रेलवे का ये कैसा इंसाफ, 20 साल से लावारिस लाशें उठाने काे मजबूर ये शख्स

Monday, Jun 20, 2016 - 07:21 PM (IST)

गयाः बिहार के गया जिले में एक शख्स काे 20 साल पहले की गलती की सजा अब तक भुगतनी पड़ रही है। दरअसल, 20 साल पहले 1995 में लखन अपनी पत्नी के साथ ट्रेन में बिना टिकट यात्रा करता पकड़ा गया था। उसके पास जुर्माने के पैसे नहीं थी और टीटी उन्हें जेल भेजने की तैयारी में था। लेकिन तभी रेल थाना के बड़ा बाबू ने उनका जुर्माना भर दोनों को मुक्त करा लिया और बदले में उसे रेलवे ट्रैक पर मिलने वाले अज्ञात शवों को कानूनी तरीके से अंतिम संस्कार करने की जिम्मेदारी दे दी। 

बचते है सिर्फ 200-250 रुपए
बढ़ती महंगाई और परिवार के बोझ के आगे अब लखन के कंधे जवाब देने लगे हैं। शव निस्तारण को मिलने वाले चंद रुपयों से ही उसे परिवार का भरण-पोषण करना पड़ रहा है। लाश को उठाने से लेकर अंमित संस्कार के लिए रेल प्रशासन की ओर से लखन काे 1000 रुपए मिलते हैं। उसकी मानें तो शव को उठाने के लिए एक साथी जरूरी है, इसके लिए उसे 200 रुपए देने होते हैं। फिर 100 रुपए पोस्टमार्टम हाउस में। अंतिम संस्कार में 400 की लकड़ी लगती है। मरघट पर जलाने के लिए 100-50 रुपए देने पड़ते है। इस पर उन्हें बचे 200-250 रुपयाें से ही घर चलाना पड़ रहा है। इसके अलावा उसे एक भी फूटी कौड़ी नहीं मिलती। 
 
फैलाने पड़ते हैं हाथ
लखन कहता है कि रोज-रोज अज्ञात लाश नही मिलती। महीने में औसतन चार-पांच ऐसी घटनाएं होती हैं। कई बार मांगकर या रेल थाने में हाथ फैलाकर घरवालों का पेट भरना पड़ता है। लखन और पत्नी ओरूम दास सरकार से आस लगाए बैठे हैं कि कभी न कभी उन्हें इस काम के लिए स्थायी नौकरी या जरूरत भर पैसा मिलेगा।
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