निर्वाचित लोकतंत्र की परीक्षा
punjabkesari.in Monday, Nov 04, 2024 - 04:59 AM (IST)
कभी न खत्म होने वाले ‘लोकतंत्र के उत्सव’ में, पंजाब विधानसभा के लिए चार उपचुनावों सहित चुनावों के एक और दौर की घोषणा की गई है। स्पष्ट रूप से, भगवंत मान सरकार के लिए इन चुनावों में बहुत कुछ दांव पर लगा है। हरियाणा में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद उपचुनावों में चुनावी हार सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकत्र्ताओं का मनोबल गिरा सकती है और इसके भविष्य को लेकर संदेह पैदा कर सकती है। इसलिए, सरकार की तत्काल चुनौती कांग्रेस और भाजपा से कड़ी चुनौती के बीच उपचुनाव जीतकर राज्य में अपना राजनीतिक प्रभुत्व प्रर्दशित करना है। इसकी असली परीक्षा सरकार के वर्तमान कार्यकाल के अंत में होगी, जब इसके प्रदर्शन का मूल्यांकन इस कसौटी पर किया जाएगा कि क्या इसने अपनी नीतियों और प्रदर्शन से लोगों की स्वेच्छा से निष्ठा अर्जित की है।
वर्तमान में, गुरुओं और पांच नदियों की भूमि, जिसे भारत का अन्न भंडार और राष्ट्र की खड्ग भुजा कहा जाता है, अपने लोगों को संकट में पाती है। गरीबी और उसके कारण सम्मान की हानि, नशीली दवाओं की लत, ढहते सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और अमानवीय आॢथक असमानताओं से बढ़ते सामाजिक विभाजन ने पंजाब की आत्मा को दागदार कर दिया है। कट्टरपंथ, राजनीतिक ङ्क्षहसा, गुंडागर्दी, सरकार और प्रमुख कृषक समुदाय के बीच लगातार टकराव और भ्रामक भविष्य की तलाश में बेरोजगार युवाओं के बड़े पैमाने पर विदेश जाने की समस्या से निपटने के लिए कम कर्मचारियों वाली पुलिस को काम सौंपा गया है, जो राज्य के पतन की कहानी बयां करता है।
कई विकास सूचकांकों में निरंतर गिरावट एक कठोर लेकिन अकाट्य वास्तविकता प्रस्तुत करती है। 2023-24 के लिए नीति आयोग की पंजाब के लिए सतत् विकास लक्ष्य (एस.डी.जी.) रैंकिंग पर एक नजर डालने से ही सब कुछ स्पष्ट हो जाता है। उदाहरण के लिए, अच्छे काम और आॢथक विकास से संबंधित एस.डी.जी.-8 पर पंजाब, जो कभी अधिकांश विकास मापदंडों पर देश के शीर्ष तीन राज्यों में शामिल था, अब 18वें स्थान पर है। लैंगिक समानता (एस.डी.जी.-5) पर यह 19वें स्थान पर है और अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण (एस.डी.जी.-3) के लिए 8वें स्थान पर है। लगातार सरकारों की राजकोषीय फिजूलखर्ची के कारण राज्य का कर्ज मार्च 2024 तक 3.51 लाख करोड़ से अधिक है (इंडिया पॉलिसी फोरम, 2024, पंजाब का आॢथक विकास, भारत की संभावनाएं और नीतियां)। नीति आयोग के 2023 के बहुआयामी गरीबी सूचकांक के अनुसार, पंजाब की 4.75 प्रतिशत आबादी घोर गरीबी में रहती है।
सभी राजनीतिक दलों को इस स्थिति के लिए जिम्मेदारी सांझा करनी चाहिए। इसके लिए पहली शर्त है राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ बदले की राजनीति से दूर रहना। पंजाब को आॢथक मंदी के दुष्चक्र से निकालने और राज्य के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए अभूतपूर्व विधायी बहुमत वाली मौजूदा सरकार को ठोस नीतिगत फैसलों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। इसकी शुरुआत फसल विविधीकरण और पानी की खपत को तर्कसंगत बनाने सहित अपनी कृषि नीति को दुरुस्त करने से हो सकती है, क्योंकि राज्य में पानी की गुणवत्ता और भविष्य की उपलब्धता दोनों के मामले में स्थिति खराब है।
अक्तूबर 2024 में जारी ग्लोबल कमीशन ऑन द इकनॉमिक्स ऑफ वॉटर की एक रिपोर्ट ने भारत में कृषि के लिए असंतुलित सबसिडी और पानी के अविवेकपूर्ण इस्तेमाल के बीच संबंधों की ओर ध्यान आकॢषत किया है। पंजाब के कई जिलों में पीने योग्य पानी की घटती उपलब्धता और इस संबंध में भयावह पूर्वानुमान अस्तित्ववादी संकट पेश करते हैं। कई आधिकारिक दस्तावेजों में दर्ज कारणों से राज्य के शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में बदलाव की जरूरत है। साथ ही, यह स्वीकार करने का समय आ गया है कि कोई भी सरकार केवल असंवहनीय मुफ्त उपहारों और राज्य की उदारता के आधार पर लोकप्रिय समर्थन का दावा नहीं कर सकती, क्योंकि कोई भी नेता या राजनीतिक दल आॢथक असंभवता को नियंत्रित नहीं कर सकता।
भगवंत मान सरकार के पास अपने वादों को पूरा करने और एक अलग सरकार होने के अपने बहुप्रचारित दावे को सही साबित करने के लिए अभी भी समय और अवसर है। राज्य उस दलदल से बाहर निकालने के अपने प्रयासों में, जिसमें वह खुद को पाता है, सहकारी संघवाद की भावना में केंद्र सरकार से आवश्यक समर्थन पाने का हकदार है। लेकिन यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि वह स्थिति की सच्चाई के बारे में मतदाताओं पर भरोसा करे और स्थिति को संबोधित करने के लिए कठिन लेकिन आवश्यक कदमों के लिए विपक्ष के साथ रचनात्मक रूप से जुड़े, वैचारिक प्रतिद्वंद्विता और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के बावजूद।
अपनी ओर से, मतदाताओं को आगामी चुनावों में एक प्रबुद्ध राजनीतिक भागीदारी पर जोर देना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक चुनाव आत्मनिरीक्षण और राज्य के सामने आने वाले बुनियादी सवालों के इर्द-गिर्द केंद्रित प्रगतिशील लोकतांत्रिक राजनीति को आगे बढ़ाने का समय हो। और सभी दलों, जिनमें बदला लेने की मुद्रा में बैठी राज्य कांग्रेस और फिर से उभरती भाजपा शामिल हैं, को पड़ोसी राज्यों में हुए चुनावों के इस स्पष्ट संदेश को याद रखना चाहिए कि लोगों की सामूहिक बुद्धि, जो उनके अनुभवों की यादों से आकार लेती है, अंतत: प्रकट होती है और राजनीतिक पंडितों की भविष्यवाणियों के लिए माफी नहीं मांगती।
लोकतंत्र की गहराई में चुनावों की अंतिम परीक्षा यह है कि क्या वे ऐसे नेता और नीतियां देते हैं, जो लोगों का विश्वास जीतते हैं और सम्मान के साथ जीवन जीने की चाहत रखने वाले शोषितों की दबी हुई आहों को अभिव्यक्त करते हैं। पंजाब में होने वाले उपचुनाव चुनावी लोकतंत्र को क्षणिक आवेगों और क्षणिक भावनाओं से परे ले जाकर इसके उच्च उद्देश्यों की प्राप्ति की दिशा में ले जाने की हमारी क्षमता का परीक्षण करेंगे। इसलिए, हमें अपनी राजनीति को लोगों के प्रति कत्र्तव्य की बेडिय़ों से बांधना चाहिए। -अश्वनी कुमार (पूर्व केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री)