‘आप’ अलग है क्योंकि यह सत्ता की भाषा समझती है

punjabkesari.in Sunday, Oct 30, 2022 - 04:46 AM (IST)

भारतीय मुद्रा नोटों में लक्ष्मी जी और गणेश जी की प्रतिमा को शामिल करने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का आह्वान भाजपा के ध्रुवीकरण करने वाले एक क्लासिक कदम जैसा है। यह मेज पर एक मरी हुई बिल्ली के समान है। कोई भी इसे अनदेखा नहीं कर सकता। सभी लोग या तो इसका समर्थन या विरोध करेंगे। इस पर भाजपा से लेकर उदारवादी तक सभी टिप्पणियां करेंगे। 

आप समर्थन करें या विरोध, आपने आम आदमी पार्टी ‘आप’ और अरविंद केजरीवाल के बारे में बात करना सुनिश्चित किया है। एजैंडा व्यवस्था इस तरह काम करती है। अब तक ऐसा लगता था कि इस कला को सिर्फ भाजपा ही जानती है। कांग्रेस ने तो केवल शिकायत ही की कि मीडिया उनकी उबाऊ प्रैस वार्ताओं को आगे नहीं बढ़ाता। यह उतना ही अच्छा उदाहरण है जितना कि भाजपा आपको रोकने में विफल रही है जैसा कि उन्होंने कांग्रेस के साथ किया था। 

आऊट ऑफ सिलेबस
वर्षों से भाजपा ‘आप’ के खिलाफ हास्य और उपहास की कोशिश करती रही है। उन्होंने सोचा कि जिस तरह वे राहुल गांधी को उपहास से बदनाम करने में कामयाब रहे वैसे ही वे केजरीवाल के साथ ऐसा करने में सफल होंगे। उन्होंने उनके मफलर को पहनने का उपहास किया क्योंकि वे उसके मालिक थे। उन्होंने केजरीवाल की खांसी का मजाक उड़ाया जिसका उन्होंने उपचार करवाया (डाक्टरों ने पाया कि उनकी जीभ बहुत बड़ी थी)। भाजपा ने उन्हें माओवादी/नक्सलवादी/अराजकतावादी कह कर बुलाया तथा केजरीवाल ने इन सभी आरोपों का राजनीतिक रूप से जवाब दिया। 

2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावी अभियान में भाजपा ने केजरीवाल पर मुस्लिम समर्थक करार देने के प्रयास में उन पर सी.ए.ए. विरोधी विरोध के समर्थक के रूप में आरोप लगाया। इस रणनीति ने शायद 70 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा की सीटों को 3 से बढ़ाकर 8 करने में मदद की। चुनावों के बाद दिल्ली में हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए। नतीजा यह हुआ कि ‘आप’ ने आखिरकार साम्प्रदायिक-धर्मनिरपेक्ष विभाजन पर अपना रुख अख्तियार कर लिया और साम्प्रदायिक पक्ष को चुना। ‘आप’ ने फैसला किया कि वह ‘हिंदू कार्ड’ भी खेल सकते हैं। 

भाजपा को समझ नहीं आ रहा है कि ‘आप’ से कैसे निपटा जाए। आम आदमी पार्टी उनके लिए ‘आऊट ऑफ सिलेबस’ की तरह है जैसा कि एक भारतीय छात्र एक परीक्षा में उत्तर  लिखने में असमर्थ होकर बाद में कहता है।  जिस योजना पर कांग्रेस के खिलाफ भाजपा ने काम किया वह ‘आप’ के खिलाफ काम नहीं कर रही। ‘आप’ ऐतिहासिक बोझ और अनिश्चित नेतृत्व वाली 137 वर्ष पुरानी पार्टी नहीं है। 

अपने मन का खुलासा
खराब स्थिति को बदतर बनाते हुए भाजपा गुजरात में ‘आप’ के पीछे इस तरह से चली गई है जिससे पता चलता है कि भाजपा उससे खफा है। यह आनुपातिक प्रतिक्रिया गुजरात में गैर-भाजपा मतदाताओं को संकेत दे रही है कि यह चुनाव भाजपा बनाम ‘आप’ है। यही वह संकेत है जिससे भाजपा को बचना चाहिए था। भाजपा को भाजपा बनाम मरणासन्न पर बैठी कांग्रेस के लिए जरूरत थी। ‘आप’ ने चुपके से वोट काट दिया। 

दिल्ली और पंजाब में कथित आबकारी घोटाले में छापेमारी और गिरफ्तारी गुजरात चुनाव की पूर्व संध्या पर हुई है जिससे यह संकेत मिलता है कि भाजपा ‘आप’ को लेकर चिंतित है। भले ही इस कानूनी कार्रवाई का मकसद सिर्फ ‘आप’ की फंडिंग में कटौती करना था लेकिन इसे बहुत पहले ही आना चाहिए था या फिर गुजरात के चुनावी नतीजे आने तक इंतजार करना चाहिए था। हमने देखा कि किस तरह आम आदमी पार्टी कथित आबकारी घोटाले में मनीष सिसौदिया को गिरफ्तार होते देखने के लिए लगभग उत्सुक दिखती है जबकि विपक्षी नेता जेल के बारे में सोच कर शांत हो जाते हैं लेकिन ‘आप’ अलग है क्योंकि यह पार्टी सत्ता की भाषा समझती है। 

एक व्यवधान को कम आंकना
‘आप’ से निपटने में भाजपा ने पहली गलती यह की कि उसने 2014 के बाद ‘आप’ को कम करके आंका। भाजपा ने सोचा कि ‘आप’ सिर्फ दिल्ली की पार्टी है। 2017 में दिल्ली के नगर निगम चुनावों में अपनी सफलता को दोहराने में असमर्थ रही। उसी वर्ष जब पंजाब में पार्टी को उड़ा दिया गया जब उसे पंजाब जीतने का मौका मिला था। दूसरी गलती यह थी कि भाजपा ने सोचा कि दिल्ली के उप-राज्यपाल के कार्यालय के माध्यम से ‘आप’ को  नियंत्रित किया जा सकता है। उसने सोचा कि निर्वाचित सरकार की शक्तियों पर अंकुश लगा सकते हैं क्योंकि दिल्ली केवल आधा राज्य है। काम और जिम्मेदारी के साथ ‘आप’ राजनीति और प्रचार पर ध्यान केंद्रित करती है। 

तीसरी गलती यह थी कि भाजपा ने दिल्ली के शासन के ‘दिल्ली मॉडल’ के खोखलेपन को उजागर करने के लिए बहुत काम किया है। भाजपा आज ‘मुफ्तखोरी’ के ‘आप’ पर हमला करने में अधिक दिलचस्पी ले रही है। जैसा कि भारतीय मतदाता से यह कहा जा रहा है कि ‘नहीं, मुझे मुफ्त नहीं चाहिए।’  अब भाजपा खुद मुफ्त रसोई गैस सिलैंडर, राशन, आवास, शौचालय और क्या-क्या नहीं देने का दावा करती है तो वह ‘आप’ द्वारा मुफ्त बिजली का विरोध कैसे कर सकती है। 

दिल्ली में ‘आप’ के झूठे दावों को बेनकाब करने के लिए भाजपा को और बेहतर करने की जरूरत थी। बहुत कम शक्ति वाली पार्टी कैसे शासन के एक नए माडल के साथ आने का दावा कर सकती है। भाजपा दिल्ली में वायु प्रदूषण के मामले में कुछ भी करने में विफल रहने पर ‘आप’ पर हमला कर सकती थी। वह यह पूछ सकती थी कि अब ‘ऑड-ईवन’ की वकालत क्यों नहीं की जाती। 

शायद भाजपा ने ‘आप’ के साथ सबसे बड़ी गलती यह की है कि उसने कांग्रेस को मौत के करीब तक कमजोर कर उसके लिए जगह बनाई है। यदि राष्ट्रीय राजनीति में ‘आप’ द्वारा संभावित व्यवधान को रोकना है तो आज भाजपा को कांग्रेस से अच्छा प्रदर्शन करने की जरूरत है। इसका अभिप्राय: यह है कि भाजपा को एजैंसियों को बेनकाब करने की बजाय कांग्रेस को गंभीरता से लेना चाहिए।-शिवम विज 
 


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