आर्थिक ‘चुनौतियों’ का वर्ष रहा 2019

Tuesday, Dec 24, 2019 - 04:31 AM (IST)

यकीनन वर्ष 2019 भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आर्थिक चुनौतियों का वर्ष रहा। वर्ष 2019 में देश की अर्थव्यवस्था का हर क्षेत्र मांग की कमी का सामना करते हुए दिखाई दिया। रीयल एस्टेट, मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर, ऑटोमोबाइल सैक्टर में सुस्ती के हालात रहे। निर्यात में कमी, खपत में गिरावट, निवेश में कमी और अर्थव्यवस्था के उत्पादन एवं सेवा क्षेत्रों में गिरावट से भारतीय अर्थव्यवस्था संकट ग्रस्त दिखाई दी। 

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019-20 में विकास दर संबंधी विभिन्न अध्ययन रिपोर्टों में देश की विकास दर घटने और आर्थिक संकट के विश्लेषण प्रस्तुत किए गए। ख्याति प्राप्त रेटिंग एजैंसी मूडीज ने चालू वित्त वर्ष 2019-20 के लिए आॢथक विकास दर का अनुमान 5.6 फीसदी कर दिया। मूडीज ने यह भी कहा कि सरकार का राजकोषीय घाटा (फिजिकल डेफिसिट) सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के 3.3 फीसदी के निर्धारित लक्ष्य से बढ़कर 3.7 फीसदी के स्तर पर पहुंच सकता है।

कुछ जोरदार उपलब्धियां भी भारत के खाते में आईं
यद्यपि वर्ष 2019 में आर्थिक सुस्ती से मुश्किलें बनी रहीं लेकिन बीते हुए  वर्ष में कुछ जोरदार आॢथक उपलब्धियां भी भारत के खाते में आईं। खासतौर से वर्ष 2019 में महंगाई नियंत्रित रही। 1 दिसम्बर, 2019 को वैश्विक आॢथक सुस्ती के बीच भी भारत का विदेशी मुद्रा कोष 453 अरब डालर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। वर्ष 2019 में वर्ष 2018 की तुलना में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ.डी.आई.) भी बढ़ा। वर्ष 2019 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफ.पी.आई.) भी तेजी से बढ़ा। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने वर्ष 2019 में करीब 1.31 लाख करोड़ रुपए का निवेश भारतीय पूंजी बाजार में किया। खास बात यह भी रही कि वल्र्ड बैंक द्वारा जारी ईज ऑफ डूइंग बिजनैस रिपोर्ट 2020 में भारत 190 देशों की सूची में 14 स्थान की छलांग लगाकर 63वें स्थान पर पहुंच गया। 

गौरतलब है कि वर्ष 2019 में देश में भ्रष्टाचार में कुछ कमी आई। ट्रांसपेरैंसी इंटरनैशनल की रिपोर्ट 2019 में 180 देशों में भारत की रैंक 78 रही। पिछले वर्ष यह रैंक 81वीं थी। देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का कार्य प्रस्तुतीकरण वर्ष 2018 की तुलना में वर्ष 2019 में संतोषप्रद दिखाई दिया। यह भी कोई छोटी बात नहीं है कि दिसम्बर 2019 में आर्थिक सुस्ती के बीच भी मुंबई शेयर बाजार का सैंसेक्स 41,700 अंकों से अधिक की रिकॉर्ड ऊंचाई पर दिखाई दिया। संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट 2019 के मुताबिक भारतीय प्रवासी विदेशों से सबसे अधिक धन स्वदेश भेजने के मामले में पहले क्रम पर रहे। प्रवासियों ने वर्ष 2019 में 79 अरब डॉलर भारत भेजे। इन सबके अलावा वैश्विक आर्थिक मंचों पर भारत की प्रतिष्ठा बढ़ती हुई दिखाई दी। 

जी.एस.टी. संग्रह सुस्त रहा
लेकिन इसमें कोई दो-मत नहीं है कि वर्ष 2019 को वर्ष 2018 से आर्थिक सुस्ती का जो दौर विरासत में मिला था उसमें 2019 में माह-प्रतिमाह और तेजी आती गई और इसका देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। वर्ष 2019 में जी.एस.टी. संबंधी खामियों के कारण भी भारतीय अर्थव्यवस्था की मुश्किलें बढ़ीं। जी.एस.टी. संबंधी खामियों के कारण पहले साल के दौरान जी.एस.टी. कर संग्रह सुस्त रहा। रिटर्न व्यवस्था और तकनीकी व्यवधान की जटिलता की वजह से बिल मिलान, रिफंड के ऑटोजनरेशन तथा जी.एस.टी. कर अनुपालन व्यवस्था संबंधी भारी कमियां सामने आईं। प्रत्यक्ष करों संबंधी मुश्किलों का भी अर्थव्यवस्था पर असर दिखाई दिया। 

सरकार ने उठाए एक के बाद एक कई कदम
ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था की सुस्ती दूर करने के लिए सरकार ने वर्ष 2019 में एक के बाद एक कई कदम उठाए। देश की अर्थव्यवस्था को गतिशील करने के लिए एक बड़ा कदम 23 अगस्त को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के द्वारा कई वित्तीय घोषणाओं के रूप में सामने आया। अर्थव्यवस्था की सुस्ती और पूंजी बाजारों के संकट को दूर करने के लिए वित्तमंत्री ने कई उपायों की घोषणा की। सरकार द्वारा बैंकों में नकदी बढ़ाने, सूक्ष्म, लघु एवं मझोली कम्पनियों के लिए जी.एस.टी. रिफंड को आसान बनाने, संकट से जूझ रहे वाहन क्षेत्र को राहत देने और सभी पात्र स्टार्टअप कम्पनियों तथा उनके निवेशकों को ऐंजल टैक्स से छूट देने की भी घोषणा की गई। सरकार के द्वारा अर्थव्यवस्था को गतिशील करने के लिए 32 नए उपायों की घोषणा की गई। खासतौर से बाजार में नकदी बढ़ाने के लिए सरकारी बैंकों को 70 हजार करोड़ रुपए दिए जाने की घोषणा हुई। वित्त मंत्री ने आवास एवं वाहन ऋण और उपभोग की वस्तुएं सस्ती करने के लिए भी उपायों की घोषणा की।

उल्लेखनीय है कि 26 अगस्त को अपने 84 साल के इतिहास में पहली बार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आर.बी.आई.) के द्वारा लाभांश और अधिशेष कोष के मद से 1.76 लाख करोड़ रुपए केन्द्र सरकार को ट्रांसफर करने का निर्णय लिया गया। आर.बी.आई. के पास संरक्षित 9.6 लाख करोड़ रुपए का अधिशेष कोष है जिसमें से 1.76 लाख करोड़ रुपए केन्द्र सरकार को दिए गए। पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में गठित समिति की रिपोर्ट में आर.बी.आई. की आरक्षित निधि और इसके लाभांश का सरकार को हस्तांरण किए जाने के संबंध में सिफारिश की थी, जिन्हें स्वीकार करते हुए आर.बी.आई.ने यह कदम उठाया। 

फिर 14 सितम्बर को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने निर्यात क्षेत्र में तेजी लाने के लिए कई अहम घोषणाएं की। निर्यात बढ़ाने के लिए 50 हजार करोड़ रुपए का फंड बनाया गया। निर्यातकों के लिए ऋण प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिए ऋण आबंटन के संशोधित नियम सुनिश्चित किए गए। निर्यातकों को विदेशों से 4 प्रतिशत से भी कम की दर पर कर्ज मिलना सुनिश्चित किया गया। बढ़ते आर्थिक संकट को थामने के लिए 20 सितम्बर को वित्तमंत्री सीतारमण ने कार्पोरेट टैक्स 30 फीसदी से घटाकर 22 फीसदी कर दिया। साथ ही नई कम्पनियों पर कार्पोरेट टैक्स 25 फीसदी से घटाकर 15 फीसदी कर दिया।

इससे कम्पनियों को करीब 1.45 लाख करोड़ की छूट मिली। इससे निवेश बढ़ाने और छंटनी बढ़ाने और छंटनी रूकने की बात कही गई। इससे भारत सबसे कम कार्पोरेट टैक्स दरों वाले देशों में शामिल हो गया है। इसी तारतम्य में जी.एस.टी. काऊंसिल ने होटल आऊटडोर केटरिंग समेत 12 सेवाओं व 20 वस्तुओं पर जी.एस.टी. में राहत दी । 20 नवम्बर को सरकार ने राजकोषीय घाटे की चुनौती के मद्देनजर विनिवेश (डिसइन्वैस्टमैंट) का बड़ा कदम उठाते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के 5 बड़े उपक्रमों के विनिवेश की घोषणा की गई ताकि वर्ष 2019-20 के लिए बजट के तहत निर्धारित 1.05 लाख करोड़ रुपए के विनिवेश लक्ष्य की पूर्ति हो सके। 

इसमें कोई दो-राय नहीं है कि वर्ष 2019 में सरकार ने आर्थिक संकट के प्रभावों को कम करने के कई उपाय किए लेकिन आर्थिक संकट के दुष्प्रभाव आशा के अनुरूप कम नहीं हो पाए। चूंकि वैश्विक आर्थिक अध्ययन रिपोर्टों में वर्ष 2020 भी भारत के लिए आॢथक चुनौतियों का वर्ष बताया जा रहा है, अत: इन चुनौतियों से निपटने के लिए नए वर्ष 2020 की शुरूआत से ही नई रणनीति बनानी होगी और अधिक कारगर प्रयास करने होंगे। सरकार द्वारा आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचे पर खर्च बढ़ाना होगा। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की आवक सुनिश्चित करनी होगी। सरकार को कृषि तथा किसानों के कल्याण के लिए नए कदम उठाने होंगे। 

 निश्चित रूप से सरकार को नए वर्ष 2020 में वैश्विक सुस्ती के बीच निर्यात मौकों को मुट्ठियों में लेने के लिए  रणनीति के साथ आगे बढऩा होगा। सरकार के द्वारा वर्ष 2020 में चारों श्रम संहिताओं को लागू करना होगा। सरकार को वर्ष 2020 में मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर, बैंकिंग सैक्टर, कार्पोरेट सैक्टर, ई-कॉमर्स, ग्रामीण विकास, भूमि एवं कालेधन पर नियंत्रण से लेकर रोजगार को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी और कठोर कदम उठाने होंगे। ऐसा होने पर ही वर्ष 2020 में आर्थिक सुस्ती के दुष्परिणामों से बचा जा सकेगा। साथ ही वर्ष 2024 तक 5 ट्रिलियन डालर यानी 350 लाख करोड़ रुपए वाली भारतीय अर्थव्यवस्था का जो चमकीला सपना सामने रखा गया है, उस सपने को साकार करने की दिशा में कदम आगे बढ़ाए जा सकेंगे।-डा. जयंतीलाल भंडारी
 

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