कृषि कानून वापसी : सिख खुश तो हैं लेकिन भरोसा नहीं

Friday, Nov 26, 2021 - 05:19 AM (IST)

श्री गुरु नानक देव जी के 552वें प्रकाश पर्व पर तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐलान के बाद उम्मीद थी कि आंदोलनकारी सिख एवं किसान बार्डर खाली कर अपने घरों को कूच कर जाएंगे लेकिन अब उन्होंने नए पेंच के साथ अपने कदम रोक लिए हैं। किसान संगठनों ने बाकी किसानी मांगों को भी आगे कर दिया है। आंदोलनकारी सिख बिल वापसी पर खुश तो हैं, लेकिन उनके दिल में टीस है। 

आंदोलन लंबा खिंचने, अनगिनत किसानों की मौत का दर्द उन्हें अभी है। यही कारण है कि उन्हें अभी भी पूरा भरोसा नहीं है। वे चाहते हैं कि जिस संसद ने काले कानूनों को पास किया था, उसी संसद से बिल खारिज किया जाए। इस सब के दौरान सरकार और किसानों के बीच खींचतान अभी भी थम नहीं रही। संयुक्त किसान मोर्चे ने एम.एस.पी. गारंटी का कानून बनाने का नया दांव खेल दिया है। हालांकि इससे पहले किसान संगठन तीनों कृषि बिल वापस लेने पर अड़े हुए थे। साथ ही कह रहे हैं कि सरकार संसद में लाए जा रहे बिजली बिल में किसान सबसिडी समाप्त करने के प्रावधान को रद्द करे। स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर फसल की लागत से दोगुना एम.एस.पी. देने पर सरकार बाध्य हो। 

इस टकराव के बीच बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तीनों बिलों को खारिज करने का प्रस्ताव मंजूर कर दिया है। 29 नवम्बर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में खेती कानूनों को रद्द करके राष्ट्रपति से इसकी मंजूरी ली जाएगी। हरियाणा और पंजाब में किसानों से गेहूं और चावल खरीदने के लिए सरकारी मंडी है लेकिन अन्य उपजों की खरीद सरकार एम.एस.पी. निर्धारित करने के बावजूद नहीं करती। इनमें बाजरा, कपास आदि शामिल हैं। 

किसान चाहते हैं कि जिन वस्तुओं का एम.एस.पी. सरकार निर्धारित करती है, उनके लिए किसान को गारंटी दी जाए कि बाजार में एम.एस.पी. से कम खरीद नहीं होगी और कम पर खरीदने वाले व्यापारी पर जुर्माना लगाया जाएगा। इसके साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड के किसानों की मांग है कि सरकारी मंडियां न होने के कारण उन्हें सरकार के एम.एस.पी. ऐलान के बावजूद मजबूरी वश अपनी फसल को औने-पौने दामों पर बाजार में बेचना पड़ता है। इस वजह से उनका आर्थिक शोषण होता है। 

पंजाब से शुरू हुई किसान आंदोलन की आग अब हरियाणा, यू.पी., उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और दक्षिण के कई राज्यों तक फैल चुकी है, जिस वजह से किसान संगठन सरकार से आर-पार का रास्ता तैयार करके खड़े हुए हैं। सियासी पार्टियां चाह कर भी किसान संगठनों का विरोध नहीं कर पा रहीं। 

अब सिखों के निशाने पर कंगना रनौत : किसान आंदोलन की शुरू से ही आलोचक रही फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत अब सिखों के निशाने पर है। प्रधानमंत्री के कृषि बिलों के वापसी के ऐलान पर अपनी सोशल मीडिया पोस्ट के कारण उसने अपने खिलाफ एफ.आई.आर. करवा ली है। मुंबई के खार पुलिस स्टेशन में सिख संगठनों ने कंगना के खिलाफ धार्मिक भावनाएं भड़काने के आरोप में केस दर्ज करवा दिया है। 

कंगना रनौत ने पहले किसान आंदोलन में शामिल महिलाओं को 100 रुपए दिहाड़ी पर आने की बात कही थी। इसके बाद लगातार किसान विरोधी टिप्पणियां करती रही। सिख संगठनों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को कंगना से पदमश्री पुरस्कार वापस लेने की चिट्ठी लिखी है। वहीं, महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक ने भी उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की हिमायत की है। अब देखना यह होगा कि सिखों को मच्छर बताने वाली कंगना की गिरफ्तारी कब होगी। 

तीन महीने बाद भी गुरुद्वारा कमेटी का गठन नहीं, स्थिति स्पष्ट नहीं : 25 अगस्त, 2021 को हुए दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के आम चुनावों को आज पूरे तीन महीने हो गए लेकिन स्थिति स्पष्ट नहीं है। चुनाव में शिरोमणि अकाली दल बादल को स्पष्ट बहुमत मिल चुका है लेकिन कार्यवाहक अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा की अयोग्यता का मसला उलझने के चक्कर में नई कमेटी का गठन नहीं हो पा रहा। विरोधियों के हस्तक्षेप के चलते उनकी दावेदारी अदालत में उलझ गई है और तारीख पर तारीख पड़ती जा रही है। अब अगली तारीख 9 दिसम्बर निर्धारित है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद ही नई कमेटी का गठन हो जाएगा। 

भाजपा क्या अकाली दल को छोटा भाई बनाएगी : पंजाब में अपनी जमीन तलाश रहे शिरोमणि अकाली दल का निशाना इस बार शहरी हिंदू वोटरों पर था। इसके लिए बाकायदा पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने ऐलान किया था कि सरकार बनने पर किसी हिंदू को डिप्टी सी.एम. बनाया जाएगा। उस समय अकाली दल का शीर्ष नेतृत्व यह मानकर चल रहा था कि किसान आंदोलन के कारण भाजपा के खिलाफ उपजे गुस्से के बाद शहरी हिंदुओं का वोट अकाली दल की तरफ स्थानांतरित हो सकता है लेकिन एकाएक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मास्टर स्ट्रोक के बाद भाजपा सामने आ गई है और अपने परंपरागत शहरी हिंदू वोटरों को जोडऩे में जुट गई है। भाजपा पहले ही अकेले पंजाब चुनाव लडऩे का ऐलान कर चुकी है। बदले हालात के बीच भाजपा को पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की नई पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस का समर्थन मिल सकता है। 

इस बीच यह कयास भी लगाए जा रहे हैं कि शिरोमणि अकाली दल वापस भाजपा के साथ गठबंधन कर सकता है। भाजपा के पंजाब प्रभारी दुष्यंत गौतम ने इस संभावना को खारिज भी नहीं किया है लेकिन यह कह कर सबको चौंका दिया कि अगर गठबंधन हुआ तो भाजपा पंजाब में बड़े भाई की भूमिका निभाएगी, जिसका सीधा अर्थ होगा कि पंजाब में मुख्यमंत्री भाजपा का होगा। इस सबके बीच बादल का भी बयान आया है कि हम जिसकी बाजू पकड़ लेते हैं उसे छोड़ते नहीं और हम बसपा के साथ खुश हैं तथा गठबंधन ठीक है। वहीं दूसरी ओर कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए ऐलान कर दिया है कि उनकी पार्टी भाजपा उम्मीदवारों के हक में यू.पी. और उत्तराखंड के तराई वाले इलाके में सिख मतदाताओं के बीच प्रचार करेगी।-दिल्ली की सिख सियासत सुनील पांडेय

Advertising