लोकतंत्र की आधारभूत आवश्यकता है सशक्त नेता प्रतिपक्ष

punjabkesari.in Tuesday, Jun 25, 2024 - 05:35 AM (IST)

क्षेत्र चयन संबंधी समस्त अटकलों पर विराम लगाते हुए राहुल गांधी ने अंतत: अपना फैसला सुना ही दिया। बहुतायत में लग चुके कयासों के अनुरूप, उन्होंने बतौर सांसद रायबरेली को स्वीकार्यता दी है। हालांकि केरल तथा उत्तर प्रदेश से संबद्ध दोनों ही क्षेत्रों से चुनाव में जीत दर्ज कराने वाले राहुल गांधी के अनुसार, वायनाड तथा रायबरेली से उनका भावनात्मक रिश्ता रहा है। नि:संदेह, महत्व के दृष्टिगत दोनों ही सीटें एक-दूसरे से कमतर नहीं, इसी के ध्यानार्थ वायनाड की कमान प्रियंका वाड्रा के जिम्मे सौंपने का निश्चय किया गया है। प्रियंका, जिनका जनसंबोधन दादी इंदिरा गांधी की नेतृत्व क्षमता का आभास देता है, वायनाड से उपचुनाव लड़ेंगी। 

रायबरेली लोकसभा सीट को अधिमान देने के संबंध में विचारें तो उत्तर प्रदेश की धरा से राहुल गांधी के पूर्वजों का गहरा नाता रहा है। पूर्व में उनके दादा-दादी, फिरोज-इंदिरा गांधी रायबरेली सीट से सांसद रह चुके हैं। मां सोनिया गांधी दीर्घकाल तक वहां से जीतकर संसद पहुंचती रही हैं। राहुल गांधी के परदादा पंडित जवाहर लाल नेहरू इलाहाबाद से तथा उनके पिता राजीव गांधी अमेठी से चुनाव लड़ते रहे। राजनीतिक महत्व के मद्देनजर भी आंका जाए तो उत्तर प्रदेश एक महत्वपूर्ण प्रांत माना जाता है, अत: राज्य पर कांग्रेस पार्टी की मजबूत पकड़ पुन: स्थापित करने के उद्देश्य से भी क्षेत्र चयन का फैसला रायबरेली के हक  में जाना अप्रत्याशित नहीं। 

लोकसभा चुनाव, 2024 की सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी रही भाजपा के पश्चात द्वितीय चर्चित दल के रूप में इंडिया गठबंधन की बात करें तो पूर्ण बहुमत में पिछडऩे के बावजूद परिणाम चौंकाने वाले रहे। विशेषकर, व्यक्तिगत तौर पर 99 सीटें अपने नाम करना कांग्रेस की गिरती साख बचाने में काफी हद तक मददगार साबित हुआ। महाराष्ट्र से निर्दलीय लोकसभा सदस्य विशाल पाटिल द्वारा कांग्रेस को प्रदत्त समर्थन के कारण सीट-संख्या 100 का आंकड़ा छू चुकी है, जिसके चलते कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के नेता विपक्ष बनने की संभावनाएं प्रबल होती दिखाई पड़ रही हैं। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस कार्यकारी समिति ने प्रस्ताव पारित करके नेता विपक्ष की कुर्सी संभालने संबंधी आग्रह किया, जिस पर राहुल गांधी विचार करने का आश्वासन दे चुके हैं। 

ऐसा संभव होता है तो 6 फरवरी, 2004 के दीर्घ अंतराल के पश्चात यह तीसरा मौका बनेगा, जब प्रधानमंत्री (वाराणसी) एवं नेता विपक्ष, दोनों एक ही राज्य (उत्तर प्रदेश) से संबद्ध होंगे। एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 1952 के बाद अब तक केवल 2 बार ही ऐसा संयोग बन पाया। 1989 की लोकसभा में देश के सातवें प्रधानमंत्री बने वी.पी. सिंह जहां उत्तर प्रदेश के फतेहपुर से सांसद रहे, वहीं तत्कालीन नेता विपक्ष की भूमिका निभाने वाले राजीव गांधी अमेठी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा के नेतृत्व में एन.डी.ए. सरकार आई तो लखनऊ से सांसद चुने गए अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने तथा अमेठी से चुनाव जीतकर संसद पहुंची सोनिया गांधी ने नेता विपक्ष का कार्यभार संभाला। 

भूमिका के संदर्भ में विचारें तो विपक्षी दल सत्तारूढ़ पार्टी या सरकार पर नियंत्रण व संतुलन कायम करने वाला लोकतांत्रिक समाज का एक अनिवार्य घटक है, विशेषकर भारत जैसे देश में, जहां विपक्ष को मजबूत करना मात्र राजनीतिक दलों को सशक्त  बनाने तक सीमित न होकर लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूती प्रदान करने से भी जुड़ा है। विगत 10 वर्षों से लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का यह पद रिक्त  पड़ा है। दरअसल, प्रतिपक्ष पद के लिए लोकसभा की कुल सीटों का 10 प्रतिशत होने की अनिवार्यता के चलते वर्ष 2014 तथा 2019 में क्रमश: 44 एवं 52 सीटें ही उपलब्ध हो पाने के कारण, कांग्रेस भाजपा के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद इस कुर्सी से वंचित रही। 543 सीटों में से कांग्रेस को इसके लिए 54 सांसदों की आवश्यकता थी। वर्तमान में कांग्रेस की सीटों का आंकड़ा 99 जमा एक होना गौरतलब है। 

विपक्षी दल के प्रवक्ता के रूप में कार्य करते हुए जनता तथा मीडिया को अपने विचारों एवं राष्ट्रीय मुद्दों से अवगत कराने के साथ वह जनता की आवाज बनकर यह भी सुनिश्चित करता है कि सरकार सदैव अपने कार्यों के प्रति उत्तरदायी बनी रहे, जनता को वैकल्पिक दृष्टिकोण और नीतियां प्रदान की जाएं। विपक्षी नेता के रूप में डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी तथा अटल बिहारी वाजपेयी जैसी विभूतियों की कार्यक्षमता से भला कौन परिचित न होगा? आज जब पुन: संभावनाएं पनपी हैं तो क्यों न विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के संसदीय विपक्ष की खोई सशक्त ता को पुनर्जीवित एवं संपुष्ट करने की बात सोची जाए? नेता प्रतिपक्ष के विचार को मूर्तरूप मिलने से निश्चय ही लोकतंत्र का आधार ठोस होगा बशर्ते राहुल गांधी अपनी स्वीकृति देने के साथ एक कद्दावर विपक्ष नेता के रूप में उभरकर सामने आएं।-दीपिका अरोड़ा
 


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