महाराजा रणजीत सिंह की मौत के बाद निरंतर गिरावट की ओर है सिख कौम

punjabkesari.in Thursday, Jul 27, 2023 - 05:35 AM (IST)

पंजाब गुरुओं की धरती है और उन्हीं के नाम से जीती है। इसका भाव यह है कि गुरुओं के उपदेश और उनके आदेश पंजाबी जीवन की संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। उत्कृष्ट गुणों की धनी पंजाबी कौम 1839 को महाराजा रणजीत सिंह की मौत के बाद लगातार गिरावट की ओर है। आज स्थिति यह है कि यह आर्थिक तौर पर दिवालिया, राजनीतिक रूप से हारी हुई, सामाजिक तौर पर जात-पात में बंटी हुई और नशों की दलदल में कैद नजर आती है। यहां का नवयुवक विदेशों की ओर रुख कर रहा है। चोरी, डकैती तथा फिरौती के लिए अपहरण तथा हत्याओं की भरमार के कारण गुरुओं की धरती पूरी तरह से असुरक्षित नजर आती है। 

किसी भी कौम के नेता रत्न होते हैं। आज यह नायक फिल्मी या अपराधी बने हुए हैं। इनके पीछे किसी तरह का सरकारी तंत्र चलता हुआ नजर आता है। राजा पोरस के बाद गुरु साहिबान के आदेश के साथ खालसा राज स्थापित करने वाले बाबा बंदा सिंह बहादुर, नवाब कपूर सिंह, स. जस्सा सिंह आहलूवालिया, स. चढ़त सिंह, बाबा दीप सिंह, जस्सा सिंह रामगढिय़ा, स. बघेल सिंह तथा इसके बाद महाराजा रणजीत सिंह, स. हरिसिंह नलवा, अकाली फूला सिंह, राजा शेर सिंह अटारी वाला इत्यादि जैसे नायकों ने दर्रा खैबर से दिल्ली तक कौम के ध्वज बुलंद किए। 

इन सबकी विरासत को लोग भूल रहे हैं। अणख या गैरत की जन्मघुट्टी के साथ पैदा हुई इस सिख कौम को  बांटने के लिए विरोधियों ने इन्हें झूठ के धुएं में खड़ा कर दिया है। कौम को दोफाड़ कर एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर रखा है। मुगल, अफगानी तथा अंग्रेजों ने भी इसी तरह से सिख कौम को बांटा। महाराजा रणजीत सिंह को दिल्ली फतेह करने से रोकने के लिए अंग्रेजों को कलकत्ते से आमंत्रित किया। अंग्रेजों की चापलूसी करने वाले स्वतंत्र भारत में पहले वजीर बन गए। असली सिख नायकों के चरित्र और जीवन पर दोष लगाकर सिख कौम को दिशाहीन कर दिया गया है। निजी फायदे के लिए कौम को गलत रास्ते पर डाल कर अपना लाभ लेने वाले कई अग्रणी नेता बन रहे हैं। यही कारण है कि आज यह कौम दिशाहीन हो गई है और अपने लक्ष्य से कोसों दूर चली गई है। 

महाराजा रणजीत सिंह के परिवार के वारिस महाराजा दलीप सिंह को फिर से सिख धर्म की ओर वापसी करने  के लिए कहने वाली मां महारानी जिंद कौर के बाद उसके पोते-पोतियों को सिख धर्म की ओर लेकर आने वाला कोई नहीं था। बहादुर सिखों को दुनिया भर में केवल लडऩे-मरने के लिए अंग्रेजों ने इनका इस्तेमाल किया या फिर इनसे मजदूरी करवाने के लिए कीनिया, फिजी, हांगकांग आदि देशों की ओर भेज दिया। न तो धर्म की मान्यता को रहने दिया और न ही सिखी का प्रचार करने दिया। 

गुरु घरों पर भी प्रबंधकों के माध्यम से कब्जा कर लिया गया। कभी किसी ने सोचा है कि अंग्रेजी साम्राज्य के समय पंजाब में ही अपने बुजुर्गों के धर्म की ओर वापस लौटने की मुहिम क्यों चलाई गई थी? स्वामी विवेकानंद तथा पंडित मदन मोहन मालवीय तो गुरु गोङ्क्षबद सिंह जी के उसूलों पर चलने के लिए हर हिंदू परिवार को एक बेटा सिख बनाने के लिए कह रहे थे। कुछ पंजाबी नौजवान तो फ्रांस तथा रूस की क्रांति से प्रभावित सिख स्वरूप में रह कर भी सिख धर्मों की मान्यताओं से अलग हो गए। ऐसे लोग आज भी हैं। हाथों से मेहनत करना छोड़ चुके पंजाबी नौजवानों को हालातों ने अपना घर छोडऩे के लिए मजबूर कर दिया।

जायज और नाजायज तरीके से विदेश जाने के लिए यह युवक भारत विरोधी विदेशी एजैंसियों की झोली में जा गिरता है जिस कारण राजनीतिक शरण प्राप्त करने के लिए खालिस्तानी नारे लगाता नजर आता है। ऐसा रुझान पंजाब तथा सिख कौम के लिए बेहद घातक है। बड़ी गिनती में सिख पंजाब सहित देश के हर प्रांत में बसता है। विदेशों में रहते पंजाबी सिखों की गिनती बेहद कम है। विदेशों में बसते पंजाबियों में से भारत विरोधी विदेशी एजैंटों की गिनती तो मुट्ठी भर भी नहीं मगर समस्या बन जाती है जब लोग डरते हुए मौन हो जाते हैं और इनके खिलाफ आवाज बुलंद नहीं करते। कुछ भारतीय मूल के लोग इन एजैंटों के साथ खड़े हो जाते हैं। 

क्या कोई विश्व में ऐसा देश है जहां पर नस्ल और धर्म के आधार पर भेदभाव न होता हो। लेकिन भारत में ही एक काली घटना को दुनिया भर में क्यों बढ़ा-चढ़ा कर कहा जाता है। विदेशों में बैठा प्रवासी क्यों सच जानने या पीड़ित के साथ खड़े होने के स्थान पर भारत में मानवीय अधिकारों की उल्लंघना के गीत गाने लग जाता है? कुछ मुट्ठी भर लोग विदेशी शह पर जनमत करवाने की बात करते हैं और कभी भारतीय दूतावासों पर हमले करने की बात करते हैं। यदि कनाडा, अमरीका, इंगलैंड और आस्ट्रेलिया इत्यादि देशों की धरती पर खालिस्तान बनाना है तो वहां के लोगों की सेवा करो, यदि खालसा की राजधानी लाहौर फतेह करनी है तो वहां के लोगों से बात करो, यदि 1947 में देश के बंटवारे के समय जमीन से जुड़े रहने के लिए अपना धर्म छोड़ चुके लोगों से बात की जाए। शायद वह फिर से सिख बन जाएं। इसलिए पंजाबियों को सच का साथ देना चाहिए। बातचीत के साथ विकास का मार्ग पकडऩा चाहिए। इस धरती पर सिख  धर्म या सिख कौम को कोई खतरा नहीं है।-इकबाल सिंह लालपुरा


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