पैट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में बढ़ौतरी से आम आदमी बदहवास

punjabkesari.in Thursday, Jun 07, 2018 - 04:45 AM (IST)

पैट्रोलियम उत्पादों की कीमतें आसमान छू रही हैं। यह जाना-माना तथ्य है कि हमारे देश में इन उत्पादों की कीमतें विश्व की सबसे ऊंची कीमतों में शामिल हैं। अमरीका में प्रति लीटर तेल की कीमत को यदि भारतीय रुपए की वर्तमान दर में बदला जाए तो यह 50 रु. प्रति लीटर से अधिक नहीं होगी, जबकि भारत में यह 76 से 86 रुपए प्रति लीटर के बीच है। यहां तक कि पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों में भी ये कीमतें भारत की तुलना में बहुत कम हैं। 

यह भी एक सर्वविदित तथ्य है कि शराब की बिक्री के अलावा पैट्रोल, डीजल, विमान ईंधन, प्राकृतिक गैस एल.पी.जी. तथा इंजन आयल जैसे पैट्रोलियम उत्पाद केंद्र और राज्य सरकारों की तिजौरी में सबसे अधिक राजस्व का योगदान देते हैं। केंद्र सरकार इन उत्पादों पर एक्साइज ड्यूटी वसूल करती है जबकि राज्य सरकारें अपना-अपना वैल्यू ऐडिड टैक्स (वैट) लागू करती हैं। ये दोनों टैक्स उस कमीशन से अलग हैं जो डीलरों को दिया जाता है और ये तीनों चीजें मिलकर वास्तविक कीमत को लगभग दोगुना बढ़ा देती हैं। 

उदाहरण के तौर पर केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2016-17 में इन उत्पादों पर राजस्व कर (एक्साइज ड्यूटी) के माध्यम से 2.42 लाख करोड़ रुपए की कमाई की थी, जबकि वैश्विक कीमतें बहुत कम थीं। इस कमाई ने देश की अर्थव्यवस्था को बहुत ही स्वस्थ हैसियत प्रदान कर दी। राज्यों ने भी गत वित्तीय वर्ष में वैट के माध्यम से 1.66 लाख करोड़ रुपए की कमाई की। उदाहरण के तौर पर पैट्रोल और डीजल की सबसे अधिक कीमतों वाला राज्य महाराष्ट्र प्रतिवर्ष इन दोनों उत्पादों पर 20 हजार करोड़ रुपए टैक्स अर्जित करता है। ऐसे में कोई भी सरकार इन उत्पादों की बिक्री से होने वाली कमाई को हाथ से नहीं जाने देगी। इसीलिए बहुत से राज्य स्पष्ट तौर पर  पैट्रोल, डीजल, प्राकृतिक गैस, कच्चा तेल और जैट ईंधन जैसे पैट्रोलियम उत्पादों को नए जी.एस.टी. के अंतर्गत लाने के पक्ष में नहीं हैं।

वर्तमान संकट के लिए कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ौतरी (जोकि 80 अमरीकी डालर प्रति बैरल तक पहुंच गई है) तथा भारतीय रुपए के मूल्य में गिरावट की दोहरी मार जिम्मेदार है।  इससे सरकार काफी दुविधा में फंस गई है। जहां आम आदमी पैट्रोलियम उत्पादों की बढ़ी हुई कीमतों के बोझ से बदहवास है वहीं राजनीतिक नेता भी सरकार को कोने में धकेल रहे हैं। वे इस तथ्य की ओर इंगित करते हैं कि भाजपा 21 राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टी है और बहुत आसानी से इन राज्य सरकारों को प्रादेशिक उप करों में कटौती करने को कह सकती है। 

पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम कहते हैं, ‘‘गत 4 वर्षों से भाजपा ने सस्ते तेल के बूते मौज उड़ाई है। तेल महंगा होने की देर है कि भाजपा सरकार सकपका गई है और गलती पर गलती करने लगी है। एक स्कूली छात्र भी इस स्थिति का जवाब जानता है कि ऐसा भाजपा सरकार की ‘उपभोक्ता पर टैक्स ठोको’ की नीति के कारण हो रहा है।’’ अंदर की बात जानने वाले भी यह इंगित करते हैं कि तेल कारोबार में लगी हुई कुछ शीर्ष प्राइवेट कम्पनियां, जैसे कि रिलायंस और एस.आर. ग्रुप शायद सरकार पर यह दबाव बनाए हुए हैं कि तेल कीमतों में कटौती न की जाए ताकि उनके लाभ में कमी न आए। आखिर ये बड़ी कम्पनियां ही चुनाव के मौके पर चंदे के सबसे बड़े स्रोतों में शामिल होती हैं। 

अब यह सुझाव उछाला गया है कि पूरे देश में एक समान टैक्स ढांचे के लिए पैट्रोलियम उत्पादों को जी.एस.टी. के दायरे में लाया जाए। जी.एस.टी. परिषद की सिफारिशों पर निर्भर करते हुए ये टैक्स दरें 18 से 28 प्रतिशत के बीच तय की जा सकती हैं। बेशक इससे केंद्र सरकार की सांसें कुछ आसान हो जाएंगी लेकिन राज्य सरकारों को अतिरिक्त उप कर लगाने के तरीके खोजने पड़ेंगे। सभी जिन्सों की कीमतें धीरे-धीरे ऊपर चढ़ती जा रही हैं और बेहया बिचौलिए इस स्थिति का जमकर लाभ उठा रहे हैं। अभी अर्थव्यवस्था न तो नोटबंदी के झटकों से उबर पाई है और न ही जी.एस.टी. के लाभ पूरी अर्थव्यवस्था में महसूस होने लगे हैं लेकिन ऐसी स्थिति को पैट्रोलियम उत्पादों की महंगाई ने और भी बदतर बना दिया है। मोदी सरकार को अंधाधुंध बढ़ रही महंगाई और मुद्रास्फीति पर नकेल कसने के लिए उपाय और रास्ते खोजने होंगे। यह बहुत बढिय़ा ढंग से कदम उठाते हुए सरकार की फिजूलखर्ची को बहुत कम कर सकती है और ऐसे लोगों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई कर सकती है जो देश और लोगों की मुश्किलों का लाभ उठाकर ही कमाई करते हैं।-विपिन पब्बी
 


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Pardeep

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