मोदी सरकार के दावों तथा जमीनी हकीकतों में भारी अंतर

Sunday, Oct 06, 2019 - 02:07 AM (IST)

किसी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की प्रशंसा होने पर सभी भारत वासियों को गर्व तथा संतुष्टि होना स्वाभाविक है। यह सम्मान मिलने के पीछे किसी एक सरकार या व्यक्ति विशेष की सीमित हिस्सेदारी तो हो सकती है मगर समूचे रूप में स्वतंत्रता से पहले तथा 1947 के बाद विश्व भर में विभिन्न मुद्दों बारे रचनात्मक मानवता के कल्याण हेतु अपनाए गए सकारात्मक रवैये तथा विश्व शांति के लिए भारतीय लोगों द्वारा डाला गया योगदान इसका मूल आधार समझा जाना चाहिए। जब हमारे शासक तथा राष्ट्रीय मीडिया देश/किसी नेता के लिए मिले महत्व को सभी सीमाएं लांघ कर एकतरफा रूप में प्रचारित करते हैं तो बाहरी तौर पर तारीफों के बांधे जा रहे इन पुलों के नीचे बहते पानी के बहाव की मात्रा, शुद्धता तथा दिशा बारे अनेक तरह के संदेह पैदा होना स्वाभाविक है। 

जिस ढंग से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विदेशों, विशेषकर अमरीका के दौरों में जुटे हुए हैं, उसमें देश के लोगों के लिए कुछ हासिल होने की बजाय गंवाने की सम्भावना अधिक नजर आ रही है। गहरे आर्थिक संकट में फंसा अमरीका हर कीमत पर नई मंडियों, प्राकृतिक तथा मानवीय साधनों की प्राप्ति तथा अन्य देशों के साथ अमरीका के पक्ष में वित्तीय समझौतों के माध्यम से वित्तीय मंदी के समाधान हेतु एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है। 

अमरीका दौरे के दौरान वहां के राष्ट्रपति के लिए वोट मांगना मोदी सरकार की विदेश नीति की गिरावट भरी चापलूसी की हद और सभी स्थापित मर्यादाओं के विपरीत है। राष्ट्रपति ट्रम्प, जो खुद बहुत से आंतरिक विवादों में फंसे हुए हैं, जब मोदी को विश्व के सर्वोच्च नेताओं में शामिल करके भारत के ‘पिता’ का खिताब देते हैं तथा भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व की सबसे तेजी से विकास कर रही अर्थव्यवस्था के तौर पर सराहते हैं तो इसके पीछे अमरीका के कार्पोरेट घरानों के मुनाफों में वृद्धि के लिए 135 करोड़ भारतीयों की विशाल मंडी, प्राकृतिक संसाधनों तथा मानवीय स्रोतों को काबू करने की लालसा झलकती है। 

प्रधानमंत्री मोदी को दिए भोज में अमरीकी दवा कम्पनियों के प्रमुखों की उपस्थिति तथा भारत में ऐसी 108 दवाओं की कीमतों में की गई असहनीय भारी वृद्धि के आपसी संबंधों को जरूर समझना होगा, जो आम आदमी की आधारभूत जरूरतों में शामिल हैं। कैंसर, हाई ब्लड प्रैशर, एंटीबॉयटिक, शूगर आदि रोगों की दवाओं की कीमतों को मनमर्जी से निर्धारित करने का अधिकार दवाएं बनाने वाली अमरीकी फर्मों को दे दिया गया है (इन दवाओं की कीमतों में भारी वृद्धि भी कर दी गई है)। 

केन्द्र सरकार द्वारा यह निर्णय मोदी की अमरीका यात्रा से ठीक पहले किया गया था ताकि मोदी की उपस्थिति में अमरीकी पूंजीपतियों को भरोसा दिया जा सके कि उनके हित (अर्थात अधिक मुनाफा कमाना) मोदी राज में पूरी तरह से सुरक्षित रहेंगे। पहुंच से बाहर महंगी दवाओं के कारण बीमार लोगों की मौत पर अमरीकी पूंजीपतियों का मुनाफा बढऩा यकीनी है क्योंकि ‘मोदी है तो सब कुछ मुमकिन है।’ पहले ही भारत को अमरीका द्वारा व्यापार करने वाले प्राथमिकता वाले देशों की सूची से बाहर निकाला जा चुका है। विदेशी पूंजीकरण के लिए उचित माहौल कायम करने के नाम पर देश के समस्त श्रम कानूनों को कार्पोरेट घरानों तथा पूंजीपतियों के पक्ष में 4 कोडों में बदला जा रहा है। निजीकरण की प्रक्रिया में सब क्षेत्रों को विदेशी निवेश के लिए खोल कर ठेकेदारी प्रथा लागू की जा रही है, जो श्रमिकों के लिए ‘गुलामी’ का दूसरा नाम है। 

संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में मोदी द्वारा अपने भाषण में 10 करोड़ शौचालय बनाने तथा जन-धन योजना का उल्लेख करना भारतीय लोगों की वास्तविक तस्वीर को छुपाने का तरीका था। जब मोदी इन मुद्दों बारे अपनी तारीफों के पुल बांध रहे थे, तब मध्य प्रदेश में दो दलित (वाल्मीकि समाज से संबंधित) बच्चों को घर में शौचालय की सुविधा न होने के कारण बाहर खेतों में शौच करते उच्च जाति के व्यक्तियों द्वारा पीट-पीट कर मारने की शर्मनाक खबर आ रही थी। सीवरेज साफ करते जहरीली गैस चढऩे के कारण देश में हर वर्ष सैंकड़ों सफाई कर्मचारियों की मौत हो जाती है। बेरोजगारी की हालत यह है कि अभी हाल ही में हरियाणा में (जहां भाजपा की राज्य सरकार अपने कार्यकाल के दौरान बड़े आॢथक विकास के दावे कर रही है) 4900 सरकारी पद भरने के लिए लगभग 15 लाख उम्मीदवारों में से परीक्षा देने आ रहे दो सगे भाई कैथल के नजदीक सड़क हादसे में सदा की नींद सो गए। मोदी के भाषण के दौरान बजती तालियों तथा देश की जमीनी हकीकतों में जमीन-आसमान का अंतर है। 

आर्थिक मंदी के कारण नई नौकरियां तो एक तरफ, काम पर लगे करोड़ों कर्मचारी बेकार किए जा रहे हैं। वित्तीय संकट के कारण 10 लाख कर्मचारीतो आटोमोबाइल उद्योग में ही बेकार हो गए हैं। इससेभी बुरी हालत टैक्सटाइल (कपड़ा) उद्योग की है। कृषि संकट के कारण आत्महत्या करने वाले खेत मजदूरों-किसानों की गिनती लगातार बढ़ती जा रही है, मगरमोदी कह रहे हैं कि भारत विश्व के बाकी देशों के लिए आर्थिक विकास के नजरिए से मार्गदर्शक बन रहा है। बेशक ‘आतंकवाद’ एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिससे निपटने की जरूरत है मगर इसके अतिरिक्त गरीबी, भुखमरी, स्वास्थ्य, बेरोजगारी, आर्थिक संकट, जानलेवा हथियारों की दौड़ तथा विश्व शांति जैसे ऐसे मुद्दें हैं जिनसे भारत सहित दुनिया के बहुत से देश पीड़ित व चिंतित हैं। 

डर का माहौल
आज देश में डर का माहौल है। अफसरशाही तथा कार्यपालिका का बड़ा हिस्सा तो पहले ही भाजपा तथा संघ की प्राथमिकताओं व निर्देशों के अनुसार काम कर रहा है। अब इस दबाव का असर न्यायपालिका पर भी स्पष्ट देखा जा सकता है। भाजपा सरकार के आदेशों पर पुलिस द्वारा स्वामी चिन्मयानंद, जो विश्व हिन्दू परिषद का बड़ा नेता तथा बाबरी मस्जिद को गिराने वाले दोषियों की सूची में शामिल है, द्वारा चलाए जा रहे कालेज में पढ़ रही एक छात्रा के साथ किए गए कथित बलात्कार के निर्धारित दोषों की धाराओं को नरम करने वाला बड़ा बदलाव करना देश के लोकतांत्रित ढांचे के लिए खतरे की घंटी है। साम्प्रदायिक दंगों के दोषियों के विरुद्ध दर्ज मुकद्दमों को यू.पी. सरकार के निर्देशों पर वापस लिया जा रहा है, जबकि दूसरी ओर धार्मिक अल्पसंख्यकों से संबंधित बहुत से निर्दोष लोगों तथा प्रगतिशील विचारधारा वाले बुद्धिजीवियों को ‘देशद्रोही’ बताकर जेलों में डाला जा रहा है। लोकतंत्र के सभी स्तम्भ तेजी से गिराकर देश में एक साम्प्रदायिक फासीवादी किस्म की हुकूमत स्थापित करने का प्रयास हो रहा है। 

अफसोस है कि दुनिया के साम्राज्यवादी देशों को भारत की धरती पर लूट-खसूट करने की इजाजत देना और इस काम के लिए अपनी ‘वाहवाही’ करवाना भारत के प्रधानमंत्री को अधिक पसंद लगता है। भारतीय लोगों को अपनी समस्याओं के समाधान हेतु खुद सोच कर विकास के लिए नया मार्ग खोजने की जरूरत है, जो आवश्यक तौर पर मौजूदा मोदी सरकार तथा इसके प्रेरणास्रोत आर.एस.एस. की सोच से बिल्कुल भिन्न होगा। राष्ट्रीय मीडिया द्वारा मोदी की झूठी प्रशंसा करने से कुछ नहीं बनने वाला। हां, कुछ समय के लिए आम लोगों को एक हद तक धोखा जरूर दिया जा सकता है।-मंगत राम पासला

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