लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी ‘आम आदमी पार्टी’

Thursday, Jan 25, 2018 - 03:36 AM (IST)

दिल्ली में आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को अयोग्य करार देने के फैसले को बेशक यह पार्टी चुनौती दे या नहीं, एक बात तय है कि इसकी विश्वसनीयता पर गहरा आघात लगा है। एक के बाद एक पछाड़ें खाने के कारण पार्टी रसातल की गहराइयों को छूने लगी है और इस स्थिति से उबरने के लिए इसे बहुत बड़ा पराक्रम करना होगा। 

वास्तव में यह पार्टी अब अपने अतीत का एक प्रेत साया बनकर रह गई है। कोई जमाना था जब देश के एक छोर से दूसरे तक वालंटियर इसमें शामिल हुए थे। यहां तक कि विदेशों में भी भारतीय लोग इसमें शामिल हुए थे या इसके समर्थन में उतरे थे क्योंकि उन्हें यह पूर्ण विश्वास था कि आम आदमी पार्टी देश में राजनीति की शैली में आमूल-चूल परिवर्तन ला सकती है। दुर्भाग्यवश इसका रिकार्ड न तो दिल्ली के शासन के मामले में और न ही अन्य राज्यों में चुनावों दौरान इसकी कारगुजारी को लेकर ही प्रशंसनीय रहा है। 

2014 में मोदी के नेतृत्व में राजग की धमाकेदार जीत के ऐन कुछ ही समय बाद दिल्ली विधानसभा के चुनाव में सभी प्रतिद्वंद्वियों का लगभग सफाया करके पूरे देश को हत्प्रभ करने वाली ‘आप’ ने राष्ट्रीय राजनीति में विराट भूमिका अदा करने के सपने देखने शुरू कर दिए थे। इसने पंजाब में संभावित जीत और इसके साथ गोवा में भी अपनी कामयाबी के सपने देखते हुए 2019 में भाजपा को खदेड़ कर खुद केन्द्रीय सत्ता पर काबिज होने की सीढ़ी मिल जाने की उम्मीद लगाई हुई थी।लेकिन पंजाब इसके हाथों में से निकल गया हालांकि दिल्ली के बाद इसके सबसे अधिक अनुयायी पंजाब में ही थे। गोवा में तो इसको बुरी तरह धूल चाटनी पड़ी और इसे नए सिरे से चिंतन-मनन करने के लिए मजबूर होना पड़ा। अपनी जगह पर तो ‘आप’ ने गोवा और पंजाब दोनों ही राज्यों में सस्ती बिजली, मुफ्त वाईफाई, कर्जा माफी, बेरोजगारी भत्ता, मुफ्त मोबाइल स्वास्थ्य क्लीनिक एवं भारी मात्रा में रोजगार देने के वायदे किए थे लेकिन कोई भी दाव सीधा नहीं बैठा। नतीजा यह हुआ कि खुद दिल्ली में इसका भाव कम होना शुरू हो गया।

वर्तमान में तो इसकी स्थिति यह है कि अगले आम चुनाव लड़ सकने की इसकी क्षमता पर भी गंभीर आशंकाएं उठ रही हैं। अब इसे अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा अकेले दिल्ली पर ही एकाग्र करनी होगी। यदि पार्टी को अदालत से कोई राहत नहीं मिल पाती तो जिन 20 विधायकों को चुनाव आयोग ने अयोग्य करार दिया है, उनके हलकों में दोबारा चुनाव होने की स्थिति में इसे अपनी सीटें बचाने का संघर्ष लडऩा होगा जोकि बहुत जोखिम भरा काम होगा। इसके लिए खास तौर पर बड़ी कठिनाई तो यह होगी कि कांग्रेस देश भर के कुछ भागों में फिर से उत्थान के संकेत दे रही है। आज राजनीतिक स्थिति उस जमाने से सर्वथा भिन्न है जब ‘आप’ ने दिल्ली में 70 में से 67 सीटें जीत ली थीं और कांग्रेस का पूरी तरह सफाया कर दिया था। लेकिन अब कांग्रेस कुछ लड़ाई लडऩे की स्थिति में आ गई है। 

जहां तक भाजपा का संबंध है इसकी स्थिति में कोई अधिक बदलाव नहीं आया है क्योंकि 2014 के चुनावी फतवे के बाद यह अहंकार से चूर-चूर है। फिर भी यदि दिल्ली में 20 सीटों पर उपचुनाव होता है तो भाजपा एक ऐसी राजनीतिक शक्ति होगी जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। दिल्ली के इन उपचुनावों में भाजपा की कारगुजारी ही 2019 के आम चुनावों में फिर से सत्तासीन होने की इसकी योग्यता की अग्नि परीक्षा सिद्ध होगी। आम आदमी पार्टी ने अपनी राजनीतिक कारगुजारी के अलावा पार्टी के संगठन की दृष्टि से भी अपनी खूब किरकिरी करवाई है। पार्टी सुप्रीमो अरविन्द केजरीवाल को तो व्यावहारिक रूप में पार्टी के उन सभी वरिष्ठ नेताओं के साथ समस्याएं रही हैं जो पार्टी के संस्थापक सदस्य हैं। इनमें प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव सहित कई सारे वरिष्ठ नेता हैं। केजरीवाल के साथ अपने मतभेदों को सार्वजनिक करने का सबसे ताजा मामला कुमार विश्वास का है। 

पार्टी के अन्य कई वरिष्ठ नेताओं की तरह विश्वास ने भी राज्यसभा चुनाव के लिए पार्टी उम्मीदवार के रूप में प्रसिद्ध व्यक्तियों या वरिष्ठ पार्टी नेताओं की बजाय 2 धन्ना सेठों को नामांकित करने के केजरीवाल के फैसले पर एतराज उठाया था। केजरीवाल ने जिन 2 लोगों को नामांकित किया वे न तो पार्टी में सक्रिय रहे हैं और न ही पार्टी के लिए उनका किसी अन्य प्रकार से उल्लेखनीय योगदान है। फिर भी केजरीवाल ने टस से मस होने से इन्कार कर दिया और यहां तक कि अपने फैसले पर कोई टिप्पणी करने से भी मुकर गए। इसके अलावा आम आदमी पार्टी के दिल्ली के एक दर्जन से भी अधिक विधायक आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे हैं और जेल यात्रा भी कर चुके हैं।

अदालत द्वारा दोषी पाए गए विधायकों में से कम से कम 2 को केजरीवाल पद से हटा चुके हैं। कुछ अन्य विधायकों पर भ्रष्टाचार और लिहाजदारियों के आरोप भी लगे हैं। इस सब कुछ से यह प्रमाणित होता है कि जो पार्टी कभी इस देश की राजनीति के तौर-तरीके बदलने की आशा बंधाती थी, वह अन्य पाॢटयों  से किसी भी तरह भिन्न नहीं है। यह एक बहुत बड़ी निराशा की बात है क्योंकि भारी संख्या में लोगों को आम आदमी पार्टी से उम्मीदें थीं और वे यह दाव लगा रहे थे कि यह पार्टी स्वच्छ तथा सक्षम प्रशासन सुनिश्चित कर सकती है।-विपिन पब्बी

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