वाकई फायदेमंद है आधार और वोटर कार्ड लिंकिंग

Friday, Jan 07, 2022 - 06:34 AM (IST)

चुनाव अधिनियम संशोधन विधेयक 2021 को लोकसभा ने दिसम्बर 2021 के शीतकालीन सत्र में ध्वनिमत के बहुमत से पास किया। इस विधेयक के माध्यम से जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन किया गया है। इसके अंतर्गत वोटर लिस्ट को आधार कार्ड से जोड़ा जाएगा। साथ ही सारे देश के लिए एक ही वोटर लिस्ट बनेगी। 

मार्च 2015 में मतदाता सूची के सत्यापन और शुद्धिकरण का काम शुरू होने के साथ ही वोटर आई.डी. को आधार से लिंक करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया। इसका उद्देश्य वोटर का 2 बार नाम आने और फर्जी नाम लिस्ट में आने से रोकना था। आखिर नरेंद्र मोदी सरकार ने इस बहुप्रतीक्षित चुनाव सुधार की जरूरत को समझा और इस पर कानून बनाया। 

वोटर रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया में बदलाव : अप्रैल 2021 में चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय को सारे देश की एक वोटर लिस्ट और रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया पर जल्दी कानून बनाने को कहा था। इसका सकारात्मक संज्ञान लेते हुए सुधारों को लागू करने के लिए जन प्रतिनिधित्व एक्ट 1951 की धारा 14 (बी) में संशोधन करके 18 वर्ष की उम्र पार कर चुके व्यक्ति अब साल में 1 की बजाय 4 बार-1 जनवरी, 1 अप्रैल, 1 जुलाई और 1 अक्तूबर को वोटर रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं। आधार कार्ड को वोटर आई.डी. से ङ्क्षलक किया जाएगा, लेकिन इसे स्वैच्छिक रखा गया है। 

एक देश, एक वोटर लिस्ट : मतदाता सूची बनाने का काम मतदाता पंजीकरण अधिनियम 1960 के तहत किया जाता है। 21 राज्य और 8 संघ शासित प्रदेश स्थानीय चुनावों के लिए भारतीय निर्वाचन आयोग की सूची का प्रयोग करते हैं। जबकि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, केरल, ओडिशा, असम, अरूणाचल प्रदेश, नागालैंड और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर अपनी अलग मतदाता सूची बनवाते हैं। इसकी वजह से अनेकों त्रुटियां, जैसे नाम दोबारा आना या छूट जाना, होती रहती हैं। ज्यादातर गड़बड़ी पालिका और पंचायत चुनाओं में होती है। आधार सत्यापित होने से सारे देश की एक ही सूची होगी जिसे हर स्तर के चुनाव में प्रयोग किया जाएगा। यहां आधार को सिर्फ मतदाता के वैरीफिकेशन के लिए प्रयोग किया जाएगा। 

शुद्धता लाएगा आधार : विपक्ष की एकमात्र  ङ्क्षचता है आधार कार्ड का डाटा मतदाता सूची में दर्ज होने से लोगों की निजता और गोपनीयता का उल्लंघन हो सकता है। लेकिन सरकार ने इसका पूरा ध्यान रखते हुए, आधार नंबर वोटर लिस्ट में नहीं दिखाने का निर्णय लिया है। 

आधार लिंकिंग क्यों जरूरी : स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र की प्राथमिक आवश्यकता है। इसलिए वोटर लिस्ट की सुचिता और शुद्धता बरकरार रखी जानी चाहिए। लेकिन भारत की मौजूदा चुनाव व्यवस्था में चाह कर भी फर्जी मतदान, दोबारा पंजीकरण और बूथ कैप्चरिंग रोकना कठिन है। नियमत: जब एक व्यक्ति कहीं और मतदाता सूची में दर्ज हो जाए तो उसे पहली सूची के जिले के निर्वाचन अधिकारी को सूचित करके अपना नाम कटवा लेना चाहिए। लेकिन ऐसा होता नहीं। इसे जागरूकता का अभाव और लोकतंत्र का मजाक दोनों कहा जा सकता है। 

वोट डालने के लिए ई.वी.एम. मशीनों और वी.वी.पैट मशीन के प्रयोग से मतदान की प्रक्रिया सरल, शुद्ध और पारदर्शी हुई है। इससे मतगणना भी तेज और सटीक होती है। लेकिन मतदाता सूची को लेकर कई विसंगतियां अभी भी हैं, जिससे स्वतंत्र मताधिकार के सिद्धांत का मखौल उड़ता है। इसे क्रमश: पांच तरीकों से समझा जा सकता है : 

1. आधार से जोड़कर एक ही मतदाता सूची बने और उसका प्रयोग पंचायत/ नगरपालिका, विधानसभा और लोकसभा चुनावों में किया जाए। 
2. भारत में बड़ी संख्या में विस्थापित और स्थानांतरित परिवार रहते हैं, विशेषकर शहरी भागों में। ये अपने मूल स्थान से जाने के बावजूद मतदाता सूची में से अपना नाम नहीं कटवाते। एक तो वापसी की उम्मीद और दूसरा नाम कटवाने की प्रक्रिया की अज्ञानता इसके लिए जिम्मेदार है। आधार से जोडऩे पर एक ही व्यक्ति सारे देश में एक बार ही मतदाता बना रह सकेगा। 

3. निर्वाचन आयोग व आधार अथॉरिटी और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की एक समिति बनाकर आधार को वोटर लिस्ट से जोडऩे की सारी प्रक्रिया तैयार करवानी चाहिए। इसमें मतदाता की निजता और उसके डाटा की बहुस्तरीय सुरक्षा पर विचार भी होना चाहिए। 
4. वोटर कार्ड बनाने की प्रक्रिया को भी आधार की तरह डिजिटल करने का काम शुरू करना चाहिए। जिससे एक व्यक्ति, एक मतदाता, एक मतदान सुनिश्चित किया जा सके। 
5. इसके सारे डाटा का नियंत्रण चुनाव आयोग के पास ही रहे तथा किसी भी प्रकार से सरकारी हस्तक्षेप या नियंत्रण नहीं होना चाहिए। 

वैश्विक स्थिति : मतदाताओं की निजी जानकारी बचाना एक बड़ी चुनौती है। दुनिया के विभिन्न देशों ने अलग-अलग तरीके से डाटा सिक्योरिटी की व्यवस्था की है। अमरीका के वर्जीनिया सहित कई राज्यों में ‘इलैक्ट्रॉनिक पोल बुक’ तैयार की जाती है, जिससे एक व्यक्ति 2 बार वोट नहीं डाल पाता, न ही दो जगह उसका नाम आ पाता है। ऑस्ट्रेलिया में न सिर्फ मतदान सूची को इलैक्ट्रॉनिक डाक्यूमैंट से जोड़ा जाता है, बल्कि वहां मतदान न करने वाले को 20 डॉलर का जुर्माना देना पड़ता है। यूरोपियन देशों में भी वोटर की पहचान सुनिश्चित करने के लिए तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। 

समाधान की ओर : भारतीयों को इस बात को समझना होगा कि चुनाव व्यवस्था से भ्रष्टाचार दूर करने का सबसे मजबूत पहलू मतदाता सूची की शुद्धता है। उसके बाद निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया आती है। यदि लोकतंत्र को मजबूत बनाना है तो इसमें व्यवस्था पर लोक का नियंत्रण हो, न कि तंत्र का। आधार से वोटर लिस्ट के नाम को जोडऩा एक क्रांतिकारी कदम है। आज आधार लगभग हर सरकारी योजना का लाभ लेने का सिंगल विंडो सिस्टम बन गया है। इसलिए सभी भारतीय जागरूक होकर, इसके हर पक्ष का विस्तृत अभ्यास करके अपने आधार कार्ड को मतदाता कार्ड से जोडऩे की प्रक्रिया में भाग लें।-डा. रवि रमेशचंद्र्र

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