राष्ट्र साधना के 100 वर्ष

punjabkesari.in Thursday, Oct 02, 2025 - 03:51 AM (IST)

100 वर्ष पूर्व विजयदशमी के महापर्व पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी। यह हजारों वर्षों से चली आ रही उस परंपरा का पुनर्स्थापन था जिसमें राष्ट्र चेतना समय-समय पर उस युग की चुनौतियों का सामना करने के लिए नए-नए अवतारों में प्रकट होती है। इस युग में संघ उसी अनादि राष्ट्र चेतना का पुण्य अवतार है। यह हमारी पीढ़ी के स्वयंसेवकों का सौभाग्य है कि हमें संघ के शताब्दी वर्ष जैसा महान अवसर देखने को मिल रहा है। मैं इस अवसर पर राष्ट्र सेवा के संकल्प को समर्पित कोटि-कोटि स्वयंसेवकों को शुभकामनाएं देता हूं। मैं संघ के संस्थापक, हम सभी के आदर्श परम पूज्य डाक्टर हेडगेवार जी के चरणों में श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। संघ की 100 वर्षों की इस गौरवमयी यात्रा की स्मृति में भारत सरकार ने विशेष डाक टिकट और स्मृति सिक्के भी जारी किए हैं।

जिस तरह विशाल नदियों के किनारे मानव सभ्यताएं पनपती हैं, उसी तरह संघ के किनारे भी सैंकड़ों जीवन पुष्पित-पल्लवित हुए हैं। जैसे एक नदी जिन रास्तों से बहती है, उन क्षेत्रों को अपने जल से समृद्ध करती है, वैसे ही संघ ने इस देश के हर क्षेत्र, समाज के हर आयाम को स्पर्श किया है। जिस तरह एक नदी कई धाराओं में खुद को प्रकट करती है, संघ की यात्रा भी ऐसी ही है। संघ के अलग-अलग संगठन भी जीवन के हर पक्ष से जुड़कर राष्ट्र की सेवा करते हैं। शिक्षा, कृषि, समाज कल्याण, आदिवासी कल्याण, महिला सशक्तिकरण, समाज जीवन के ऐसे कई क्षेत्रों में संघ निरंतर कार्य करता रहा है। विविध क्षेत्रों में काम करने वाले हर संगठन का उद्देश्य एक ही है, भाव एक ही है-राष्ट्र प्रथम।

अपने गठन के बाद से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्र निर्माण का विराट उद्देश्य लेकर चला। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए संघ ने व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण का रास्ता चुना और इस पर चलने के लिए जो कार्यपद्धति चुनी वह थी नित्य-नियमित चलने वाली शाखाएं। संघ शाखा का मैदान, एक ऐसी प्रेरणा भूमि है, जहां से स्वयंसेवक की अहम् से वयं की यात्रा शुरू होती है। संघ की शाखाएं व्यक्ति निर्माण की यज्ञवेदी हैं। राष्ट्र निर्माण का महान उद्देश्य, व्यक्ति निर्माण का स्पष्ट पथ और शाखा जैसी सरल, जीवंत कार्यपद्धति यही संघ की 100 वर्षों की यात्रा का आधार बने। इन्हीं स्तंभों पर खड़े होकर संघ ने लाखों स्वयंसेवकों को गढ़ा, जो विभिन्न क्षेत्रों में देश को आगे बढ़ा रहे हैं। 

संघ जब से अस्तित्व में आया, देश की प्राथमिकता ही उसकी अपनी प्राथमिकता रही। आजादी की लड़ाई के समय परम पूज्य डाक्टर हेडगेवार जी समेत अनेक कार्यकत्र्ताओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया, डाक्टर साहब कई बार जेल तक गए। आजादी की लड़ाई में कितने ही स्वतंत्रता सेनानियों को संघ संरक्षण देता रहा। उनके साथ कंधेे से कंधा मिलाकर काम करता रहा। आजादी के बाद भी संघ निरंतर राष्ट्र साधना में लगा रहा। इस यात्रा में संघ के खिलाफ  साजिशें भी हुईं, संघ को कुचलने का प्रयास भी हुआ। ऋषितुल्य परम पूज्य गुरु जी को झूठे केस में फंसाया गया, लेकिन संघ के स्वयंसेवकों ने कभी कटुता को स्थान नहीं दिया, क्योंकि वह जानते हैं, हम समाज से अलग नहीं हैं, समाज हमसे ही तो बना है। समाज के साथ एकात्मता और संवैधानिक संस्थाओं के प्रति आस्था ने संघ के स्वयंसेवकों को हर संकट में स्थित प्रज्ञ रखा है, समाज के प्रति संवेदनशील बनाए रखा है।

प्रारंभ से संघ, राष्ट्रभक्ति और सेवा का पर्याय रहा है। जब विभाजन की पीड़ा ने लाखों परिवारों को बेघर कर दिया, तब स्वयंसेवकों ने शरणार्थियों की सेवा की। हर आपदा में संघ के स्वयंसेवक अपने सीमित संसाधनों के साथ सबसे आगे खड़े रहते रहें। यह केवल राहत नहीं थी, यह राष्ट्र की आत्मा को संबल देने का कार्य था। खुद कष्ट उठाकर दूसरों के दुख हरना हर स्वयंसेवक की पहचान है। आज भी प्राकृतिक आपदा में हर जगह स्वयंसेवक सबसे पहले पहुंचने वालों में से एक रहते हैं।अपनी 100 वर्षों की इस यात्रा में, संघ ने समाज के अलग-अलग वर्गों में आत्मबोध जगाया, स्वाभिमान जगाया। संघ देश के उन क्षेत्रों में भी कार्य करता रहा है जो दुर्गम हैं, जहां पहुंचना सबसे कठिन है। संघ दशकों से आदिवासी परंपराओं, आदिवासी रीति-रिवाजों, आदिवासी मूल्यों को सहेजने-संवारने में अपना सहयोग देता रहा है, अपना कत्र्तव्य निभा रहा है। आज सेवा भारती, विद्या भारती, एकल विद्यालय, वनवासी कल्याण आश्रम आदिवासी समाज के सशक्तिकरण का स्तंभ बनकर उभरे हैं। 

समाज में सदियों से घर कर चुकी जो बीमारियां हैं, जो ऊंच-नीच की भावना है, जो कुप्रथाएं हैं, ये हिन्दू समाज की बहुत बड़ी चुनौती रही हैं। यह एक ऐसी गंभीर चिंता है, जिस पर संघ लगातार काम करता रहा है। डाक्टर साहब से लेकर आज तक, संघ की हर महान विभूति ने हर सर-संघचालक ने भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। परम पूज्य गुरु जी ने निरंतर ‘न हिन्दू पतितो भवेत्ष’ की भावना को आगे बढ़ाया। पूज्य बाला साहब देवरस जी कहते थे-छुआछूत अगर पाप नहीं, तो दुनिया में कोई पाप नहीं! सरसंघचालक रहते हुए पूज्य रज्जू भैया जी और पूज्य सुदर्शन जी ने भी इसी भावना को आगे बढ़ाया। वर्तमान सरसंघचालक आदरणीय मोहन भागवत जी ने भी समरसता के लिए समाज के सामने ‘एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान’ का स्पष्ट लक्ष्य रखा है।

जब 100 साल पहले संघ अस्तित्व में आया था तो उस समय की आवश्यकताएं उस समय के संघर्ष कुछ और थे लेकिन आज 100 वर्षों बाद जब भारत विकसित होने की तरफ  बढ़ रहा है तब आज के समय की चुनौतियां अलग हैं, संघर्ष अलग हैं। दूसरे देशों पर आर्थिक निर्भरता, हमारी एकता को तोडऩे की साजिशें, डैमोग्राफी में बदलाव के षड्यंत्र, हमारी सरकार इन चुनौतियों से तेजी से निपट रही है। मुझे यह खुशी है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी इन चुनौतियों से निपटने के लिए ठोस रोडमैप बनाया है। अपने इन संकल्पों को लेकर संघ अब अगली शताब्दी की यात्रा शुरू कर रहा है। 2047 के विकसित भारत में संघ का हर योगदान देश की ऊर्जा बढ़ाएगा, देश को प्रेरित करेगा। पुन: प्रत्येक स्वयंसेवक को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।-नरेन्द्र मोदी(प्रधानमंत्री, भारत )


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