‘गिरती अर्थव्यवस्था तथा कम होती स्वतंत्रता दोनों ही विस्फोटक’

Sunday, Mar 07, 2021 - 03:59 AM (IST)

भारतीय अर्थव्यवस्था रिकवरी की राह पर है या नहीं यह बहस का विषय है। सरकार तीसरी तिमाही में एन.एस.ओ. के 0.4 प्रतिशत विकास का अनुमान लगा रही है। सांख्यिकी त्रुटियों के लिए 0.4 प्रतिशत का मतलब  या तो शून्य प्रतिशत या 0.8 प्रतिशत हो सकता है। सरकार ने अपनी प्रैस विज्ञप्ति में एन.एस.ओ. द्वारा दर्ज की गई चेतावनी पर भरोसा किया है कि  तेज गिरावट से गुजरने की संभावना है। 

हम चाहते हैं कि अर्थव्यवस्था जल्द से मजबूत हो और कम से कम वार्षिक जी.डी.पी. (स्थिर कीमतों में) 2018-19 के लिए अनुमानित 140.03 लाख करोड़ या 145.69 लाख करोड़ रुपए 2019-20 के लिए अनुमानित हो। वृद्धि दर में तेजी से गिरावट के 2 वर्ष हैं। फिर भी हमने 6.1 प्रतिशत और 4.0 प्रतिशत क्रमश: सकारात्मक वृद्धि हासिल की है।

पिछले वर्ष 2020-21 में जब कोरोना महामारी ने देश पर हमला किया था तो अक्षम आर्थिक प्रबंधन द्वारा घावों को और गहरा कर दिया था तथा मंदी का कारण बना था। ऐसा 40 वर्षों में पहली बार हुआ था। एन.एस.ओ. के अनुसार मार्च 2021 में वर्ष की समाप्ति जी.डी.पी. (स्थिर मूल्यों पर) 134.09 लाख करोड़ रुपए होगी जो पिछले वर्ष की तुलना में माइनस 8.0 प्रतिशत होगी। यह और भी बुरा हो सकता है। 

इस बीच तीसरी तिमाही में 0.4 प्रतिशत की अस्थायी राहत पूरे वर्ष 2020 के अनुमानों के आधार पर कई चिंताजनक कटौतियों के साथ आई है। 
1. विकास पूरी तरह से कृषि, वन तथा मतस्य पालन द्वारा पंजीकृत 3.9 प्रतिशत दर्ज किया गया जबकि निर्माण द्वारा 6.2 प्रतिशत दर्ज हुआ। खनन, विर्निर्माण और व्यापार, होटल एवं परिवहन में मंदी जारी है। 
2. सकल फिक्स्ड कैपिटल फार्मेशन (जी.एफ.सी.एफ.) 41,44,957 करोड़ रुपए से कम है और यह 2018-19 और 2019-20 में था। जी.डी.पी. के अनुपात में यह 30.9 प्रतिशत था।
3. निर्यात 25,98,162 करोड़ रुपए और आयात 27,33,144 करोड़ रुपए है। दोनों ही पिछले 2 वर्षों की तुलना में निचले स्तर पर है। जी.डी.पी. के अनुपात में वे 19.4 फीसदी और 20.4 फीसदी है। 

4. प्रति व्यक्ति जी.डी.पी. एक लाख से गिरकर 98,928 रुपए हो गई। स्पष्ट निष्कर्ष यह निकलता है कि जबकि प्रत्येक व्यक्ति अपेक्षाकृत गरीब हो गया है (अरबपतियों को छोड़ कर जिनकी संख्या 2020 में 40 तक बढ़ गई)। कई लाख लोगों को गरीबी रेखा से नीचे धकेल दिया गया है। गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को पहले से ही विनाश में धकेला गया है और ऐसी बहुत ज्यादा संभावना है कि वे और ज्यादा ऋणग्रस्त हो जाएंगे। 
5. मंदी और महामारी का अर्थव्यवस्था से परे का परिणाम है। उन्होंने लोगों की शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित किया है और इसका असर गरीबों तथा उनके बच्चों पर ज्यादा हो गया है। 
आर.बी.आई. अर्थव्यवस्था की हालत के मूल्यांकन में अधिक स्पष्ट है। सरकार द्वारा बजट और अन्य उपायों के बारे में अनाधिकृत समर्थन के बावजूद  फरवरी 2021 के बुलेटिन में इस विषय पर लेख निम्रलिखित निष्कर्ष पर पहुंचा: 

-आज थोड़ा संदेह है कि खपत के पुनरुद्धार पर आधारित एक रिकवरी चल रही है। ज्यूरी इस तरह की रिकवरी के अल्पकालिक होने की ओर झुकती  है। निवेश के लिए भूख को कम करना महत्वपूर्ण है। कुल मांग के सभी इंजनों में आग लगने लगी है। केवल निजी निवेश गायब है। निजी निवेश को जिंदा रखने के लिए समय आ गया है। क्या भारतीय उद्योग और उद्यमिता का लाभ उठाया जाएगा? 

-उथले और अल्पकालिक रिकवरी और निजी निवेश के गुम होने के बीच कोई भी उत्सव पूरी तरह से समय से पहले मनाने जैसा है। हमें चौथी तिमाही के अनुमानों का पूरे वर्ष इंतजार करना चाहिए। जबकि हम आर्थिक स्थिति पर अपनी उंगलियां दबाए बैठे हैं। दूसरा समाचार एक और मोर्चे का है। स्वतंत्रता के सूचकांकों में भारत की रैंकिंग फिसल गई है। वल्र्ड प्रैस फ्रीडम इंडैक्स में भारत का स्थान 180 देशों में 142वां है। ह्यूमन फ्रीडम इंडैक्स में भारत 162 देशों में 111वें स्थान पर है। भारत में स्वतंत्रता कम हो गई है। भारत का स्कोर 71/100 से गिर कर 67/100 हो गया है और यह ‘मुक्त श्रेणी’ आंशिक रूप से ‘मुक्त’ वर्ग में आ गया है। 

विशेष रैंक या संख्या महत्वपूर्ण नहीं है। धारणा में गिरावट और लाखों लोगों के जीवन पर प्रभाव पडऩा ज्यादा महत्वपूर्ण है। क्या इस बात से इंकार किया जा सकता है कि मीडिया को घुटने टेकने के लिए तैयार किया गया है और मीडिया का एक बड़ा हिस्सा  सत्ताधारी पार्टी और सरकार का पुराने एच.एम.वी. रिकार्ड प्लेयर की तरह बन गया है। क्या इस बात से इंकार किया जा सकता है कि महिलाएं मुसलमान, ईसाई, दलित और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं (एन.सी.आर.बी. डाटा) और ऐसे अपराधों को दंडमुक्ति के साथ किया जा रहा है? 

क्या इस बात से इंकार किया जा सकता है कि आतंकवाद से लेकर कोरोना वायरस के प्रसार तक सबकुछ के लिए मुसलमानों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है? क्या इस बात से इंकार किया जा सकता है कि केंद्र सरकार और अधिक अधिनायकवादी, पुलिस तथा जांच एजैंसियां और अधिक दमनकारी और अमीरों की तरफ आॢथक नीतियां और अधिक पक्षपाती हो गई हैं? क्या यह नकारा जा सकता है कि व्यापक भावनाएं डर बन गई हैं। गिरावट भरी अर्थव्यवस्था तथा कम होती स्वतंत्रता दोनों ही एक विस्फोटक संयोजन बन गए हैं। पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश के किसानों ने प्रतिरोध का एक रास्ता चुना है। असम, पश्चिम बंगाल, केरल,पुड्डुचेरी और तमिलनाडु के मतदाताओं का दूसरा रास्ता है।-पी. चिदम्बरम

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