लड़कियां ने दिखाया कि किस तरह रोजाना 1 रुपया एजेंसी का दावा करने में उनके लिए मददगार साबित हो रहा है

Wednesday, Oct 14, 2020 - 06:19 PM (IST)

नई दिल्ली: यह सिर्फ रोजाना एक रुपये का स्वैच्छिक योगदान है, लेकिन यह पहल बिहार के नवादा जिले की युवा लड़कियों को उनकी मासिक जरूरतों के बारे में बात करने और एजेंसी का दावा करने में मदद कर रहा है। एडुटेनमेंट शो मैं कुछ भी कर सकती हूं (एमकेबीकेएसएच) से प्रेरित होकर युवा महिलाओं के इस समूह ने एक सैनिटरी पैड बैंक की स्थापना की है। वे हर लड़की से प्रति दिन 1 रुपये एकत्रित करती हैं और अपने व अन्य लड़कियों (जिनके पास पैड खरीदने के लिए साधन नहीं हैं ) के लिए सैनिटरी पैड खरीदने के लिए उस पैसे का इस्तेमाल करती हैं। लड़कियों ने एक-दूसरे की मदद करने के लिए एक साथ आने का फैसला किया जब उन्होंने देखा कि कैसे पैसे की कमी की वजह से उनकी व्यक्तिगत मासिक धर्म की जरूरतें प्राय: पूरी नहीं हो पातीं।


लड़कियों ने साझा किया कि किस तरह वे इस दिशा में आगे बढऩे के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं से प्रेरित हुईं। यह शो  परिवार नियोजन, जल्दी शादी(बाल विवाह), अनियोजित या जल्दी गर्भधारण, घरेलू हिंसा और किशोरी प्रजनन और यौन स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को उठाने की पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की एक ट्रांस-मीडिया एडुटेनमेंट पहल है। सेनेटरी पैड्स बैंक क्यों और कैसे बनाया गया, इस बारे में बताते हुए अमावा गांव की यूथ लीडर अनु कुमारी कहती हैं, उन लड़कियों की मदद के लिए जिनके पास पैसे नहीं हैं, हम रोजाना एक रुपये जमा करते हैं। इसका मतलब हर लड़की एक महीने में 30 रुपये जमा करती है। उस पैसे से हम सैनिटरी पैड खरीदते हैं और गरीब लड़कियों में वितरित करते हैं, जो अपने मासिक धर्म के दौरान पैड खरीदने में सक्षम नहीं हैं।

इस बारे में नवादा के पूर्व सिविल सर्जन, डॉ. श्रीनाथ प्रसाद कहते हैं, लड़कियां पहले खुद के लिए बोलने में असमर्थ थीं। वे अपने शरीर में हो रहे शारीरिक परिवर्तनों से अनजान थीं। उन्हें सैनिटरी पैड के बारे में पता नहीं था लेकिन आज उन्होंने सैनिटरी पैड्स का बैंक शुरू किया है। आप सोच सकते हैं कि लड़कियों पर शो का किस हद तक असर हुआ है  कि वे आत्मविश्वास से कह रहीं हैं मैं कुछ भी हासिल कर सकती हूं। धीरे-धीरे, पुरुषों की सोच में भी बदलाव देखे जा सकते हैं। हरदिया के पूर्व मुखिया, भोला राजवंशी ने कहा, मुझे लगता है कि हमारा समाज बदल चुका है। अब लड़कियों और लड़कों के बीच कोई अंतर नहीं है। अब महिलाएं भी मासिक धर्म को लेकर होने वाली बातचीत में बदलाव को महसूस कर रही हैं। कम्युनिटी की सदस्य संगीता देवी कहती हैं, पहले हम मासिक धर्म के दौरान होने वाले कष्ट को चुपचाप सहन  करते थे। हमारी बेटियों ने हमें नैपकिन्स के बारे में बताया। हमने भी मैं भी कुछ कर सकती हूं देखा और प्रोत्साहित हुईं। मुझे लगता है ये सभी बदलाव सिर्फ उस शो की वजह से संभव हुए।

पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा इस बात से खुश हैं कि किस तरह मैं कुछ भी कर सकती हूँ ने लाखों युवा लड़कियों और महिलाओं को आवाज दी है। वह कहती हैं, च्च्मुझे खुशी है कि यह शो उनके जीवन पर असर डाल रहा है और यही हमारा लक्ष्य है। सीरीज की नायिका डॉ. स्नेहा माथुर के प्रेरक किरदार के माध्यम से, हमने मुश्किल लेकिन महत्वपूर्ण विषयों मसलन, सेक्स सेलेक्शन (लिंग चयन), हिंसा, लैंगिक भेदभाव, स्वच्छता, परिवार नियोजन, स्पेसिंग, बाल विवाह, मानसिक स्वास्थ्य, नशीली दवाओं के दुरुपयोग, पोषण और किशोर स्वास्थ्य के बारे में बातचीत शुरू की है। बिहार की इन युवा लड़कियों ने सैनिटरी पैड्स का एक बैंक बनाया है और साथ ही किशोरियों के अनुकूल हेल्थ क्लीनिक की शुरुआत करने में भी सफल रही हैं जो पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया के लिए बेहद गर्व की बात है। 

शो के निर्माता व जाने-माने फिल्म और थिएटर निर्देशक फिरोज अब्बास खान कहते हैं, सात साल पहले जब मैंने शो का कांसेप्ट लिखा था, तो इस तरह के प्रभाव की कल्पना भी नहीं कर सकता था जो हमने इन वर्षों के दौरान देखा है। मैं एक उच्च क्वालिटी का शो बनाना चाहता था जो बिना भाषणबाजी के महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों पर प्रभावी ढंग से संवाद करे। इससे मुझे बहुत खुशी मिलती है है कि मैं कुछ भी कर सकती हूं युवा, किशोर लड़कियों के लिए एक सशक्त नारा बन गया है जो अब धरातल पर बदलाव की अगुवाई कर रही हैं। मैं कुछ भी कर सकती हूँ एक युवा डॉक्टर डॉ. स्नेहा माथुर के प्रेरक सफर के इर्द-गिर्द घूमती है जो मुंबई में अपने आकर्षक कैरियर को छोड़कर अपने गांव में काम करने का फैसला करती है। इसकी कहानी डॉ. स्नेहा के सभी के लिए बेहतरीन स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने के संघर्ष पर केंद्रित है। उनके नेतृत्व में गाँव की महिलाएं सामूहिक कार्रवाई के ज़रिए अपनी आवाज उठाती हैं।

Anil dev

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