गर्भपात कानून और चिकित्सा सुविधाओं की कमी

punjabkesari.in Saturday, Jul 09, 2022 - 05:49 AM (IST)

‘‘हमारे देश में गर्भपात को कानूनी मान्यता है। इसके बावजूद प्रतिदिन लगभग 10 महिलाओं की मृत्यु असुरक्षित गर्भपात के कारण हो जाती है।’’ 

भावनाओं से जुड़ाव : यहां एक डाक्टर की मन:स्थिति का जिक्र करना जरूरी है। हालांकि उसका काम बिना किसी भावना के आप्रेशन या सर्जरी करना होता है, एक इंसान होने के नाते वह अपने आपको पूरी तरह इससे अलग नहीं कर सकता। एक महिला डाक्टर के अनुसार, जिसने अपनी प्रैक्टिस शुरू ही की थी, उसे पहला आप्रेशन एक गर्भवती महिला का गर्भ गिराने के लिए करना था। एक जीवित इंसान के शरीर में एक दूसरे जीव के अपना आकार लेने से पहले ही उसे खत्म करना, उसे क्या न करे और क्या करे की स्थिति में डालने के लिए काफी था। उसने इसे अपने कत्र्तव्य की तरह लिया, हालांकि यह अलग बात है कि उसे अपनी इस दिमागी हालत से बाहर निकलने में कई दिन लग गए। 

पिछले दिनों अमरीका जैसे आधुनिक और विकसित देश ने गर्भपात को गैर-कानूनी करार दे दिया। इसके खिलाफ वहां की महिलाओें ने इसे अपने शरीर पर अपना ही अधिकार न होने के रूप में लिया। प्रश्न यह कि बेशक यह उनका अधिकार है लेकिन उनके शरीर में पल रहे एक अन्य जीव पर भी क्या उतना ही अधिकार है ? 

गर्भपात का निर्णय : हमारे देश में गर्भपात का निर्णय अनेक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लिया जाता है। सबसे पहले तो बलात्कार और यौन शोषण की शिकार महिलाओं के लिए गर्भ धारण कर लेना न केवल शारीरिक दृष्टि से असहनीय है बल्कि मानसिक रूप से भी वे इसे स्वीकार नहीं कर पातीं। अपनी इच्छा के विरुद्ध किसी की जबरदस्ती का शिकार होने के कारण गर्भवती होना और यदि उन्हें ऐसे बच्चे को जन्म देना पड़ा तो जीवन भर वे उसे मां का स्नेह देना तो दूर, उसे हर समय अपनी आंखों के सामने देखना भी न चाहेंगी। ऐेसी स्थिति में कानून द्वारा निर्धारित अवधि में उन्हें गर्भपात की अनुमति मिल जाती है। 

गर्भपात की अनुमति जिन अन्य कारणों के होने पर मिल सकती है, उनमें शारीरिक और मानसिक रूप से स्त्री का अस्वस्थ होना कि संतान को पालना असंभव हो, प्रमुख है। यहां इसे भी महत्व मिलना चाहिए कि केवल स्त्री ही नहीं, यदि पुरुष भी किसी बीमारी का शिकार है, बेरोजगार है, गलत आदतों के कारण संतान को पालने के अयोग्य है तो इस स्थिति में भी महिला को गर्भपात की अनुमति मिलनी चाहिए। असर होता यह है कि यदि पिता लापरवाह है तो संतान का भविष्य अंधकार में ही रहता है। गर्भ में कोई विकार होने से स्वस्थ शिशु के जन्म की संभावना न हो तो भी गर्भपात कराया जा सकता है। 

सुविधाओं का अभाव : हमारे देश में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में प्रसव सुविधाओं का भारी अभाव है, गर्भपात की सुविधा होने की बात सोचना व्यर्थ है। इसलिए झोलाछाप डाक्टरों, ओझाओें और झाड़ फूंक करने वालों का बोलबाला है। वैसे भी जागरूकता की इतनी कमी है कि स्वयं लड़की या उसके घर वाले गर्भपात को समाज में अपनी इज्जत गंवाने की तरह लेते हैं और कोई भी दवाई या इलाज करा लेने से जान जोखिम में डालने से नहीं चूकते। असल में यदि लड़की कुंवारी है और गर्भवती हो गई है तो परिवार की सोच उसे जिंदा न देखने की हो जाती है। विवाहित महिला की स्थिति भी इसी तरह की हो जाती है, यदि वह लड़कों की बजाय लड़कियों को ही जन्म देती है। 

गर्भपात कराने की वकालत नहीं की जा सकती लेकिन यदि किन्हीं कारणों से यह कराना अनिवार्य हो तो इसकी पर्याप्त सुविधाएं होनी ही चाहिएं। ऐसे अबॉर्शन सैंटर खोले जाने चाहिएं जहां एक निर्धारित दर पर सुगमता से यह कराया जा सके। सरकारी अस्पतालों में इस तरह की सुविधाएं दी जाती हैं लेकिन व्यवहार में इन्हें हासिल करने में इतनी अड़चनें हैं कि हर कोई इनका लाभ नहीं उठा पाता और निजी चिकित्सकों की मनमानी का शिकार होता है या फिर गलत हाथों में पड़कर पीड़ित लड़की का जीवन ही संकट में पड़ जाता है। इस दौरान गर्भ की अवधि बढ़ती जाती है और न चाहते हुए भी शिशु को जन्म देना पड़ता है। 

अनचाही संतान समाज में कलंक का कारण बनती है और स्ट्रीट चिल्ड्रन बनकर एक नई समस्या पैदा कर देती है। धार्मिक स्थलों और पारिवारिक तथा सामाजिक समारोहों में इस तरह के बच्चों की भीड़ देखी जा सकती है जिनकी देख-रेख और पालन-पोषण करने वाला कोई नहीं होता, वे केवल दूसरों की दया या फिर शोषण का शिकार होते हैं। गर्भपात से महिला का जीवन प्रभावित नहीं होना चाहिए और न ही उसके स्वास्थ्य को लेकर कोई लापरवाही बरती जानी चाहिए। डाक्टरों के अनुसार इसके बाद भी उतना ही ध्यान रखना चाहिए जितना प्रसव के बाद रखा जाता है।-पूरन चंद सरीन 
 


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