बिछड़े दिग्गज नेताओं को एक श्रद्धांजलि

Saturday, Sep 28, 2019 - 02:43 AM (IST)

हाल ही में राजधानी में हमने तीन शीर्ष भारतीय नेताओं की शव यात्राएं देखीं और उनमें शामिल हुए। यह एक दुख का पल था क्योंकि वे सक्षम, मजबूत, परिहास प्रिय तथा अत्यंत समझदार लोग थे, ऐसे नेता जो अपने वायदों को पूरा करना पसंद करते थे। 

तीन बार मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित सबको प्रिय थीं। वह प्रेम से परिपूर्ण, दयालु, करुणामयी थीं और उनमें अत्यंत विनोदप्रियता थी। वह फिल्मों, संस्कृति से प्रेम करती थीं और राजनीति, धर्म तथा संस्कृतियों से परे उनके सभी मित्र उनको प्रिय थे तथा उन्होंने उन सबके जीवन को विशेष तरीके से छुआ। उनका सर्वश्रेष्ठ गुण यह था कि उन्होंने हर किसी के लिए समय निकाला। यहां तक कि लोग उनके अंतिम समय तक भी उनके साथ सैल्फी लेना चाहते थे, चाहे वह शॉपिंग मॉल हो या सिनेमा हाल। वह जमीन से जुड़ी तथा हमेशा मुस्कुराती रहती थीं। 

शीला मेरी पड़ोसन थीं। तीन कार्यकालों तक मुख्यमंत्री रहने के बाद वह अपना अंतिम चुनाव हार गई थीं इसलिए वह कालोनी में अकेली ही घूमा करती थीं। उनकी छवि एक दादी मां जैसी थी और उनका घर हमेशा सबके लिए खुला रहता था, आसपास कोई सुरक्षा कर्मी नहीं होता था। उन तक हमेशा आसानी से पहुंच बनाई जा सकती थी। उन्होंने भारत को एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर की राजधानी दी। उन्हें हमेशा नई दिल्ली की निर्मात्री के तौर पर जाना जाएगा, फ्लाईओवर्स, मैट्रो, डी.टी.सी. की नई बसें खड़ी करने के लिए और साथ ही उन्होंने सुनिश्चित किया कि राष्ट्र मंडल खेलें सफलतापूर्वक सम्पन्न हों। उनके पति, जो एक वरिष्ठ सम्मानीय नौकरशाह तथा वरिष्ठ मंत्री ‘उमा शंकर दीक्षित’ के बेटे हैं, आज उन पर गर्व करते होंगे। हालांकि कांग्रेस को बीच मंझधार छोड़कर अपने कुछ सहयोगियों के साथ एक अलग राजनीतिक दल बनाने के बावजूद वह सोनिया गांधी की एक परम मित्र थीं। 

फिर सुषमा स्वराज थीं जो एक ऐसी पार्टी में सफल राजनीतिज्ञ थीं जहां केवल कड़ी मेहनत पर ही ध्यान दिया जाता है। उनके स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव आते रहे लेकिन उन्होंने कभी पीठ नहीं दिखाई। उन्होंने जो चाहा उसे हासिल किया, यहां तक कि उससे कहीं अधिक। हरियाणा में एक युवा मंत्री, फिर दिल्ली की मुख्यमंत्री तथा केन्द्र में एक शक्तिशाली मंत्री। स्पष्ट तथा हमेशा मुस्कुराती रहने वाली यह हरियाणवी सभी राजनीतिक दलों में अपने मित्रों के साथ एक संवेदनशील व्यक्ति थीं। विदेश मंत्री के तौर पर उन्होंने दुनिया भर में अमीर या गरीब, हर जरूरतमंद की मदद की। उनके पति ने राज्यपाल के तौर पर सेवा दी। उनकी बेटी एक सफल वकील है। 

हमने अभी हाल ही में एक बड़े कद के नेता अरुण जेतली को दुनिया से रुख्सत होते देखा, एक ऐसा व्यक्ति जिसका विकल्प भाजपा कभी नहीं पा सकती। विनोदप्रिय तथा एक आलराऊंडर, कई मायनों में नरेन्द्र मोदी को बनाने वाले। अमृतसर से उनकी राजनीतिक शुरूआत बहुत अच्छी नहीं थी लेकिन फिर भी उन्होंने पार्टी को जो दिया ऐसा कोई नहीं कर सकता था। उनकी पत्नी संगीता, जिन्हें उनकी स्कूली मित्रों में डॉली के नाम से जाना जाता है, उनकी ताकत थीं। वह उनकी मित्र थीं और कई तरह से उनकी मार्गदर्शक तथा एक राजनीतिक परिवार वाली पृष्ठभूमि से होने के कारण उनके पिता, जम्मू से गिरधारी लाल डोगरा ने उन्हें एक ऐसा राजनीतिक दिमाग दिया जिसका अरुण काफी इस्तेमाल करते थे। उनके जीवन में बीमारी के दो वर्षों के दौरान जम्मू का डोगरा परिवार उनके साथ खड़ा रहा तथा जेतली की रोज की लड़ाई के दौरान डॉली की रीढ़ की हड्डी बना रहा। 

डॉली की मुम्बई में रहने वाली बहन निधि तथा उसके परिवार ने अरुण की देखरेख करने तथा डॉली के साथ रहने के लिए अपना आधार एक तरह से दिल्ली में स्थानांतरित कर लिया था। चाहे वह न्यूयार्क में अरुण की बीमारी हो या उनकी यात्रा अथवा बीमारी के दौरान अत्यंत कड़ी डाइट, वे सदा मुस्कुराहट तथा प्रार्थना करते हुए उनके साथ रहे। चूंकि अरुण खाने-पीने के बेहद शौकीन थे लेकिन उनकी बीमारी के कारण निधि के लिए उनकी पसंद का खाना बनाना एक चुनौती थी।

मैंने इन दो वर्षों के दौरान इस परिवार से एक चीज सीखी है कि आज की दुनिया में भी परिवार के मजबूत जुड़ाव का कोई बदल नहीं है। मित्र आते-जाते रहते हैं लेकिन परिवार आपकी  रीढ़ की तरह है। संयुक्त परिवार प्रणाली तथा इसमें आप एक-दूसरे को जो देना सीखते हैं, मैं चाहती हूं कि हमारे बच्चे तथा भविष्य की पीढिय़ां भी ऐसा ही करें। जैसे-जैसे परिवार बढ़ते हैं, वैसे-वैसे ही जीवन अधिक प्रतिस्पर्धात्मक होता जाता है, जिसमें परिवार के प्रत्येक सदस्य की सहायता की जरूरत होती है। इन सभी नेताओं के परिवार उनके लिए एक मजबूत आधार थे। 

सभी पार्टियों के राजनेता कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे, जो बिछड़ी आत्माओं के लिए निष्ठा तथा सम्मान की तस्वीर थी। शीला, सुषमा तथा अरुण सम्मानीय थे और सभी पार्टियों के नेताओं के लिए उपलब्ध थे। दिल्ली के सामाजिक क्षेत्रों, विद्वानों तथा उनके अपने राजनीतिक दलों में उनकी कमी महसूस की जाती रहेगी। दिल्ली वाले इन मददगार नेताओं की कमी अपने सामाजिक जीवन में महसूस करेंगे, उनसे मिलना आसान था और वे दयालु थे। परमात्मा से प्रार्थना है कि वे तीनों कद्दावर नेताओं की आत्मा को शांति बख्शें। उन्होंने खुद को तथा अपनी सेवाओं से देश को गौरवान्वित किया है।-देवी चेरियन 

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