ए.डी.पी. ने क्षेत्रीय असमानता को दूर किया

punjabkesari.in Saturday, Sep 25, 2021 - 12:02 PM (IST)

पहाड़ी इलाके में स्थित नागालैंड का किफिर भारत के सबसे दूरस्थ जिलों में से एक है। जिले के अधिकतर लोग कृषि और इससे जुड़े काम करते हैं। उन्हें खोलर या राजमा की खेती करना अधिक पंसद है। स्थानीय लोगों की आजीविका बढ़ाने के लिए खोलर की खेती की संभावना को देखते हुए 2019 में आकांक्षी जिला कार्यक्रम (Aspirational Districts Programme) के माध्यम से इसकी पैकेजिंग सुविधा स्थापित की गई थी। यह सुविधा किसानों के बीच बड़ी तेजी से लोकप्रिय हुई। तब से बड़े पैमाने पर खोलर की खेती शुरू हो गई है और किफिर के राजमा अब पूरे देश में जनजातीय कार्य मंत्रालय के पोर्टल TribesIndia.com पर बेचे जा रहे हैं। इसी तरह की सफलता की दास्तान 112 जिलों में भी है, जो 2018 में प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किए गए ए.डी.पी. का हिस्सा हैं। शुरूआत से ही ए.डी.पी. ने भारत के कुछ सबसे पिछड़े और दूर-दराज के जिलों में विकास को बढ़ावा देने की दिशा में लगातार काम किया है। इस वर्ष के शुरू में यू.एन.डी.पी. ने इस कार्यक्रम की सराहना करते हुए ‘स्थानीय क्षेत्र के विकास का अत्यंत सफल मॉडल’ बताया और कहा कि ‘‘इसे ऐसे अन्य देशों में भी अपनाया जाना चाहिए, जहां अनेक कारणों से विकास में क्षेत्रीय असमानताएं रहती हैं।’’

कार्यक्रम की शुरूआत से ही सकारात्मक सामाजिक और आॢथक प्रभाव के साथ ही स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार देखा गया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के राऊंड 5 के चरण-1 के अनुसार प्रसवपूर्व देखभाल, संस्थागत प्रसव, बाल टीकाकरण, परिवार नियोजन की विधियों का उपयोग जैसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्रों में आकांक्षी जिलों में अपेक्षाकृत तेजी से सुधार हुआ है। इसी तरह से इन जिलों में बुनियादी ढांचागत सुविधाएं, बिजली, स्वच्छ ईंधन और स्वच्छता के लक्ष्य भी अपेक्षाकृत तेजी से हासिल किए गए हैं।ए.डी.पी. तैयार करने में दो महत्वपूर्ण वास्तविकताओं को ध्यान में रखा गया है। पहला, निधि की कमी ही पिछड़ेपन का एकमात्र या प्रमुख कारण नहीं है क्योंकि खराब शासन के कारण मौजूदा योजनाओं (केंद्र और राज्यों दोनों की) के तहत उपलब्ध कोष का बेहतर तरीके से उपयोग नहीं किया जाता। दूसरा, लंबे समय से इन जिलों की उपेक्षा किए जाने के कारण जिला अधिकारियों में उत्साह कम हो गया। असल में इन जिलों की क्षमता को उजागर करने में आंकड़ों पर आधारित शासन से इस मानसिकता को समाप्त करना महत्वपूर्ण है। 

कार्यान्वयन के 3 वर्ष में ही कार्यक्रम के जरिए सम्मिलन (केंद्र और राज्यों की योजनाओं के बीच), सहयोग (केंद्र, राज्य, जिला और विकास सांझीदारों के बीच) और प्रतिस्पर्धा (जिलों के बीच) के अपने मूल सिद्धांतों के माध्यम से कई क्षेत्रों में पर्याप्त सुधार लाने के लिए उचित संस्थागत ढांचा उपलब्ध कराया गया है। नीति आयोग द्वारा विकसित ए.डी.पी. का चैम्पियंस ऑफ चेंज प्लेटफॉर्म का स्वसेवा विश्लेषण उपकरण जिला प्रशासन के लिए मददगार है। इससे उन्हें आंकड़ों का विश्लेषण करने और स्थानीय क्षेत्र की लक्षित योजनाएं तैयार करने में सहायता मिलती है। इस प्लेटफॉर्म से यह सुनिश्चित किया जाता है कि कार्यक्रम की डेल्टा रैंकिंग में अपनी स्थिति सुधारने के लिए जिले लगातार एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करें। प्रतिस्पर्धा से बेहतर सेवा प्रदान करने के लिए लगातार नए विचारों को तलाशा जाता है।

इस कार्यक्रम ने समान प्रयास करने या साइलो में काम करने के विपरीत गैर-सरकारी संगठनों/नागरिक समाज संगठनों और जिला प्रशासन को एक-दूसरे के सहयोग से काम करने के लिए एकजुट किया है। इसने यह सुनिश्चित किया है कि सरकार, समाज और बाजार सभी अपनी-अपनी परिसंपत्ति का लाभ उठाकर समान उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में काम कर सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों से जिलों द्वारा अपने- अपने बेहतर तरीकों को एक-दूसरे  से सांझा करने से सभी लाभान्वित हुए हैं। कार्यक्रम में स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप तरीकों को बदलने के लिए आवश्यक लचीलापन अपनाने के साथ ही जिलों में ऐसी प्रेरक भावना भरी जा सकती है।

आकांक्षी जिला कार्यक्रम राज्यों और यहां तक कि जिलों के मतभेदों के प्रति अत्यधिक जागरूक है और यह उनको दूर करने के लिए एक उपयुक्त तंत्र उपलब्ध कराता है। असल में, कार्यक्रम का उद्देश्य ब्लॉक स्तर पर इस मॉडल को दोहराने के लिए जिलों को प्रोत्साहित कर इस विचार को बढ़ावा देना है। इससे जिले के समक्ष आने वाली चुनौतियों और उनसे निपटने के तरीके के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध होगी। ए.डी.पी. सहकारी-प्रतिस्पर्धी संघवाद का एक शानदार उदाहरण है। ए.डी.पी. के खाके और सफलताओं के बारे में अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की सराहना और सिफारिशें हमारे प्रयासों को अत्यधिक सार्थक बनाती हैं। 


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