आखिर ‘दोषी’ कौन

Sunday, Dec 15, 2019 - 03:44 AM (IST)

मारजुकी नामक इंडोनेशियाई जज एक बूढ़ी औरत का फैसला सुना रहे थे, जिस पर कि एक फल चुराने का दोष लगाया गया था। अपने बचाव में बूढ़ी औरत ने जज के समक्ष माना कि उसने अपराध किया है क्योंकि वह गरीब है तथा उसका बेटा बीमार जबकि पौत्र भूखा था, वहीं दुकानदार नेयह जोर दिया कि बूढ़ी औरत को सजा मिलनी ही चाहिए ताकि दूसरों के लिए मिसाल बन सके। जज ने सभी दस्तावेजों को ध्यानपूर्वक पढ़ा, फिर बूढ़ी औरत की तरफ देखा और बोले, ‘मैं क्षमा चाहता हूं मगर कानून के खिलाफ नहीं चल सकता, आपको इसके अनुसार सजा मिलेगी।’ 

बूढ़ी औरत को 100 अमरीकी डालर का जुर्माना किया गया और यह भी आदेश दिया गया कि यदि वह इस जुर्माने को न दे पाए तो नतीजतन उसको दो वर्षों की कैद भुगतनी होगी। वह रोने लग पड़ी और बोली कि वह इस जुर्माने को नहीं दे पाएगी। तब जज ने बूढ़ी औरत की टोपी में 5.50 अमरीकी डालर डाल दिए और कहा, ‘न्याय के नाम पर मैं जुर्माना कोर्ट में दे रहा हूं।

बाकी का जुर्माना शहर के दुकानदारों पर लगाया जाएगा जिन्होंने एक बच्चे को भूखे रहने दिया जबकि उसके नतीजतन उसकी दादी को अपने पौत्र का पेट भरने के लिए चोरी करने पर बाध्य किया। अदालत अब सभी लोगों से जुर्माना वसूलेगी।’ इसके बाद ज्यादा पैसे एकत्रित होने के कारण जुर्माना अदा करने के पश्चात बाकी बची राशि को बूढ़ी औरत को दे दिया गया। न्याय करने का कितना उत्कृष्ट नमूना है। जज की भावना देखिए कि उन्होंने जुर्म होने के बावजूद उन लोगों को जिम्मेदार ठहराया जिन्होंने बच्चे को भूखे रहने पर विवश किया तथा उसकी दादी को चोरी करने के लिए बाध्य किया। 

यदि जज मारजुकी भारत में बतौर जज काम करें तो किन-किन को जुर्माना होगा? नाबालिग तथा वयस्क दुष्कर्मी जो यह देखते हैं कि उनके पिता ने उनकी माता को कैसे प्रताडि़त किया तथा वे उसी व्यवहार को सड़कों पर दिखाते हैं। ड्राइवर सड़कों पर पैदल चलने वालों को रौंदते हैं। क्या हमें पुलिस को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए जोपब्लिक फुटपाथों तथा जैबरा क्रासिंग पर चलने के लिए लोगों को निर्देश नहीं देती। हमें सरकार को जिम्मेदार ठहराना चाहिए जो फुटपाथों के इस्तेमाल के लिए पैदल चलने वालों की बजाय वैंडरों को कब्जा करने देती है। इसके नतीजे में लोग सड़क पर चलने को मजबूर होते हैं और दुर्घटना के शिकार होते हैं। क्या हमें पुलिस तथा सरकार पर जुर्माना नहीं लगाना चाहिए। 

बच्चे नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। क्या हमें उन मां-बाप के बारे में बात नहीं करनी चाहिए जो बच्चों की पाकेट मनी बढ़ाकर अपना ध्यान उनसे हटा लेते हैं। क्या ऐसे लोगों पर जुर्माना नहीं लगाना चाहिए। क्या हमें सरकार से ऐसे सवाल नहीं करने चाहिएं, जो अपनी सारी ऊर्जा नागरिक संशोधन विधेयक, तीन तलाक तथा अन्य ड्रामेबाजी पर लगाती है। सरकार अर्थव्यवस्था में सुधार लाने, मूल्यवृद्धि को रोकने तथा बेरोजगारी दूर करने की तरफ ध्यान देने की बजाय बेफिजूल मुद्दों पर पब्लिक का ध्यान आकॢषत करती है। बात यह है कि हमें इस ओर ध्यान देना होगा कि ऐसी बीमारियों का कारण खोजा जाए। हमारे समाज को आज मारजुकी जैसे जजों की जरूरत है।-दूर की कौड़ी  राबर्ट क्लेमैंट्स

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