सुप्रीम कोर्ट की नजर में आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा सही

punjabkesari.in Friday, May 14, 2021 - 05:58 AM (IST)

भारत की अधिकतर सामाजिक पेचीदगियां जाति आधारित तथा जातियों द्वारा ही आगे बढ़ाई जा रही हैं। विशेषकर समाज का प्रत्येक वर्ग तथा जीवन जाति के इर्द-गिर्द ही घूमता है, जिससे भारत विरोधाभासों की एक गठरी बन कर रह गया है। परेशान करने वाली बात यह है कि आधुनिकीकरण की जारी प्रक्रिया के दौरान भी जाति तथा उपजाति प्रणाली जीवंत बनी रही है। विडम्बना यह है कि भारतीय जाति प्रणाली महज ठप्पों का प्रश्र नहीं है। जातियों की संस्था अप्रत्यक्ष तौर पर संविधान से फलीभूत हुई है क्योंकि कुछ जाति आधारित पिछड़ी तथा कमजोर श्रेणियों को सरकारी नौकरियों तथा शिक्षा के उच्च केंद्रों में दाखिले में आरक्षण की गारंटी दी गई है। 

आरक्षण नीति का मु य उद्देश्य जातियों में हर तरह के भेदभाव को समाप्त करने के लिए एक ‘जातीय’ रणनीति अपनाना था। यद्यपि इस प्रक्रिया में ठप्पों ने न केवल आर्थिक ताकत बल्कि चुनावी तथा राजनीतिक शक्ति के लिए भी प्रतिष्ठा के नए प्रतीक हासिल कर लिए हैं। भारत में कोई राजनीतिक दल आज जातिवाद से मुक्त नहीं है, यहां तक कि सा यवादी भी। राष्ट्रीय स्तर पर कहने को प्रत्येक राजनीतिज्ञ ने जाति आधारित सा प्रदायिक नीतियों की आलोचना की है लेकिन व्यवहार में वह उसके बिल्कुल विपरीत करते हैं जो वह जनता के बीच कहते हैं, जिसे आप कपट कहेंगे या दोहरापन। ऐसे दोहरे मापदंड भारतीय सामाजिक परिदृश्य का हिस्सा हैं। 

इस वृहद परिपे्रक्ष्य में सुप्रीम कोर्ट ने 4 मई को महाराष्ट्र के एक कानून की धाराओं को निरस्त कर दिया जो मराठा समुदायों को आरक्षण उपलब्ध करवाती थी जिसको राज्य में आरक्षण का कोटा अधिकतम 50 प्रतिशत से अधिक हो जाता, जो 1992 में इंदिरा साहनी (मंडल) जजमैंट ने अदालत ने निर्धारित किया था। शीर्ष अदालत की न्यायाधीश अशोक भूषण की अध्यक्षता में 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने पाया कि महाराष्ट्र में कोई भी ‘असाधारण परिस्थितियां’ या ‘असामान्य स्थिति’ नहीं है जिसके लिए राज्य सरकार को मराठा समुदायों को आरक्षण का लाभ देने के लिए 50 प्रतिशत की सीमा को तोड़ना पड़ेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि मराठा राष्ट्रीय जीवन की मु य धारा में है। यहां तक कि इस बात को लेकर भी कोई झगड़ा नहीं है कि मराठा एक राजनीतिक रूप से प्रभावशाली जाति है। दरअसल शीर्ष अदालत का कहना है कि मराठा समुदाय के लिए अलग आरक्षण धाराओं 14 (बराबरी का अधिकार) तथा 21 (कानून की प्रक्रिया) का उल्लंघन है। इसलिए शीर्ष अदालत ने 1992 के इंदिरा साहनी निर्णय पर पुनॢवचार करने से इंकार कर दिया, जिसने 50 प्रतिशत की आरक्षण सीमा निर्धारित की थी।

जस्टिस भूषण ने कहा कि इंदिरा साहनी निर्णय समय पर खरा उतरा है तथा इस अदालत के किसी भी निर्णय ने इसे लेकर संदेह व्यक्त नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने महाराष्ट्र में एक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने आरक्षण को मराठा समुदाय के आत्मस मान का प्रश्र बताते हुए अपने कदम को न्यायोचित ठहराया। 

सही सोच वाला कोई भी व्यक्ति भारत के वंचित वर्गों के अधिकार पर प्रश्र नहीं उठाएगा जिनका निहित स्वार्थों के लिए आॢथक तथा सामाजिक शोषण किया गया। इसके साथ ही इस विरोधाभासी स्थिति के खिलाफ विरोध के स्वर भी हैं जिसमें अभिजात दलितों का एक नया वर्ग उभर कर सामने आया है लेकिन निम्र रेखा के दलित दयनीय स्थिति में हैं। स्वाभाविक है कि योजनाओं तथा विकास के लाभ सबसे निचली रेखा पर रहने वाले इन लोगों तक नहीं पहुंच पाए। यहां याद रखा जाना चाहिए कि गुजरात सरकार द्वारा नियुक्त राणे आयोग ने न केवल गुजरात बल्कि अन्य राज्यों में भी ढीली-ढाली नीतियों के कारण उत्पन्न नई पेचीदगियों के समाधान हेतु कुछ सुझाव दिए थे। 

पहला-जस्टिस राणे महसूस करते थे कि मात्र जाति आधार पर पिछड़ेपन का पैमाना सदियों पुरानी इस प्रथा को बनाए रखने में सहायक है जिसे खारिज कर दिया जाना चाहिए। दूसरा- आयोग ने सुझाव दिया कि आरक्षण के उद्देश्य से सामाजिक तथा शैक्षणिक पिछड़ेपन को केवल पारिवारिक आय तथा स्थिति के लिहाज से मापा जाना चाहिए। तीसरा-आयोग ने इशारा किया कि सभी जातियों में ऊपरी परतें आरक्षण से पहले ही लाभ उठा चुकी हैं पर अब उन्हें ऐसे लोगों की मदद करनी चाहिए जिन्हें वास्तव में मदद की जरूरत है। बड़े दुख की बात है कि अधिकतर भारतीय राजनीतिज्ञों ने जाति तथा आरक्षण के नाम पर तुच्छ चुनावी खेल खेले हैं जिनका पिछड़ों के कल्याण से कोई लेना-देना नहीं। 

सच है कि भारत में जाति प्रणाली एक कठोर वास्तविकता है मगर जिन लोगों ने आॢथक तथा सामाजिक उत्थान केे न्यूनतम मापदंड हासिल किए हैं उन्हें अपने कम भाग्यवान भाइयों के लिए जगह बनानी चाहिए। सामाजिक न्याय तथा बराबरी इसकी मांग करते हैं तथा मराठा समुदाय के मामले को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए।-हरि जयसिंह


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