अग्निपथ आक्रोश : अंदरूनी और बाहरी प्रभाव

punjabkesari.in Friday, Mar 08, 2024 - 05:41 AM (IST)

जब इंसाफ की प्राप्ति के सभी प्रयास विफल हो जाएं तो पीड़ित व्यक्ति या संस्था आखिरी हथियार के तौर पर अदालतों का सहारा लेती है। वैसे तो जब राजनेताओं और कार्यपालिका ने भी अपने सिर से भार उतारने हों तो वह या तो सर्वोच्च न्यायालय तक रुख करती है या फिर टाल-मटोल वाली नीति ही अपनाती रहती है। 

यही कुछ वर्तमान किसान आंदोलन के दौरान देखने को मिल रहा है। किसान तथा जवान दोनों ही देश की जान और शान हैं। वैसे तो जवान किसानों से ही मुख्य रूप में पैदा होते हैं और देश की सीमाओं की रक्षा करने के उपरांत उनमें ही समा जाते हैं। इसलिए इन दोनों के बीच परस्पर संबंध ही नहीं बल्कि एक-दूसरे पर निर्भरता भी दिखाई देती है। यदि इनकी जायज मांगों और समस्याओं की ओर ध्यान न दिया गया तो देश का बहुउद्देशीय विकास तथा सुरक्षा भी प्रभावित होगी। यदि केवल अग्रिपथ योजना की बात की जाए तो वर्तमान में संसद की स्थायी कमेटी आन डिफैंस ने सैन्य वर्ग की भलाई से संबंधित पहलुओं विशेष तौर पर अग्रिवीरों के मामले में कुछ सिफारिशों वाली रिपोर्ट सरकार को सौंपी है जिसके ऊपर कार्रवाई करने की जरूरत होगी। इससे पहले कि कमेटी की सिफारिशों पर चर्चा की जाए अग्रिपथ योजना के इतिहास पर थोड़ी निगाह मारनी जरूरी है। 

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 14 जून 2022 को तीनों सेना प्रमुखों की उपस्थिति में अचानक अग्रिपथ योजना की घोषणा कर दी। करीब 3 वर्षों से सेना, नौसेना और वायुसेना में स्थायी भर्ती खुलने के इंतजार में बैठे युवा भड़क उठे। देश के कई राज्यों के अंसतुष्ट युवाओं ने अग्रिपथ योजना के खिलाफ सड़कों पर आकर प्रदर्शन किए। योजना के अनुसार 17  से 21 वर्ष के बीच की आयु वाले 10 से 12 श्रेणी तक पास युवाओं की 30,000 प्रति माह वेतन पर 4 वर्षों के लिए अस्थायी भर्ती होनी है उनमें से केवल 25 प्रतिशत योग्य अग्रिवीर ही 15 वर्षों तक नौकरी  कर सकेंगे और बाकियों की कुछ वित्तीय लाभों के साथ छंटनी कर दी जाएगी। 

बाज वाली नजर : पार्लियामेंट स्टैंडिंग कमेटी ऑन डिफैंस की 31 सदस्यीय कमेटी जिनके चेयरमैन भाजपा के सांसद जुआल ओरम हैं, ने 8 फरवरी को जो रिपोर्ट सरकार को सौंपी उसमें सैनिक कल्याण से जुड़े अन्य मुद्दों के अतिरिक्त यह भी दर्ज है कि जो अग्रिवीर लाइन ऑफ ड्यूटी पर मारे जाते हैं उनके परिवारों को भी स्थायी सैनिकों के आश्रितों/विधवाओं की तरह पैंशन और सहूलियतें प्रदान की जाएं। नशा प्रेरित बेरोजगार और मुसीबतों को झेलते युवकों के लिए सीमित समय के लिए रोजगार उपलब्ध करवाने की खातिर अग्रिपथ स्कीम किसी सीमा तक सहायक तो हो रही है। जून 2023 में प्रथम बैच के 18899 अग्रिवीरों के बीच में से बहुत से लोगों को विभिन्न यूनिटों में शामिल कर लिया गया है तथा दूसरे चरण की भर्ती प्रक्रिया भी जारी है। मगर 15 वर्ष की नौकरी के उपरांत भी पैंशन नहीं मिलेगी। 

ई.सी.एच. (मैडीकल) तथा कैंटीन जैसी सहूलियतों से भी वंचित रखा जाएगा तथा वे सरकारी नौकरियों के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की आरक्षण नीति का फायदा भी नहीं ले सकेंगे क्योंकि उन्हें एक्स सॢवसमैन का दर्जा  ही प्राप्त नहीं होगा। नौकरी के दौरान प्रोमोशन तथा कमिशन भी प्रभावित होगी। अग्रिवीर अमृत पाल सिंह, अजय सिंह तथा अक्षय लक्ष्मण गावड़े जम्मू-कश्मीर के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में अभी अपनी पलटनों में शामिल हुए ही थे कि उनकी मौत हो गई जिसने कई सवाल पैदा कर दिए हैं। पहले तो प्रशिक्षण की कमी, फिर हाई आल्टीच्यूड में तैनाती तथा अमृतपाल को सेना की ओर से आत्महत्या वाला केस घोषित करते हुए अंतिम विदायगी के समय सैरेमोनियल सम्मान न देना भी शामिल है। परिवर्तन कुदरत का नियम है। अगर परिवर्तन प्रबंधन की रूप-रेखा और सिद्धांत की अवहेलनाएं की जाएंगी तो इसका खमियाजा समस्त मानवता को भुगतना पड़ सकता है। 

यदि किसी भी देश या संस्था ने विकास के मार्ग पर चलना है तो उसका उद्देश्य परिवर्तन को जनता पर जबरन थोपने से पहले प्रभावित पक्षों को भरोसे में लेकर सौहार्द वातावरण तैयार करना जरूरी है। अफसोस की बात है कि राजनीतिक नेताओं के समक्ष न तो हमारे जरनैल और न ही सियासतदान सही परामर्श सुझाते हैं और न ही हिम्मत जुटाते हैं। यह देश और सेना के हित में होगा कि अग्रिपथ और सैन्य भलाई से जुड़े पहलुओं के बारे में कमेटी की सिफारिशों को आने वाली सरकारें लागू करें। वैसे तो अग्रिवीर राजनीति का मुद्दा भी बन चुका है।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.) 
 


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