‘एक राष्ट्र एक टैक्स’ ही हमारा अंतिम लक्ष्य

Saturday, Jun 24, 2017 - 11:25 PM (IST)

ज्यादा वर्ष पहले की बात नहीं जब हमने ‘गंतव्य टैक्स’ के मामले में एक वायदा किया था और अब वह समय आ गया है कि हम इस वायदे पर फूल चढ़ाएंगे, यदि पूरी तरह नहीं तो आंशिक रूप में ही लेकिन हमें उम्मीद है कि यह वायदापूर्ति कोई छोटी-मोटी नहीं होगी। 

जब आधी रात का घडिय़ाल बजेगा, जब कारोबारी और खपतकार जागते-जागते आधी रात गुजार चुके होंगे, तो भारत नई टैक्स प्रणाली के युग में प्रवेश कर चुका होगा। आर्थिक इतिहास में एक ऐसा पल आता है जब हम पुराने दौर में से बाहर निकलते हुए नए दौर में कदम रखते हैं। ऐसा पल बेशक कभी-कभार ही आता है लेकिन जब भी ऐसा होता है तो शताब्दियों लंबे अंधकार का अंत होता है और लंबे समय से राष्ट्र के पददलित करदाता एक नए सूर्योदय की उम्मीद लगाते हैं। ऐसे पावन क्षण में यह बिल्कुल सही होगा कि हम भारत और इसके करदाताओं के साथ-साथ कर प्रणाली की न्यायशीलता के इससे भी बड़े उद्देश्य की सेवा में समर्पण करने की शपथ लें। 

इस शताब्दी की शुरूआत में (वास्तव में 2005 में) भारत जी.एस.टी. की तलाश की यात्रा पर अग्रसर हुआ और  तब से अब तक के वर्ष निराशाओं एवं धराशाही हुई उम्मीदों से भरे हुए हैं। सौभाग्य और दुर्भाग्य दोनों ही तरह की स्थिति में भारत ने कभी भी उस आदर्श को आंखों से ओझल नहीं होने दिया और न ही उसे विस्मृत किया- जिस आदर्श ने हमारे अंदर आकांक्षाएं जगाई थीं।

आज हम स्वयं सहेजी बदकिस्मती के दौर की इतिश्री कर रहे हैं और भारत एक नई टैक्स प्रणाली का अनावरण कर रहा है बेशक यह प्रणाली कितनी भी अपूर्ण क्यों न हो। आज हम जिस उपलब्धि का जश्न मना रहे हैं वह तो केवल महान अवसरों का द्वार खोलने की ओर एक कदम ही है। इससे भी बड़ी जीतें और उपलब्धियां हमारी बाट जोह रही हैं। क्या हम इतने विनम्र और समझदार हो सकते हैं कि इस अवसर को हाथ से न जाने दें और भविष्य की चुनौती को स्वीकार करें? 

हमने पीड़ाएं बर्दाश्त की हैं
नई टैक्स प्रणाली के साथ नई जिम्मेदारियां भी आएंगी। संसद, विधानसभाओं, भारत की प्रभुसत्ता सम्पन्न जनता का प्रतिनिधित्व करने वाली स्वायत्तशासी निकायों पर यह जिम्मेदारी आती है। जी.एस.टी. की आमद से पूर्व हमने अंधे विरोध की हर तरह की पीड़ाएं बर्दाश्त की हैं और हमारे हृदय बर्बाद हो गए वर्षों की याद से गमगीन हैं। कुछ पीड़ाएं तो आज भी जारी हैं। कुछ भी हो हम अतीत को बहुत पीछे छोड़ आए हैं और आज भविष्य हमसे अखियां लड़ा रहा है। 

जी.एस.टी. की यात्रा न तो फूलों की शैया है और न ही कोई आरामगाह बल्कि एक सतत् अभिलाषा, एक निरन्तर संघर्ष है ताकि हम वे वायदे पूरे कर सकें जो हमने संसद में किए थे और इनके साथ-साथ वे वायदे भी पूरे कर सकें जो हम आज करेंगे। करदाताओं की सेवा का अर्थ है उन करोड़ों लोगों की सेवा जो अनेक भांति के टैक्सों के बोझ तले पिस रहे हैं। इसका अभिप्राय है केवल एक ही विवेकपूर्ण टैक्स लागू करना और लोगों को परेशान किए बिना इसे बहुत न्यायपूर्ण ढंग से वसूल करना। इसलिए हमें कठोर परिश्रम करना होगा और जी.एस.टी. की परिकल्पना को साकार करना होगा। कहा जाता है कि मौत एक अटल सच्चाई है। टैक्स भी ऐसी ही एक सच्चाई है और इतनी ही बड़ी सच्चाई यह भी है कि इस दुनिया में टैक्स एक बहुत बड़ी परेशानी है। 

जिनका हम प्रतिनिधित्व करते हैं, भारत के उन लोगों को हम अपील करते हैं कि वे भी हमारे साथ शामिल हों और इस महान प्रयास पर उम्मीद रखते हुए हम पर भरोसा रखें। किसी प्रकार की हड़बड़ी या तुनक-मिजाजी अथवा फिजूल की बातों के लिए कोई समय नहीं बचा और न ही आरोप-प्रत्यारोप के लिए हमें एक न्यायसंगत प्रणाली का निर्माण करना होगा जहां सभी उत्पादक तथा सेवा प्रदाता अपना कारोबार जारी रख सकें। 

सौभाग्यशाली क्षण
जिस दिन की लंबे समय से प्रतीक्षा थी वह आ पहुंचा है-शायद हमारी तैयारियां पूरी होने से पहले ही आ पहुंचा है और भारत कई संघर्षों, अनिश्चितताओं और बेरुखियों-बेचैनियों व औंधे मुंह गिरने के बावजूद एक बार फिर उम्मीदों से सराबोर होकर उठ खड़ा हुआ है। अभी भी अतीत अनेक रूपों में हमसे चिपका हुआ है और पैट्रोलियम, बिजली तथा शराब जैसे उत्पादों को अपने दायरे में लाने वाले सच्चे जी.एस.टी. से पहले ही बहुत कुछ करना होगा। निकट भविष्य में बदलाव आएगा और हम अपनी किस्मत स्वयं लिखेंगे। यह किस्मत हम हासिल कर सकेंगे या नहीं इसके बारे में अन्य लोग लिखेंगे। 

हम जितने भी लोग सरकार में शामिल हैं, हम सभी के लिए सम्पूर्ण भारत में यह सौभाग्यशाली पल है। एक नई टैक्स व्यवस्था जैसे ही अस्तित्व में आएगी, हमें 2005 में किया गया वायदा साकार करना होगा। लंबे समय से सीने में छुपाई हुई आकांक्षाओं को व्यावहारिक रूप में साकार करना होगा। भगवान से प्रार्थना है कि कभी भी दमनकारी रूप ग्रहण न करे और हमारी इस अभिलाषा के साथ कभी भी विश्वासघात न हो। बेशक तैयारियां पूरी न होने के कारण हम पर कई तरह की अनिश्चितता के बादल छाए हुए हैं तो भी हमें नई उम्मीदों का जश्न मनाना चाहिए।

हालांकि बहुत से लोगों ने हमें पहले से चेतावनी दे रखी है कि हमारा मार्ग बहुत विकट होगा लेकिन नई व्यवस्था अपने साथ नई जिम्मेदारियां और नए बोझ भी लेकर आएगी और हमें पूरी विनम्रता तथा अपनी गलतियों को सुधारने की तत्परता सहित इनका सामना करना होगा। हम अक्सर नालायक प्रतिद्वंद्वी की भूमिका अदा करते रहे हैं और विवेकशीलता का दामन छोड़ देते रहे हैं लेकिन अब न केवल हम बल्कि आगामी पीढिय़ां हमारे उद्देश्य तथा इससे जुड़ी हुई जिम्मेदारियों को कभी विस्मृत नहीं होने देंगी। हमें कभी भी यह अनुमति नहीं देनी होगी जिस उद्देश्य के लिए हमने संघर्ष किया है वह भाड़ में चला जाए, बेशक अनुचित ढंगों से राजस्व संग्रह करना कितना भी आकर्षक क्यों न लगे। 

हमारे अगले विचार अवश्य ही मूल प्रतिपादकों एवं उन विद्वानों वाले होने चाहिएं जिन्होंने किसी प्रशंसा या पुरस्कार की कामना के बिना जी.एस.टी. का झंडा बुलंद किया। यहां तक कि वे कई लोगों के उपहास के पात्र भी बने। भविष्य हमें पुकार रहा है। हम कौन-सा मार्ग अपनाएंगे और किस तरह के प्रयास करेंगे? सच्चा जी.एस.टी. लाने और भारत भर के उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं के लिए एक सांझा बाजार सृजित करने के लिए तथा टैक्स से जुड़ा भेदभाव एवं उत्पीडऩ व परेशानियां समाप्त करने, एक प्रतिस्पर्धापूर्ण एवं गतिशील अर्थव्यवस्था का निर्माण करने इत्यादि के लिए हमें संघर्ष करना होगा और अनेक प्रकार के अनुषंगी संस्थान खड़े करने होंगे जिनके कत्र्तव्य और जिम्मेदारियां निर्धारित हों। 

एक राष्ट्र, एक टैक्स
हमने पहले से ही बहुत कठोर परिश्रम किया है जब तक हम अपने वायदे को सम्पूर्ण रूपेण पूरा नहीं कर लेते, जब तक हम जी.एस.टी. की व्यवस्था को सही अर्थों में ‘एक राष्ट्र एक टैक्स’ के अर्थों में साकार नहीं कर लेते- तब तक हमारे लिए आराम से बैठना हराम होगा। हमें एक सुदृढ़ अर्थव्यवस्था विरासत में मिली है और हम बहुत ऊंची वृद्धि के कगार पर पहुंच चुके हैं। अब हमें कुछ वर्ष पूर्व तय किए गए उच्च मानकों को किसी भी कीमत पर बनाए रखना होगा। हम सभी- चाहे किसी भी पद और स्थिति में हों, अपने कत्र्तव्यों और अधिकारों की दृष्टि से सम्मान रूप में जिम्मेदार हैं। हम न तो उच्च टैक्स दरों को प्रोत्साहित कर सकते हैं और न ही प्रशासन की मनमानियों को, क्योंकि जिस देश के टैक्स कानून और टैक्स प्रशासन चिंतन एवं कृत्य की दृष्टि से संकीर्ण हों उस राष्ट्र की अर्थव्यवस्था कभी भी गुंजायमान नहीं बन सकती। 

भारत के लोगों और इसके विभिन्न प्रदेशों को हम अपनी शुभकामनाएं भेजते हैं और एक उचित एवं न्यायपूर्ण टैक्स प्रणाली को आगे बढ़ाने के लिए उनके साथ सहयोग करने की कसम खाते हैं। और भारतीय करदाता-चाहे वह बड़े, मंझोले, छोटे एवं लघु व्यवसायों से जुड़े हों- तथा व्यक्तिगत परिवारों के प्रति हम अपनी शाश्वत कृतज्ञता अर्पण करते हैं और नए सिरे से उनकी सेवा में कटिबद्ध होने का वचन देते हैं।

Advertising