मेरे परिचित विज्ञापन जगत के दिग्गजों को श्रद्धांजलि

punjabkesari.in Friday, Nov 07, 2025 - 05:14 AM (IST)

उन 5 विज्ञापन जगत के दिग्गजों को याद कर रहा हूं जिन्हें मैं जानता था और जिनके साथ काम किया था। पीयूष पांडे (1955-2025) और मैं 1984 से 1991 तक ओगिल्वी में सहकर्मी थे। वह मुंबई में, मैं कोलकाता में। 1980 के दशक के मध्य में, ओगिल्वी के तत्कालीन प्रबंध निदेशक मणि अय्यर ने हममें से 10 लोगों को एक सप्ताहांत विश्राम के लिए चुना। 10 तथाकथित होनहार बच्चे। सीधे एम.डी. के पास गए। पीयूष हम में सबसे बड़ा था। उसकी उम्र 30 से ज्यादा थी, बाकी हम सब 25 से लेकर 20 के बीच के थे।

अय्यर ने हमें जो एक सलाह दी, वह अनमोल थी। ‘अपने काम को गंभीरता से लो लेकिन खुद को बहुत ज्यादा गंभीरता से मत लो’। हमारे वीकेंड रिट्रीट के तुरंत बाद, हममें से 9 को उन दो विभागों में पदोन्नति मिल गई, जिनमें हम क्लाइंट सर्विसिंग और क्रिएटिव का काम करते थे। एक को नहीं मिली। उसे क्लाइंट सर्विसिंग से धीरे से हटाकर एक नया, अजीब-सा पद दिया गया-कॉपी चीफ (भाषाएं)। यह मीठी विडम्बना थी! जिस आदमी को इधर-उधर घुमाया जा रहा था, वह आगे चलकर ‘भारत का डेविड ओगिल्वी’ बन गया। (पांडे, देखो क्या टर्म क्रिएटिव किया तुम्हारे लिए!) अब हम 2022 में आते हैं। हम दोनों एक ही समय पर गोवा में थे, तो हमने अरपोरा के फैट फिश में डिनर करने की एक योजना बनाई।  राजनीति मैन्यू से बाहर थी। शुरूआती दिन ओगिल्वी में बिताए। 

8 सालों की यादें रहीं, पूर्व सहकर्मियों के बारे में खुद को अपडेट करना चालू रखा। मुख्य पाठ्यक्रम एक-दूसरे को अपने परिवारों के बारे में जानकारी देना था। पीयूष के पास हमेशा अपने भाई-बहनों (जिनमें इला अरुण और प्रसून पांडे भी शामिल हैं) के बारे में गर्व से बताने के लिए ढेरों किस्से होते थे। मिठाई, बीमारी, जिंदगी और विरासत। बस 3 घंटे बीत गए। वह हमारी आखिरी मुलाकात थी। ओगिल्वी में हमारे पूर्व सहकर्मी सुमित रॉय कहते हैं, ‘‘उस व्यक्ति के बारे में कुछ शब्द जिसने पीयूष को वो मंच दिया जिसकी उसे जरूरत थी। सुरेश मलिक ही थे जिन्होंने पीयूष की क्षमता को पहचाना और उन्हें भाषा विभाग का प्रमुख बनाया। उस पल के बाद से, पीयूष ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। दोनों ने मिलकर ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ के साथ भारत को एकता के सूत्र में पिरोया। सुरेश का दिल हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में रमा था। पीयूष का दिल हिंदुस्तान में रमा था।’’

सुरेश मलिक (1940-2003) ओगिल्वी के क्रिएटिव डायरैक्टर थे, जिन्होंने प्रतिष्ठित फिल्म ‘स्प्रेड द लाइट ऑफ  फ्रीडम’ की परिकल्पना की थी, जिसे स्वतंत्रता दिवस,1987 को रिलीज किया गया था। अगले वर्ष, सुरेश एक और बड़े विचार के साथ आए ‘एक सुर’, जिसका नाम बाद में बदलकर ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ कर दिया गया। पीयूष के शब्दों में, हुआ यूं कि ‘मिले सुर’ स्वर्गीय  सुरेश मलिक की अवधारणा थी। उन्हें मुझ पर विश्वास था। मुझे लगता है कि वह एक क्रिकेट प्रेमी थे और वह मुझसे प्यार करते थे (पीयूष 1977 और 1979 के बीच रणजी ट्रॉफी में राजस्थान के लिए एक विकेट कीपर-बल्लेबाज के रूप में खेले थे इसलिए उन्होंने मुझे अपनी फिल्म के लिए गीत लिखने का मौका दिया। उनके पास मुंबई में चुनने के लिए कई शीर्ष गीतकार थे लेकिन उन्होंने मुझे चुना। मैंने पूरा गीत एक दर्जन से ज्यादा बार लिखा जब तक कि उन्होंने इसे मंजूरी नहीं दे दी। फिर पंडित भीमसेन जोशी की आवाज ने कुछ साधारण गीतों को जादू में बदल दिया।

इसी तरह उदार पीयूष ने राजीव राव को श्रेय दिया। जी हां, राजीव ही थे जिन्होंने हच के लिए यादगार विज्ञापन बनाए थे, जिनमें ‘पग’ दिखाए गए थे।ऋतुपर्णो घोष (1963-2013) एक प्रतिभाशाली महिला थीं। दुनिया उन्हें कई पुरस्कार विजेता राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फिल्म निर्देशक के रूप में याद करती है, जिन्होंने ऐश्वर्या राय को चोखेर बाली में निर्देशित किया था। लेकिन उस सारी प्रसिद्धि और ग्लैमर से पहले ऋ तुपर्णो विज्ञापन जगत में थीं। वह कोलकाता स्थित रिस्पांस एजैंसी में क्रिएटिव डायरैक्टर थीं, जिसकी स्थापना अदम्य राम रे ने की थी। ऋ तु का कार्यालय मेरे कार्यालय से पैदल दूरी पर था। वह लंच ब्रेक के दौरान कभी-कभार ही मिलतीं थीं, लेकिन कभी एक निवाला भी नहीं खाती थीं। हमने एक बार वेतन की तुलना की थी 9000 रुपए प्रति माह!ऋ तुपर्णो फिल्मों की दुनिया में जगह बनाने वाले पहले विज्ञापन कार्यकारी नहीं थीं। उनसे कुछ दशक पहले डी.जे. कीमर के कलकत्ता कार्यालय में एक जूनियर विजुअलाइजर जो आगे चलकर कला निर्देशक बने, ने विज्ञापन जगत में अपना करियर छोड़ दिया और सर्वकालिक महान फिल्म निर्माताओं में से एक बन गए। सत्यजीत रे का नाम लेने के लिए 10 अंक।

बाद में ऋ तुपर्णो और मैं दक्षिण कोलकाता में प्रिंस अनवर शाह रोड पर पड़ोसी थे। ऋतु को रुई माछेर कालिया, रोहू मछली करी बहुत पसंद थी जो हम घर पर बनाते थे। हम यह सुनिश्चित करते थे कि जब भी दोपहर के भोजन में यह बने, कुछ भेजा जाए। ऋतुु बहुत जल्दी चली गईं। 49 साल की उम्र में। प्रदीप गुहा और भास्कर दास मुंबई में विज्ञापन मीडिया जगत के मेरे दो पसंदीदा रॉक स्टार थे। दशकों में बनी उनकी कहानियां उनकी प्यारी यादें कई स्तंभों में छपेंगी। ये दो तेज-तर्रार मीडिया जादूगर जिन्होंने मुंबई के मैडिसन एवेन्यू के समान दिखने वाले इलाके में शाही जिंदगी जी, दिल से बंगाली बाबू थे। विज्ञापन जगत के और भी महान लोग थे। ऊपर दी गई सूची में इनका नाम न होने का एकमात्र कारण यह है कि मैं इन्हें व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता था अलीक पदमसी सुभाष घोषाल, गेर्सन दा कुन्हा और भी कई, उन सभी की आत्मा को ईश्वर शांति दें।-डेरेक ओ’ब्रायन(संसद सदस्य और टी.एम.सी. संसदीय दल (राज्यसभा) के नेता)
 


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