ग्वादर के बाद अब चीन का इरादा कराची बंदरगाह पर कब्जा करने का
punjabkesari.in Wednesday, Oct 20, 2021 - 03:58 AM (IST)

दुनिया के गरीब देशों को अपने कर्ज के जाल में फंसाने के अलावा चीन उन देशों को धोखा भी ऐसा देता है कि वे देश उसकी फांस निकाल नहीं पाते। चीन तेजी से किसी देश में पैसा लगाने की शुरुआत करता है लेकिन एक बार जब वह देश उसके कर्ज के जाल में पूरी तरह फंस चुका होता है, तब चीन अपना असली रंग दिखाता है और परियोजना को आधी-अधूरी छोड़ कर अपने फायदे के पीछे चलने लगता है। चीन ने कुछ ऐसा ही हाल किया है अपने पड़ोसी देश एवं हर मौसम के दोस्त पाकिस्तान का। जिस उत्साह और तेजी के साथ चीन ने पाकिस्तान में 46 अरब डॉलर की सी.पी.ई.सी. (सीपेक) परियोजना को शुरु किया अब उसी परियोजना को फायदेमंद न बता कर वह उससे पीछे हट रहा है।
सी.पी.ई.सी. की शुरूआत के समय चीन ने इस परियोजना को दक्षिण एशिया में भूराजनीतिक और आर्थिक समीकरण को बदलने वाला आधारभूत ढांचा बताया था। चीन ग्वादर बंदरगाह के जरिए अरब सागर तक सीधी पहुंच बनाना चाहता था और ग्वादर पोर्ट का इस्तेमाल कर खाड़ी देशों से तेल आयात को सुनिश्चित करना चाहता था। ठीक इसी तर्ज पर पाकिस्तान ने भी ग्वादर बंदरगाह को अपने लिए एक वरदान मान लिया था। उसकी इच्छा थी कि चीन इसे अपनेे खर्च पर पूरा करे और पाकिस्तान इसका फायदा उठाए लेकिन रंग में भंग डाला बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने, जिसके डर से अब चीन ने ग्वादर को छोड़कर कराची बंदरगाह पर अपना फोकस शिफ्ट कर लिया।
वहीं पाकिस्तान से चीन की इस चाल के बारे में कुछ बोला नहीं जा रहा लेकिन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान चीन द्वारा कराची बंदरगाह को विश्व स्तरीय बनाए जानेे की जमकर प्रशंसा करते नहीं थक रहे। समाचार रिपोर्ट की मानें तो चीन अब कराची बंदरगाह को उन्नत करने के लिए 3500 अरब डॉलर खर्च करेगा, जैसा वह पहले ग्वादर बंदरगाह के लिए करने वाला था। कराची पोर्ट में चीन मछलीपत्तन के लिए अलग विकास करेगा, साथ ही वह 640 हैक्टेयर का विशेष आॢथक और व्यापारिक क्षेत्र बनाएगा। इसके अलावा कराची बंदरगाह को मनोरा द्वीप से जोडऩे के लिए एक पुल का निमाऱ्ण भी करेगा।
चीन की इस बात से इमरान खान बहुत खुश हैं, पाकिस्तान को समझ में नहीं आ रहा कि ग्वादर बंदरगाह पहले से ही चीन के कब्जे में है, वहीं कराची बंदरगाह में निवेश कर वह इसे भी अपने कब्जे में ले लेगा। फिर पाकिस्तान अपनी जमीन पर अपनी ही बंदरगाह का इस्तेमाल करने से महरूम हो जाएगा। लेकिन अपने देश की जनता को बेवकूफ बनाने के लिए इमरान खान ने पब्लिक मीटिंग में कहा कि चीन की इस परियोजना से हमारे देश के मछुआरों को मछली पकडऩे में मदद मिलेगी, निवेशकों को अपना धन निवेश करने के बेहतर अवसर मिलेंगे, गरीब लोगों के लिए 20 हजार घर बनाए जाएंगे और विकास के साथ कराची दुनिया के विकसित बंदरगाहों में गिना जाएगा।
चीन को ग्वादर छोड़ कर कराची का रुख इसलिए भी करना पड़ा क्योंकि ग्वादर में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के हमले चीनी इंजीनियरों और मजदूरों पर तेज होने लगे थे, इसके साथ ही पाकिस्तान की सेना पर भी बलूच विद्रोहियों के हमले बढ़ गए थे और इमरान खान की सरकार इन पर काबू पाने में नाकामयाब रही। इन सब कारणों से चीन ने सीपेक परियोजना के लिए पैसे देना बंद कर दिया था क्योंकि यहां पर होने वाले उपद्रवों की वजह से चीन को लगने लगा था कि यहां धन निवेश करना धन की बर्बादी होगी।
बलूचिस्तान पाकिस्तान का बहुत अशांत प्रदेश है। मई 2019 में ग्वादर शहर के 5 सितारा पर्ल कांटीनैंटल होटल में तीन बंदूकधारियों ने हमला कर 7 लोगों की हत्या कर दी थी जिसमें तीन सुरक्षा कर्मी भी शामिल थे। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने यह हमला कर चीनी और पाकिस्तानी अधिकारियों और ग्वादर के व्यापारियों के बीच डर पैदा करने के लिए किया था ताकि सीपेक का काम रुक जाए। वर्ष 2020 में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने पाकिस्तानी सेना के 21 सैनिकों को मार डाला था। इसी वर्ष बस में धमाका कर 9 चीनी नागरिकों की हत्या कर दी थी। फिर बहावलपुर में शिया जुलूस में धमाका कर 9 चीनी नागरिकों की हत्या कर दी थी, जिसमें 30 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
इतने सारे हमलों को देखते हुए इस परियोजना में फंडिंग करनेे वाले बैंक ऑफ चाइना के एक नोटिस जारी करके कहा था कि उन्हें लगता है कि लगातार विद्रोह के कारण पाकिस्तान चीन का ऋण चुकाने में असफल रहेगा। इसके बाद चीन ने सीपेक की फंडिंग बंद कर दी। इसके साथ ही सऊदी अरब ने भी 10 अरब अमरीकी डॉलर की तेल रिफाइनरी लगाने की अपनी परियोजना बंद कर दी। वहीं कराची में उन्हें नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। कराची उर्दू बोलने वाले मुहाजिरों का इलाका है, जो पाकिस्तान के पंजाबियों के कारण हाशिए पर पड़ा है। उनमें एक नया देश बनाने की मांग जोर पकड़ती जा रही है, जन-विद्रोह की शुरूआत यहीं से होने की आशंका है। ऐसे माहौल में चीन का कराची बंदरगाह में निवेश कितना सफल रहेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।