10 प्रतिशत आरक्षण, 100 प्रतिशत विवाद

punjabkesari.in Friday, Nov 18, 2022 - 04:25 AM (IST)

7 नवंबर  2022 को सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 2 के मुकाबले 3 जजों के बहुमत से केस संख्या डब्ल्यू.पी. (सी) 55/2019 में अपना निर्णय सुनाते हुए संविधान (103वा संशोधन) एक्ट 2019  को विधि सम्मत माना है। इसी के साथ आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को शिक्षा और नौकरियों में 10 प्रतिशत कोटा देने के रास्ते की आखिरी अड़चन भी दूर हो गई है। इस संशोधन में वे नागरिक शामिल नहीं हैं जो अनुसूचित जाति, जनजाति अथवा अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी में पहले ही संविधान के अनुच्छेद 15 (4) और (5), और 16 (4) के तहत शामिल थे। लेकिन इस निर्णय के राजनीतिक और संवैधानिक प्रभाव दूरगामी होने वाले हैं। 

सवाल यह है कि क्या वोट बैंक नीति संचालित भारतीय राजनीति इसे सहजता से स्वीकार कर लेगी? क्या इस निर्णय के बाद आरक्षण नीति जाति आधारित न होकर, अमीर और गरीब की ओर उन्मुख हो जाएगी? क्या भारतीय संविधान की मूलभावना इस बदलाव को स्वीकार करेगी? क्या न्यायपालिका 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा के अपने इंदिरा साहनी केस के निर्णय को नई दृष्टि से देखेगी? वर्तमान में आरक्षण राजनीतिक गुणा भाग में बदलता जा रहा है। इसलिए आरक्षण पर बात करना तलवार की धार पर चलने जैसा है। आप चाहे पक्ष में हों, विपक्ष में हों या फिर तटस्थ हों। कोई न कोई नाराज रहता ही है। इसके लिए सबसे पहले आरक्षण के पीछे की संवैधानिक और सामाजिक मंशा समझ लें। 

आरक्षण की पृष्ठभूमि : आरक्षण के लिए संवैधानिक (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 जारी किया गया। इसमें भारत के राज्यों की 1108 जातियों के नाम शामिल किए गए थे। आरक्षण में जो सबसे बड़ी चीज राज्य की शिक्षा और नौकरियां वह संसाधन हैं जो दांव पर लगे हैं। देश में जनसंख्या 1947 के मुकाबले चार गुणा बढ़ी। लेकिन सरकारी शिक्षा संस्थानों और नौकरियों की संख्या उस अनुपात में घटी ही है। 

किसी भी समाज में समानता के नियम तभी प्रासंगिक हो सकते हैं, जब वे समान स्तर पर खड़े लोगों पर लागू हों। इसलिए सबसे पहले जरूरी था सामाजिक और आर्थिक विषमता को खत्म करके सभी को एक समान बनाना। लेकिन आज अर्थव्यवस्था 1992 में आए निजीकरण की दौड़ में बहुत आगे निकल चुकी है। इसके कारण सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों की संख्या घटती जा रही है। डिमांड और सप्लाई सिस्टम में हजारों गुणा का अंतर आ गया है। इससे समाज में हर जाति समूह सरकारी रजिस्टर में पिछड़ा बनने की होड़ में है। 

संविधान सभा की भूमिका : संविधान सभा का पहला उद्देश्य एक ऐसा संविधान बनाना था, जो स्वतंत्रता, समानता, न्याय और बंधुत्व की स्थापना कर सके। इसका दूसरा उद्देश्य था सभी प्रकार के शोषण, अन्याय, भेद भाव तथा गुलामी का अंत करना। उसकी बहस में मुख्यरूप से जो सवाल सामने आए वह कुछ इस प्रकार थे : 

क्या अंग्रेजों से आजादी के बाद भी रिजर्वेशन की जरूरत है? रिजर्वेशन का हकदार किसे माना जाए?  निचली जाति किसे माना जाए? रिजर्वेशन को जाति के आधार पर दिया जाए या आर्थिक आधार पर? रिजर्वेशन में समानता बनाम योग्यता का संतुलन कैसे होगा? कब तक रिजर्वेशन दिया जाए? इस बहस में एस. नागप्पा, टी.टी. कृष्णामाचारी, मोहन लाल गौतम, ए. ए. गुरुंग, कन्हैया माणिकलाल मुंशी, टी. चेन्नईया और कई सदस्यों ने बड़ी लंबी और सार्थक बहस की। इस सारी बहस को डा.आंबेडकर ने समाप्त किया। 

आर्थिक आरक्षण का आधार : आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के आरक्षण (ई.डब्ल्यू.एस.) के लिए सरकार ने क्रीमी लेयर की तरह कुछ मापदंड तय किए हैं। जिस परिवार की सकल वाॢषक आय 8 लाख रुपए से कम है, उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के रूप में माना गया है। आय में सभी स्रोतों यानी वेतन, कृषि, व्यवसाय, पेशे आदि से आय भी शामिल होगी। लेकिन यदि किसी परिवार के पास 5 एकड़ से अधिक कृषि भूमि है, या 1000 वर्ग फुट से अधिक का आवासीय प्लॉट है, अथवा नगरपालिका क्षेत्र में 100 वर्ग गज का आवासीय भूखंड हो तो ऐसे लोगों को ई.डब्ल्यू.एस. श्रेणी में आरक्षण नहीं मिलेगा, भले ही उनकी सालाना आय 8 लाख से कम हो। कई लोग ई.डब्ल्यू.एस. आरक्षण को अपर कास्ट आरक्षण बता कर इसका अति सरलीकरण कर रहे हैं। इससे लोगों में नीति को लेकर भ्रम की स्थिति है। लेकिन इसके अंतर्गत हर जाति और धर्म के लोग जो पहले से आरक्षण लाभ नहीं पा रहे वे इसके पात्र हैं। 

निष्कर्ष : आरक्षण के पक्ष और विपक्ष दोनों की बातों में वाजिब तर्क हमेशा रहेंगे। लेकिन इसका उद्देश्य समाज में व्याप्त असमानता और आर्थिक विषमता को खत्म करना है। जो लोग तर्क देते हैं कि आरक्षण पहले 10 सालों के लिए था, उन्हें यह भी देखना चाहिए कि क्या दलितों और पिछड़ों के साथ सामाजिक और मानसिक भेदभाव खत्म हुआ? क्या आज भी सफाई का काम करने वालों में अनुसूचित जातियों के अलावा कथित ऊंची जातियों के लोग शामिल हुए? क्या समाज में रोटी बेटी के संबंध स्वीकृत हुए?-डा. रवि रमेशचन्द्र


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