैनेजर हैं और लंदन में 3 उड़ानों के लिए 6 मैनेजर हैं।
 
इस बारे में एयर इंडिया के अधिकारियों का कहना है कि विदेशों में आनंद उड़ा रहे कई अधिकारियों को तरक्की दी गई है और उन्हें भारत वापस आने को कहा गया है, लेकिन उन्होंने निजी कारणों के चलते देश लौटने से इन्कार कर दिया है। जिन स्थानों पर कोई उड़ान नहीं जाती, उनके बारे में अधिकारियों का कहना है कि मार्कीटिंग यानी कि व्यापारिक कार्यों के लिए ऐसा करना जरूरी है। 
 
भारत सरकार अब तक एयर इंडिया को 30000 करोड़ रुपए दे चुकी है। इसके बावजूद दिसम्बर 2015 में इसका ऋण 50000 करोड़ रुपए था। 15 मार्च 2016 को नागर विमानन राज्य मंत्री महेश शर्मा ने संसद में बताया कि गत वर्ष 636.18 करोड़ रुपए के घाटे के स्थान पर इस वर्ष पैट्रोल सस्ता होने के कारण एयर इंडिया ने 8 करोड़ रुपए का लाभ अर्जित किया है। एयर इंडिया को घाटे में से निकालने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है। उदाहरण के तौर पर प्रथम श्रेणी की सीटें विमानों में खाली रहती हैं, इसलिए यह फैसला किया गया था कि इन सीटों को समाप्त कर दिया जाए। लेकिन शायद अफसरों और मंत्रियों के स्वार्थों के मद्देनजर इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। 
 
जब 2012 में हड़ताल हुई तो उस समय नागर विमानन मंत्री अजित सिंह ने कहा था कि सरकार का काम व्यावसायिक संस्थान चलाना नहीं है, परन्तु यह देखने वाली बात है कि यदि प्राइवेट कम्पनियां लाभ अर्जित कर सकती हैं तो सरकारी क्यों नहीं? आखिर भारत ने 2 नागरिक विमानन मंत्री क्यों रखे हुए हैं? प्रधानमंत्री और मंत्रियों को जवाबदार क्यों नहीं बनाया जाता? 
 
देश की सबसे बड़ी विमानन कम्पनियों स्पाइस जैट, इंडिगो एवं जैट एयरवेज लगातार अपने मुनाफे में  वृद्धि कर रही हैं और देश के अंदर 70 प्रतिशत हवाबाजी बाजार पर कब्जा जमा लिया है। इसके विपरीत एयर इंडिया की बाजार हिस्सेदारी जो 2007 में 35 प्रतिशत थी, जनवरी 2016 तक केवल 16 प्रतिशत रह गई है। 
 
2007 में जब एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का विलय किया गया तो उस समय नई कम्पनी में 30000 से अधिक कर्मचारी थे, यानी कि प्रत्येक विमान पर 256 कर्मचारी। यह संख्या अन्तर्राष्ट्रीय औसत से दोगुनी थी। एयर इंडिया अपनी आय का 20 प्रतिशत हिस्सा कर्मचारियों के वेतन तथा अन्य सुविधाओं पर खर्च करती है। जबकि जैट एयरवेज के मामले में यह आंकड़ा 10 प्रतिशत ही है। 
 
जैट एयरवेज ने विदेशों में अपना स्टाफ नहीं रखा हुआ है, बल्कि वहां अपना काम विदेशी कम्पनियों को दिया हुआ है। क्या इंडियन एयरलाइन भी जैट एयरवेज की तर्ज पर विदेशी उड़ानों का संचालन नहीं कर सकती? बेहतर यही होगा कि फस्र्ट क्लास और बिजनैस क्लास की सीटें तत्काल समाप्त की जाएं एवं सुप्रीम कोर्ट के नेतृत्व में एक विशेष टीम का गठन करके एयर इंडिया का कामकाज सुधारने की योजना तैयार की जाए। 
 

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