आखिर क्यों बढ़ा तृणमूल कांग्रेस में टकराव

Monday, Feb 14, 2022 - 06:23 AM (IST)

पश्चिम बंगाल में बीते 11 वर्षों से राज करने वाली तृणमूल कांग्रेस की जड़ें पहली बार हिलती नजर आ रही हैं। गत वर्ष विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा का पूरी ताकत से मुकाबला कर उसे धूल चटाने वाली पार्टी अब अपने अंदरूनी मतभेदों और अंतॢवरोधों से जूझ रही है। हालांकि पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी ने विरोध और असहमति की आवाजों को दबाने के लिए पहली बार कुछ कड़े फैसले लिए हैं, लेकिन सवाल उठ रहा है कि क्या इससे एक व्यक्ति एक पद की नीति के समर्थन में उठने वाली आवाजों को हमेशा के लिए खामोश करने में उनको कामयाबी मिलेगी? 

बीते कुछ दिनों से पार्टी में चल रही उठा-पटक और अभिषेक बनर्जी के महासचिव पद से इस्तीफे की अटकलों और अफवाहों के बीच ममता ने शनिवार शाम को अपने आवास पर बुलाई गई बैठक में अचानक अध्यक्ष के अलावा तमाम संगठनात्मक पदों को खत्म करते हुए 20 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यसमिति का ऐलान कर दिया। ममता की अध्यक्षता में यही समिति अब पार्टी का कामकाज देखेगी। बैठक में ममता ने तमाम नेताओं को एकजुट होकर काम करने का भी निर्देश दिया। 

ममता ने इस पूरे विवाद पर नाराजगी जताते हुए कहा कि तृणमूल के इतिहास में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था और वह इस विवाद को बढ़ावा देने वाले लोगों को जानती हैं। ममता के इस फैसले ने अपने भतीजे अभिषेक के साथ उनके संबंधों में हाल में पैदा हुई खाई को उजागर कर दिया है। हालांकि कार्यसमिति में अभिषेक को तो जगह दी गई है, लेकिन उनके करीबी सांसद सौगत राय और डेरेक ओ ब्रायन को शामिल नहीं किया गया। 

दूसरी ओर, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर उर्फ पी.के. के साथ तृणमूल कांग्रेस के संबंधों पर भी सवालिया निशान लग गया है। पी.के. को अभिषेक ही कोलकाता लाए थे। उ मीदवारों की सूची पर उभरे विवाद के बाद अभिषेक के करीबी नेताओं ने पी.के. का समर्थन किया था। इससे ममता काफी नाराज बताई जाती हैं। 

शनिवार को शीर्ष नेताओं के साथ बैठक के बाद ममता ने करीब घंटे भर अभिषेक के साथ अकेले में बैठक की, लेकिन इसमें क्या हुआ, यह पता नहीं चल सका। लेकिन ममता ने अचानक यह फैसला क्यों किया? तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि अभिषेक बनर्जी की ओर से ‘एक व्यक्ति एक पद’ की नीति पर जोर देने के कारण ही पार्टी में विवाद शुरू हुआ था। पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाए जाने के बाद उन्होंने इस नीति को लागू करने का प्रयास किया। इस दिशा में कुछ पहल भी की गई थी, लेकिन इससे पार्टी के कई शीर्ष नेता नाराज थे। इसकी वजह यह थी कि उन सबके पास एक से ज्यादा पद थे। इस नीति को लागू करने की स्थिति में उनको या तो मंत्री पद छोडऩा पड़ता या फिर पार्टी का। 

कोलकाता नगर निगम चुनाव से पहले मंत्री और मेयर फिरहाद हकीम के मामले में पहली बार इसकी अनदेखी की गई। इस नीति के उलट फिरहाद को नगर निगम चुनाव का टिकट दिया गया था। उसके बाद ही पार्टी में असंतोष की सुगबुगाहट होने लगी। लेकिन 108 शहरी निकायों के चुनावों के समय पार्टी के उ मीदवारों की सूची के मुद्दे पर यह विवाद चरम पर पहुंच गया। इसके लिए पार्टी के उम्मीदवारों की 2-2 सूचियां सामने आई थीं। 

उस समय कहा गया था कि पार्टी के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल ‘फेसबुक और ट्विटर पर’ से जो सूची जारी की गई थी, उसे प्रशांत किशोर उर्फ पी.के. की फर्म आई-पैक ने तैयार किया था, जबकि दूसरी सूची पार्थ चटर्जी और सुब्रत ब शी ने बनाई थी। इस वजह से मतभेद और भ्रम बढ़ा। कई जिलों में नेताओं ने विरोध प्रदर्शन भी किया। आखिर में ममता को हस्तक्षेप करते हुए सफाई देनी पड़ी कि पार्थ और सुब्रत के हस्ताक्षर से जारी सूची ही अंतिम और आधिकारिक है। तृणमूल की स्थापना के दो दशक से भी लंबे इतिहास में यह पहला मौका है जब पार्टी में किसी नीतिगत मुद्दे पर विवाद सार्वजनिक रूप से सामने आया है। 

राजनीतिक हलकों में पूछा जा रहा है कि क्या संगठनात्मक पदों को खत्म कर एक व्यक्ति एक पद की नीति को आगे बढ़ाने से रोकना संभव है? लाख टके के इस सवाल का जवाब तो आने वाले समय में ही मिलेगा, लेकिन फिलहाल पार्टी की अंदरूनी उठा-पटक लगातार सुर्खियां बटोर रही है।-प्रभाकर मणि तिवारी
 

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