आपराधिक कानूनों के बाद साम्राज्यवादी पुलिस एक्ट रद्द हो
punjabkesari.in Tuesday, Jul 09, 2024 - 05:14 AM (IST)
नए क्रिमिनल कानून लागू होने के बाद पहला मामला कब और कहां दर्ज हुआ, इसमें बड़ा कन्फ्यूजन और विरोधाभास हो गया। ये कानून 30 जून की रात 12 बजे के बाद यानी 1 जुलाई की तारीख से लागू हुए। रात 12.15 बजे पहला मामला एक स्ट्रीट वैंडर के खिलाफ दिल्ली में दर्ज होने की ब्रेकिंग न्यूज मीडिया में प्रसारित होने से सरकार में खलबली मच गई। नए कानूनों के पीछे दंड की बजाय न्याय और छोटे मामलों में सामुदायिक सेवा से मुकद्दमों के निस्तारण का उद्देश्य बताया गया था। स्ट्रीट वैंडर के खिलाफ मामला दर्ज होने पर कानूनों को गरीब विरोधी नैरेटिव मिल सकता था। गृहमंत्री ने स्पष्टीकरण जारी करते हुए मीडिया रिपोर्टों को गलत बताया।
शाह के अनुसार वैंडर के खिलाफ पुराने प्रावधानों के तहत दर्ज मामले को रिव्यू के प्रावधान का उपयोग करके पुलिस ने खारिज कर दिया। एफ..आई.आर. होने के 12 घंटे के भीतर उसे रद्द करना, पुलिस के अधिकारों और कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़ा करता है। यह भी कहा जा रहा है कि पुराने कानून के तहत मामला गलत दर्ज होने पर क्या नए कानूनों के तहत मामले को दोबारा दर्ज नहीं करना चाहिए? सरकार के अनुसार साल 2020 में सभी आई.पी.एस., कलैक्टर, सांसदों, मुख्यमंत्रियों, सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्ट के जजों से नए कानून के बारे में सुझाव मांगे गए थे। गृह मंत्रालय की समिति में भी इन कानूनों पर 3 महीने तक गहन चर्चा हुई। गृहमंत्री ने इन कानूनों के बारे में 158 बार समीक्षा बैठक की। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के कुछ जजों ने औपचारिक तौर पर यह स्वीकारा है कि उन्होंने नए आपराधिक कानूनों का अध्ययन नहीं किया।
देश की सर्वोच्च अदालत में अगर यह स्थिति है तो फि र दूर-दराज के थानों और अदालतों की हकीकत क्या होगी? सरकार ने नए टैलीकॉम कानून को पूरी तरह से लागू नहीं किया। संसद से पारित होने के बावजूद डाटा सुरक्षा कानून भी अभी लागू नहीं क्योंकि उसके नियमों को मंजूरी नहीं मिली। तो आनन-फानन में नए आपराधिक कानूनों को लागू करने की क्या जरूरत थी?
आई.पी.सी. में गलत एफ.आई.आर. : गृहमंत्री के अनुसार जिला अदालतों में 21 हजार जजों, 20 हजार पब्लिक प्रॉसिक्यूटर्स और 22.5 लाख पुलिस कर्मियों को नए कानूनों की ट्रेङ्क्षनग दी जा चुकी है। लेकिन दिल्ली के बाद दूसरे राज्यों से आ रही खबरें परेशान करने वाली हैं। गृहमंत्री के बयान से साफ है कि 1 जुलाई के बाद सभी मामलों में नए बी.एन.एस. के तहत पुलिस को एफ..आई.आर. दर्ज करनी चाहिए लेकिन कई राज्यों में 30 जून या उसके पहले हुए अपराधों के मामलों में पुलिस ने पुरानी आई.पी.सी. के तहत एफ..आई.आर. दर्ज की है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक सप्ताह में हरियाणा के पलवल में 20, जोधपुर में 32, तेलंगाना में 36 और तमिलनाडु में 5 मामलों में पुलिस ने आई.पी.सी. के तहत एफ..आई.आर. दर्ज की है।
दूसरे कई राज्यों में ऐसे अनेक मामले और सामने आ सकते हैं। ऐसे में 4 सवाल उठ रहे हैं। पहला, क्या 30 जून की रात 12 बजे के बाद पुरानी आई.पी.सी. के तहत दर्ज मामले अदालतों में मान्य होंगे? दूसरा, मैजिस्ट्रेट की अनुमति के बगैर क्या पुलिस खुद रिव्यू करके इन मामलों को रद्द कर सकती है? तीसरा, आई.पी.सी. के तहत दर्ज मामलों के रद्द होने के बाद नए बी.एन.एस. कानून में दर्ज मामले अदालतों में कैसे टिकेंगे? चौथा, दिल्ली में स्ट्रीट वैंडर के खिलाफ जिस तरह से एफ.आई.आर. रद्द हुई है, क्या देश के सभी हिस्सों में बेकसूरों के खिलाफ एफ..आई.आर. उतनी ही फु र्ती से रद्द होगी?
1 जुलाई के बाद सभी मामलों में बी.एन.एस. के नए कानून के तहत ही अपराध दर्ज होना चाहिए। अगर पुराने कानून के तहत एफ..आई.आर. दर्ज होती है तो फि र नए कानून के तहत उन मामलों की विवेचना पर अदालत में मामला कमजोर हो सकता है। बी.एन.एस.एस. और बी.एस.ए. पर भी सवाल : देश की अदालतों में 5.13 करोड़ मुकद्दमे लम्बित हैं जिनमें लगभग 3.59 करोड़ क्रिमिनल मामले हैं। इनमें वे मामले शामिल नहीं हैं जहां पुलिस को अदालतों में चार्जशीट अभी फाइल करनी है।
पुरानी आई.पी.सी. के तहत दर्ज हजारों मामलों में पुलिस को जांच-पड़ताल करके सबूत इकट्ठा कर चार्जशीट दायर करनी होगी। 1 जुलाई के बाद पुरानी (आई.पी.सी.) के तहत जो एफ..आई.आर. दर्ज हुई हैं, पुलिस के अनुसार उन मामलों की जांच बी.एन.एस.एस., (पुरानी सी.आर.पी.सी.) के तहत होगी। यह बड़ी विचित्र स्थिति है। पुराने आई.पी.सी. कानून के तहत दर्ज मामलों में क्या पुरानी सी.आर.पी.सी. या फि र नई बी.एन.एस. के तहत पुलिस विवेचना करेगी? जिन मामलों में आधी विवेचना पुरानी सी.आर.पी.सी. के तहत हुई है तो क्या अब नए कानून के तहत विवेचना होगी? इस बारे में पुलिस के साथ वकीलों और जजों में बहुत कन्फ्यूजन है।
दो अलग-अलग कानूनों के तहत विवेचना करने पर पुलिस के ऊपर काम का बोझ बढऩे के साथ अदालतों में मामले कमजोर हो सकते हैं। इसी तरह से पुरानी आई.पी.सी. के तहत दर्ज मामलों में नए कानून के तहत विवेचना होने पर क्या बी.एस.ए .के आधार पर डिजिटल तरीके से सबूतों को जुटाया जाएगा? क्या आधी विवेचना पुराने एविडैंस एक्ट के अनुसार और बकाया मामले में नए साक्ष्य अधिनियम के अनुसार कानून सम्मत रहेगी? नए कानूनों के नोटिफाई होने के बाद पुराने कानून रिपील हो गए हैं। अपराध-शास्त्र के अनुसार नए कानूनों को पुराने अपराधों और पुरानी तारीख से लागू नहीं किया जा सकता। पुरानी सी.आर.पी.सी. के अनेक प्रावधानों में राज्य सरकारों ने संशोधन लागू किए थे जिन्हें नए कानूनों में शामिल नहीं किया गया। इसलिए राज्यों की विधानसभाओं को पुरानी कानूनी व्यवस्था के अनुसार नए कानूनों में बदलाव के लिए पहल करने की जरूरत है। अंग्रेजों के समय बनाए गए साम्राज्यवादी कानूनों पर जड़ से प्रहार करने के लिए केन्द्र सरकार को साल 1861 के पुलिस अधिनियम को जल्द बदलना होगा।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)