कोई भी राजनेता तब तक खत्म नहीं होता जब तक वह मरता नहीं
punjabkesari.in Tuesday, Mar 28, 2023 - 04:42 AM (IST)

क्या कांग्रेस नेता राहुल गांधी हाल ही में अदालत के फैसले और संसद से अपनी बर्खास्तगी के बाद राजनीतिक रूप से समाप्त हो गए हैं? यह उनके और उनकी पार्टी के लिए फायदा है या झटका? इसकी भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी क्योंकि यह एक विकसित कहानी है लेकिन अनुभव कहता है कि कोई भी राजनेता तब तक खत्म नहीं होता जब तक वह मृत्यु को प्राप्त नहीं हो जाता।
भाजपा इस बात से खुश है कि कोर्ट ने राहुल को सजा दे दी है और पार्टी यह भी मानती है कि राहुल राजनीतिक रूप से खत्म हो चुके हैं। इसके विपरीत कांग्रेस का दावा है कि राहुल गांधी इस वक्त फायदे की स्थिति में हैं। यह फायदेमंद होगा अगर कोई उच्च न्यायालय फैसले पर रोक लगाता है या उसे पलट देता है। यदि ऐसा नहीं होता तो राहुल कोई भी कीमत चुकाने और यहां तक कि जेल जाने को भी तैयार हैं जिससे उन्हें और राजनीतिक फायदा मिल सकता है।
कोर्ट ने राहुल को क्यों दी सजा? : राहुल ने अप्रैल 2019 में कर्नाटक में एक चुनावी रैली में कहा कि, ‘‘इन सभी चोरों का उपनाम मोदी क्यों है? नीरव मोदी, ललित मोदी और नरेंद्र मोदी।’’ इसके जवाब में एक भाजपा नेता पुर्णेश मोदी ने एक आपराधिक मानहानि शिकायत दायर की जिसमें उन्होंने राहुल पर ‘मोदी समुदाय’ को बदनाम करने का आरोप लगाया। फैसला नर्म हो सकता था। गुरुवार को कोर्ट ने राहुल को 2 साल कैद की सजा सुनाई। अदालत ने उन्हें तुरंत जमानत भी दे दी और सजा को एक महीने के लिए निलंबित कर दिया जिससे उन्हें सजा के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील करने का समय मिल गया।
राहुल के खिलाफ इस्तेमाल किए गए मानहानि के प्रावधान : आई.पी. की धारा 500 अपराध को दो साल तक की जेल की सजा का प्रावधान करती है। राहुल निचले सदन में मौजूदा सदस्यता गंवाने के अलावा अगले 8 साल तक लोकसभा चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे। 2013 में सर्वोच्च न्यायालय के एक ऐतिहासिक फैसले के अनुसार 2 साल या उससे अधिक की सजा सुनाए सांसद या विधायक की सदस्यता अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के तुरंत बाद समाप्त हो जाती है। लोकसभा ने तुरंत ही अगले दिन राहुल की बर्खास्तगी की घोषणा की। स्थिति से बाहर जाने के लिए राहुल को 3 स्तरों के समर्थन की आवश्यकता है :
संयुक्त पार्टी का मजबूत समर्थन संयुक्त विपक्ष का जनता का समर्थन : कांग्रेस ने जवाब दिया कि दोष सिद्धि संसद में अडानी मुद्दे को मोडऩे के लिए थी क्योंकि कांग्रेस ने अडानी-हैंडर्सन रिपोर्ट की संयुक्त संसदीय जांच की मांग की है। राहुल ने कहा है कि वह अडानी शेयरों के मुद्दे पर सवाल पूछने से पीछे नहीं हटेंगे या धमकियों, अयोग्यताओं या फिर जेल की सजा से भयभीत नहीं होंगे। टिप्पणी के लिए माफी मांगने से इंकार करते हुए राहुल ने कहा, ‘‘मेरा नाम सावरकर नहीं है, मेरा नाम गांधी है और गांधी किसी से माफी नहीं मांगते।’’ इस फैसले ने सत्तारूढ़ व्यवस्था के खिलाफ विपक्ष को एकजुट कर दिया है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और अन्य विपक्षी नेता जैसे एम.के. स्टालिन, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे अधिनियम की निंदा में शामिल हुए। वहीं पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस कार्रवाई की सबसे पहले निंदा करने वालों में से थीं। जबकि वह पहले भी कांग्रेस का विरोध करती रही हैं। हालांकि जनता सजा से हैरान है लेकिन पूरी प्रतिक्रिया अभी बाकी है। कांग्रेस को आने वाले दिनों में लोगों को शामिल करने के लिए सड़क पर उतरना होगा। राहुल की सजा ने कैम्ब्रिज में उनके विवादास्पद भाषण जैसे अन्य विवादास्पद मुद्दों को आगे बढ़ाया है। भाजपा उनसे माफी की मांग कर संसद का कामकाज ठप्प कर रही है।
भले ही सजा राहुल, उनकी पार्टी और पूरे विपक्ष के लिए एक मनोवैज्ञानिक झटका था मगर ये सब इस बात पर निर्भर करता है कि इस मुद्दे को लोगों तक कैसे पहुंचाया जाए। इसे जनता की सहानुभूति में बदलें और मुद्दे को 2024 के लोकसभा चुनावों तक बनाए रखें। आलोचक इसे लेकर आशंकित हैं। भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता, मीडिया पर कड़ा नियंत्रण और जीत की होड़ को देखते हुए यह आसान नहीं हो सकता है लेकिन गांधी अभी भी खबरों में बने रहेंगे।
आने वाले महीनों में 2024 से कांग्रेस कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपनी पहली महत्वपूर्ण परीक्षा का सामना करेगी जहां उसका भाजपा के साथ सीधा मुकाबला होगा। यदि कांग्रेस इन राज्यों के चुनावों को जीतती है तो वह विपक्ष को सशक्त करेगी। यदि पार्टी हारती है तो यह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एक झटका होगा और मोदी की हैट्रिक को स्वीकार करना पड़ेगा।
राहुल की सफलता कई अगर-मगर पर निर्भर करती है। इससे इसमें यह शामिल है कि क्या उन्हें अपने फैसले पर रोक लगाने के लिए उच्च न्यायालय का आदेश मिलेगा और जनता इस पर कैसे प्रतिक्रिया देगी? कांग्रेस को 2024 के चुनावों के लिए चुनावी कहानी को भी बदलना चाहिए। संक्षेप में भाजपा राहुल को दूर नहीं कर सकती। भाजपा शायद इस कहावत को समझ गई है कि अपने विरोधियों को कभी सुर्खियों में नहीं लाना चाहिए। कहानी का नैतिक यही है कि राजनेता चाहे वह किसी भी उच्च पद पर हो, उनका अपनी जुबान पर कड़ा नियंत्रण होना चाहिए।-कल्याणी शंकर
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