अबला नारी, कब तक तेरी यही कहानी

punjabkesari.in Monday, Sep 20, 2021 - 04:38 AM (IST)

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को जो कड़े शब्द कहे, वह उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्यप्रणाली पर बहुत शर्मनाक टिप्पणी थी। दो साल पहले मैनपुरी में बलात्कार के बाद मार दी गई एक लड़की के मामले में आज तक उत्तर प्रदेश पुलिस ने जो लापरवाही दिखाई, उससे माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय सख्त नाराज हुआ। पुलिस महानिदेशक का यह कहना कि उन्होंने इस केस की एफ.आई.आर. तक नहीं पढ़ी है, उत्तर प्रदेश सरकार के नंबर वन होने के दावों पर प्रश्न चिन्ह लगा देता है। 

दरअसल छोटी लड़कियों या महिलाओं की स्थिति दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया और अफ्रीकी देशों में बहुत दयनीय है। ताजा उदाहरण अफगानिस्तान का ही लें, वहां के तालिबान शासकों ने महिलाओं पर जो फरमान जारी किए हैं वे दिल दहला देने वाले हैं। महिलाएं 8 साल की उम्र के बाद पढ़ाई नहीं कर सकेंगी। आठ साल तक वे केवल कुरान ही पढ़ेंगी। 12 साल से बड़ी सभी लड़कियों और विधवाओं को जबरन तालिबानी लड़ाकों से निकाह करना पड़ेगा। 

बिना बुर्के या बिना अपने मर्द के साथ घर से बाहर निकलने वाली महिलाओं को गोली मार दी जाएगी। महिलाएं कोई नौकरी और शासन में भागीदारी नहीं करेंगी। दूसरे मर्द से रिश्ते बनाने वाली महिलाA को कोड़ों से पीटा जाएगा। महिलाएं अपने घर की बालकनी से भी बाहर नहीं झांकेंगी। इतने कठोर और अमानवीय कानून लागू हो जाने के बावजूद अफगानिस्तान की पढ़ी-लिखी और जागरूक महिलाएं बिना डरे सड़कों पर जगह-जगह प्रदर्शन कर रही हैं। 

कोई क्या पहने, क्या खाए, किससे प्रेम करे और किससे शादी करे, ये फैसले हर व्यक्ति या हर महिला का निजी मामला होता है। अदालतें भी यह कह चुकी हैं, इसमें दखल देना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है। रोचक बात यह है कि जो लोग ऐसी नैतिक शिक्षा देने का दावा करते हैं, उनमें से बहुत से या उनके नेता महिलाओं के प्रति कितनी कुत्सित मानसिकता का परिचय देते आए हैं, यह तथ्य अब किसी से छिपा नहीं है। हम दुनिया की महिलाओं को तीन वर्गों में बांट सकते हैं। पहला वर्ग उन महिलाओ का है जो अपने पारम्परिक सांस्कृतिक परिवेश के अनुरूप जीवन जीती हैं, वह चाहे भारत की महिला हो या अफ्रीका की, बच्चों का लालन-पालन और परिवार की देखभाल ही इनके जीवन का लक्ष्य होता है। अपवादों को छोड़ कर ज्यादातर महिलाएं अपनी पारम्परिक भूमिका में संतुष्ट रहती हैं, चाहे उन्हें जीवन में कुछ कष्ट भी क्यों न भोगने पड़ें। 

दूसरे वर्ग की महिलाएं वे हैं जो घर और घर के बाहर, दोनों दुनिया सम्भालती हैं। वे पढ़ी-लिखी और कामकाजी होती हैं और पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर हर क्षेत्र में अपनी सफलता के झंडे गाड़ती हैं। सभ्य समाजों में इनका प्रतिशत क्रमश: लगातार बढ़़ता जा रहा है। फिर भी पूरे समाज के अनुपात में यह बहुत कम है। महिलाओं का यही वर्ग है जो दुनिया के हर देश में अपनी आवाज बुलंद करता है लेकिन शालीनता की सीमाओं के भीतर रह कर। महिलाओं का तीसरा वर्ग उन महिलाओं का है, जो महिला मुक्ति के नाम पर हर मामले में अतिवादी रवैया अपनाती हैं, चाहे अपना अंग प्रदर्शन करना हो या मुक्त रूप से काम वासना को पूरा करना हो। ऐसी महिलाओं का प्रतिशत पश्चिमी देशों तक में नगण्य है। विकासशील देशों में तो यह और भी कम है। पर इनका ही उदाहरण देकर समाज को नैतिकता का पाठ पढ़ाने का ठेका लेने वाले धर्म के ठेकेदार पूरे महिला समाज को कठोर नियंत्रण में रखने का प्रयास करते हैं। 

वैसे मानव सभ्यता के आरंभ से आज तक पुरुषों का रवैया बहुत दकियानूसी रहा है। महिलाओं को हमेशा दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता है। उनकी हैसियत समाज में केवल सम्पत्ति के रूप में होती है। उनकी भावनाओं की कोई कद्र नहीं की जाती। अनादिकाल से युद्ध जीतने के बाद विजेता चाहे राजा हो या उसकी सेना, हारे हुए राज्य की महिलाओं पर गिद्धों की तरह टूट पड़ते हैं। बलात्कार और हत्या आम बात है। वरना उन्हें गुलाम बना कर अपने साथ ले जाते हैं और उनका हर तरह से शोषण करते हैं। शायद इसीलिए महिलाओं को अबला कह कर सम्बोधित किया जाता है। 

नेता, प्रशासक और राजनीतिक दल महिलाओं के अधिकारों पर बोलते समय अपने भाषणों में बड़े उच्च विचार व्यक्त करते हैं, किंतु आए दिन एेसे नेताओं के विरुद्ध ही महिलाआें के साथ अश्लील या पाशविक व्यवहार करने के समाचार मिलते हैं। दरअसल, हाल के दशकों में पश्चिम से आई उपभोक्ता संस्कृति ने महिलाओं को भोग की वस्तु बनाने का बहुत निकृष्ट कृत्य किया है।ऐसे में समाज के समझदार व जागरूक पुरुष वर्ग को आगे आना और महिलाआें को सम्मान देने के साथ ही उन पर होने वाले हमलों का सामूहिक रूप से प्रतिरोध करना चाहिए।

संत विनोबा भावे कहते थे कि एक पुरुष सुधरेगा तो केवल स्वयं को सुधारेगा पर अगर एक महिला सुधरेगी तो तीन पीढिय़ों को सुधार देगी। भारत भूमि ने महिलाओं को दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती के रूप में पूजा है। सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के पश्चात इस भूतल पर मानव को वितरित करने वाली नारी का स्थान सर्वोपरि है, फिर भी यहां हजारों महिलाएं हर रोज बलात्कार या हिंसा का शिकार होती हैं और समाज मूकदृष्टा बना देखता रहता है। जब तक हम जागरूक और सक्रिय होकर महिलाओं का साथ नहीं देंगे, उनकी बुद्धि को कम आंकेंगे, उनका उपहास करेंगे तो हम अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारेंगे।-विनीत नारायण 
 


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