‘2020 मोदी और भाजपा के लिए चुनौतियों भरा वर्ष रहा’

Tuesday, Dec 29, 2020 - 03:16 AM (IST)

मई 2019 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शपथ ली थी तो किसी ने भी अनेकों अप्रत्याशित चुनौतियों का सपना नहीं देखा होगा जो आज वह देख रहे हैं अन्यथा जब वह दूसरी बार सत्ता में लौटे तो प्रधानमंत्री को अपने पहले कार्यकाल के दौरान अनसुलझी समस्याओं की एक लम्बी सूची मिली। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भाजपा ने 2014 की तुलना में अधिक सीटें जीतीं लेकिन कृषि, अर्थव्यवस्था, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और आंतरिक सामाजिक शॄमदगी के अधूरे एजैंडे को ठीक करने की उन्हें जरूरत थी। 

2019 के दूसरे हिस्से की शुरूआत मोदी की संतुष्टि के लिए होनी चाहिए थी क्योंकि वह पार्टी के मूल एजैंडे में कई मुद्दों को पूरा करने में सक्षम थे। मगर वर्ष 2020 में उन्हें अप्रत्याशित चुनौतियों का सामना करना पड़ा। राजनीतिक तौर पर जैसे ही उन्होंने अपना दूसरा कार्यकाल शुरू किया तब उन्होंने कई साहसिक निर्णय लिए और भाजपा के कुछ मुख्य एजैंडों को लागू किया। इनमें अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करना, राज्य का विभाजन, सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, तीन तलाक का उन्मूलन, समान नागरिक संहिता जैसे एजैंडे शामिल हैं। 

संसद में भाजपा ने न केवल अपनी स्थिति सुदृढ़ की बल्कि विपक्ष को बांट कर उसे कमजोर भी किया। चुनावों में पार्टी की कार्यकुशलता मिली-जुली थी। प्रधानमंत्री बंगलादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले शरणार्थियों (मुसलमानो को छोड़ कर) को नागिरकता प्रदान करने वाले संविधान संशोधन बिल तथा तीन कृषि बिलों के माध्यम से आगे बढऩे में सक्षम थे। लेकिन सी.सी.ए. को लेकर अभूतपूर्व विरोध हुआ, विशेषकर मुस्लिम समुदाय द्वारा जिनको अपनी नागरिकता के बारे में आशंकाएं थीं। कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का विद्रोह शुरू हुआ। ये दोनों ही मुद्दे अंतर्राष्ट्रीय चिंता का विषय बन गए। 

विरोधी दलों द्वारा सी.ए.ए. आंदोलन का समर्थन किया गया। दिल्ली तथा अन्य स्थानों पर कई लोगों ने कानून का विरोध किया। हालांकि भाजपा ने इसे साम्प्रदायिकता का रंग दिया। यदि कोविड महामारी का हमला नहीं हुआ होता तो सी.ए.ए. को निरस्त करने का आंदोलन अब भी जारी रहता। सरकार इन कानूनों को लागू करने के लिए तैयार है। ऐसे समय में विरोध-प्रदर्शनों के फिर से शुरू होने की संभावना है। 

2020 की शुरूआत में कोविड-19 महामारी के फूटने से देश को झटका लगा। यह न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बन गया। बिना तैयारी के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने चीजों को अपने हाथ में लिया और रोग से लडऩे में देश का नेतृत्व किया। प्रधानमंत्री ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों को सक्रिय कर और उनके समर्थन को जुटा कर देश का नेतृत्व किया। इससे देश में एकता का संदेश गया लेकिन बाद में राजनीति भी हुई। गैर भाजपा सरकारों ने पर्याप्त मदद न मिलने की शिकायत करनी शुरू कर दी। 2021 में सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती पर्याप्त टीके प्राप्त करना और उन्हें वितरित करना है। दुर्भाग्य से कुछ महीनों के लिए लॉकडाऊन के कारण अभूतपूर्व अव्यवस्था थी और इसने प्रवासी श्रमिकों की भयानक दुर्दशा को जन्म दिया जिन्हें खुद के हाल पर छोड़ दिया गया था। कइयों को अपने घरों तक हजारों किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ा। 

लाकडाऊन ने भी अर्थव्यवस्था को चकनाचूर कर दिया लेकिन भारत इसमें अकेला नहीं था क्योंकि पूरी दुनिया ही प्रभावित थी। सरकार की ओर से अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए दी गई मदद से अब ये धीरे-धीरे उठ रही है। जी.डी.पी. वृद्धि भविष्यवाणी की तुलना में बहुत कम होने की उम्मीद है। नागरिक उड्यन, कृषि, पर्यटन, आतिथ्य और अन्य कई क्षेत्र हैं जिन्हें बढ़ावा देने की आवश्यकता थी। प्रमुख क्षेत्रों में से बेरोजगार हो जाना एक बड़ा नुक्सान था। यह अनुमान लगाया गया था कि 2017-18 में नौकरी की हानि 45 वर्ष के ऊंचे स्तर पर थी। ये सब नोटबंदी और जी.एस.टी. के रोल आऊट के प्रभाव के कारण था। ऊंची जी.डी.पी. वृद्धि के कारण भारत सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। विकास संकेतकों ने अन्य समस्याओं को भी दिखाया। 

यहां तक कि जब देश कोविड के साथ संघर्ष कर रहा था, सरकार ने दिसम्बर 2019 में तीन कृषि कानून पारित किए जिसने मोदी सरकार के लिए एक और सिरदर्द पैदा कर दिया। इसने हजारों किसानों को विरोध करने के लिए उकसाया है। पंजाब में केंद्रित प्रदर्शन अब सारे राज्यों में फैल चुके हैं और हजारों की संख्या में किसान दिल्ली में इन कानूनों को रद्द करवाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। विपक्ष पूरी तरह से किसानों की पैरवी करता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन सीमा पर चिंता पैदा कर रहा है और वह हमेशा से ही भारत के लिए एक चुनौती रहा है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एल.ए.सी.) के साथ कई घर्षण बिंदुओं पर भारतीय और चीनी सैनिक आमने-सामने हैं। घरेलू पक्ष पर एन.डी.ए. गठबंधन ने बिहार चुनाव जीता लेकिन दिल्ली केजरीवाल के पास रह गई। कुल मिलाकर वर्ष 2020 मोदी और उनकी पार्टी भाजपा के लिए चुनौतियों भरा वर्ष था।-कल्याणी शंकर
 

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