सम्राट अशोक के तलवार छोडऩे के बाद विदेशी आक्रमणकारियों का रास्ता खुला

punjabkesari.in Saturday, Aug 13, 2022 - 04:28 AM (IST)

स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे हर हाल में लेकर रहेंगे। यह शब्द भारत के लासानी स्वतंत्रता सेनानी, प्रतिष्ठित राजनीतिज्ञ, विधिवेता और समाज सुधारक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने शेर की तरह दहाड़ते हुए सदियों से गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए विशाल संस्कृति एवं शूरवीरता को भुलाकर चादर तान कर सोए हुए भारतीयों में नए खून का संचार कर दिया। हकीकत में यह अंग्रेज हुकूमत के लिए एक चेतावनी ही नहीं बल्कि एक चुनौती भी थी। उनको कुछ अन्य केसों के साथ 6 वर्ष की कारावास में भेज दिया गया। उनके मुकद्दमे की पैरवी उस समय के प्रतिष्ठित बैरिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना ने की थी। तिलक को भारत के राष्ट्रवाद का पितामह कहा जाता है। परंतु अंग्रेज इसे अशांति का पितामह कहते थे। 

जिस दिन सम्राट अशोक ने तलवार कमर से उतारकर जमीन पर रख दी। उसके परिणामस्वरूप देश विदेशी आक्रमणकारियों के लिए खुल गया। हूण, शक, यूनानी, ईरानी, दोरानी, मंगोल, तुर्क, पठान, अफगान, अंग्रेज, डच, फ्रांसीसी, पुर्तगीजियों ने भी भारत के कुछ इलाकों पर कब्जा कर लिया। ईस्ट इंडिया कंपनी के मुट्ठी भर अंग्रेज व्यापार करने के लिए भारत आए। परंतु वह हमारी कमियों और कमजोरियों को देखते हुए भारत के ही शासक बन बैठे। 

अंग्रेजों ने समूचे देश में एक ही प्रशासनिक व्यवस्था एक ही न्यायिक व्यवस्था, एक तरह के कानून, एक तरह की करंसी और एक ही तरह की सरकारी सेवाओं का भी प्रबंध कर दिया था। पश्चिमी शिक्षा प्रणाली ने भारत में राष्ट्रवाद को स्थापित करने में बड़ी सहायता की। 

अंग्रेजों ने भारत के अंदर कई स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी स्थापित कर दी थी। इस पश्चिमी शिक्षा से भारतीयों को पश्चिम के चिंतकों, दानिशमंदों, दार्शनिकों और साहित्यकारों की पुस्तकें पढऩे का भी मौका मिला और इसी शिक्षा प्रणाली से प्रजातंत्र स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा, समाजवाद, साम्यवाद और बहुत सारी अन्य सूचनाएं उनको मिलने लगी। वास्तव में अंग्रेजी भाषा ने ही सबसे पहले एक मंच पर लोगों को एकत्रित होने का मौका दिया और भारत में भविष्य की स्वतंत्रता की नींव रखी गई। 

अंग्रेजों ने भारत के अंदर रेलवे का जाल बिछा दिया। कृषि क्षेत्र को प्रफुल्लित करने के लिए नहरें निकालीं। पोस्टल और टैलीग्राफ सिस्टम प्रणाली की भी स्थापना की। इस तरह लोगों का आपस में मेल-जोल आसानी से होने लगा। स्वतंत्र प्रैस की स्थापना से लोगों के विचार समाचार पत्र में पढऩे को मिलने लगे। राष्ट्रवाद के इस आंदोलन में अमृत बाजार पत्रिका, द बंगाली, दी ट्रिब्यून, द इंडियन मिरर, द हिंदू, द पायोनियर, द मेड्रास मेल, दी मराठा और केसरी समाचार पत्रों ने भारतीयों को अपने अधिकारों के प्रति खुलकर जागरूक करवाया। 

19वीं शताब्दी हकीकत में एक बड़े उथल-पुथल का युग था। इसमें राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक तौर पर बहुत परिवर्तन होने लगे। राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद की। स्वामी दयानंद ने सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आंदोलन चलाया। स्वामी विवेकानंद ने भारत की प्राचीन संस्कृति का विश्व में प्रचार करके इसके गौरव को बढ़ाया और भारतीयों में जागृति पैदा की। 

देश में कूका आंदोलन ने जोर पकड़ा, सिंह सभा आंदोलन शुरू हुए और 1885 में लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का भी जन्म हुआ। 1885 से 1905 तक उदारवादी नेताओं का बोलबाला रहा। जिनमें दादाभाई नौरोजी, सुरिंदर नाथ बनर्जी, फिरोजशाह मेहता, गोपाल कृष्ण गोखले और अन्य नेताओं ने भारतीयों की समस्याआें को अंग्रेजों के सामने समय-समय पर रखा। 

पंजाब में भी किसानों ने आंदोलन चला दिया। जिसके परिणामस्वरूप लाला लाजपतराय और शहीद-ए-आजम भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह को देश निकाला दे दिया गया। गदरी बाबाओं के आंदोलन को भी सख्ती से कुचल दिया गया। 20 को फांसी की सजा, 58 को ताउम्र जेल और 60 के करीब को काले पानी की सजा दे दी गई। यह संगठन लाला हरदयाल ने अमरीका में स्थापित किया था। इसी तरह सरदार गुरदित सिंह के कामागाटामारू जहाज के यात्रियों को भी कड़ी सजा दी गई। आजादी के इन आंदोलनों को तो कुचल कर रख दिया गया। परंतु भारतीयों में आजादी की लहर जोर पकड़ती रही। 1915 में महात्मा गांधी ने भारत आकर आजादी की लहर को अपने हाथों में ले लिया। 

प्रथम विश्व युद्ध (1914 से 1918 में) भारतीयों ने अंग्रेजों की सेनाआें में भर्ती होकर बड़ी कुर्बानियां दीं और सरकार ने यह वायदा किया कि लड़ाई समाप्त होने के बाद उन्हें जिम्मेदार सरकार दी जाएगी। परंतु सरकार देने की बजाय अंग्रेजों ने रोलट एक्ट बना दिया। जिसके बाद जलियांवाला बाग की घटना ने सारे देश को हिलाकर रख दिया। 1919 से पहले भारत अंग्रेजों के नियंत्रण में था और बाद में महात्मा गांधी के। महात्मा गांधी ने पहले असहयोग आंदोलन, फिर अवज्ञा आंदोलन और 1929 में लाहौर में रावी नदी के किनारे पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा एक विशाल सम्मेलन में पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा, 1930 में महात्मा गांधी द्वारा ढांडी मार्च में अंग्रेजों की लाठियां खाना, 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के बाद अंग्रेजों ने देश छोडऩे का फैसला कर लिया। 

1947 में देश को तो स्वतंत्रता मिल गई लेकिन इसे दो हिस्सों में बांट दिया भारत और पाकिस्तान। 1947 में स्वतंत्रता के बाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने देश के विकास, खुशहाली और सामाजिक भाईचारे की एक बड़ी मजबूत नींव रखी। जिस पर हम सब को आज गर्व है और भारत विश्व के देशों में एक बड़ा महत्वपूर्ण स्थान रखता है। राष्ट्र सदा-सदा के लिए सलामत रहे और हम भारतीय खुशहाली के पथ पर अग्रसर रहें।-प्रो. दरबारी लाल पूर्व डिप्टी स्पीकर, पंजाब विधानसभा     
 


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