भारत की युवतियां भी अब बढ़-चढ़ कर पीने लगीं शराब

Wednesday, Jan 11, 2017 - 12:51 AM (IST)

यह बात तो सर्वविदित है कि शराब पीने से अनेक गंभीर रोग होते हैं इससे होने वाली मौतों के चलते बड़ी संख्या में परिवारों के परिवार उजड़ रहे हैं, फिर भी लोग शराब पीने से बाज नहीं आ रहे।

प्रमुख औद्योगिक देशों के ‘आर्थिक सहयोग और विकास संगठन’ (ओ.ई.सी.डी.) के अनुसार विश्व में एड्स, ङ्क्षहसा और टी.बी. जैसे रोगों से होने वाली मौतों से भी ज्यादा शराब पीने से हो रही हैं और शराब विश्व में मौतों और विकलांगता का पांचवां सबसे बड़ा कारण बन गई है।

आस्ट्रेलिया की ‘यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साऊथ वेल्स’ के ‘नशा एवं अल्कोहल अनुसंधान केन्द्र’ द्वारा विश्वव्यापी शोध के अनुसार शराब पीने के मामले में महिलाएं भी पुरुषों के कदम से कदम मिला कर चल पड़ी हैं।

विशेष रूप से गत 2 दशक में युवाओं और महिलाओं में शराब पीने का रुझान बढ़ा है और भारत में लगभग 35 प्रतिशत पुरुष तथा 5 प्रतिशत से अधिक महिलाएं इसकी लपेट में आ चुकी हैं।

हालत यह है कि 15 वर्ष से कम उम्र के लड़कों में कभी न पीने वालों की संख्या 44 प्रतिशत से घट कर 30 प्रतिशत और लड़कियों में 50 प्रतिशत से घट कर 30 प्रतिशत रह गई है।

‘नैशनल  इंस्टीच्यूट ऑफ मैंटल हैल्थ एंड न्यूरो साइंसिज’ (निमहांस) में मनोविज्ञान के प्रोफैसर डा. विवेक बेनेगल का कहना है कि बढ़ रहा वैचारिक खुलापन, आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता तथा काम से जुड़े तनाव की महिलाओं में शराब पीने की लत में मुख्य भूमिका बताई जाती है।

बेंगलूर स्थित महिलाओं के एकमात्र नशा मुक्ति केन्द्र के सी.ई.ओ. सेसिल जॉर्ज के अनुसार युवतियों में अपने पुरुष साथियों के कदम से कदम मिला कर चलने और उनकी ‘मस्त’ आदतें अपनाने का रुझान बढ़ रहा है जिसमें युवकों की शराब पीने की आदत भी शामिल है। अमीर व शिक्षित महिलाओं में ही नहीं, कम आय वर्ग की महिलाओं में भी यह बुराई पैर पसार रही है।

डा. विवेक बेनेगल का कहना है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं की शारीरिक संरचना भिन्न होने के कारण उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए शराब पीना अधिक घातक है। महिलाओं के शरीर में पुरुषों से कम पानी होता है और उनका लिवर भी पुरुषों की तुलना में छोटा होता है। इस कारण उन पर शराब का दुष्प्रभाव अधिक पड़ता है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार एक नए अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है कि गर्भ धारण के प्रथम चंद सप्ताहों के दौरान भ्रूण अत्यंत नाजुक स्थिति में होता है तथा प्रति सप्ताह शराब के 14 या अधिक ‘पैग’ पीने वाली महिलाओं में गर्भ धारण क्षमता 18 प्रतिशत तक घट जाती है।

शराब के कारण ही पिछले कुछ समय में सड़क दुर्घटनाओं में भारी वृद्धि हुई है और इनमें अच्छी-खासी संख्या में नशे में वाहन चला रही युवतियां शामिल पाई गई हैं। अब तो मैट्रोपोलिटन शहरों की तर्ज पर छोटे शहरों में भी युवतियों में शराब और बीयर के सेवन का रुझान बढ़ रहा है।

शिक्षण संस्थानों के निकट शराब के ठेकों पर युवकों के साथ-साथ बड़ी संख्या में युवतियां भी शराब और बीयर खरीदती दिखाई देती हैं।

नव वर्ष की पूर्व संध्या पर देशभर में अनेक स्थानों पर शराब के ठेकों पर युवकों के साथ-साथ युवतियों द्वारा बीयर और शराब खरीदने के दृश्य आम रहे। यहां तक कि हिमाचल के सोलन में शराब के ठेकों पर शराब और बीयर खरीदने के लिए युवतियों की भीड़ लगी रही।

हालांकि सरकार लोगों को नशों से दूर रहने की प्रेरणा देने के लिए प्रचार पर प्रति वर्ष करोड़ों रुपए खर्च कर रही है परंतु शराब के ठेकों पर युवक-युवतियों की बढ़ रही संख्या को देखते हुए तो ऐसा लगता है कि सरकार के नशा विरोधी प्रचार अभियान का कोई असर हो ही नहीं रहा।

अत: आवश्यकता न सिर्फ युवाओं में शराब के विरुद्ध प्रचार अभियान प्रभावशाली ढंग से चलाने की है बल्कि शिक्षा संस्थानों आदि के निकट शराब के ठेकों को बंद करवाने और इस पर सख्ती से अमल करने की भी है।

इसके साथ ही लड़कियों के माता-पिता तथा अध्यापकों को भी उनके व्यवहार तथा गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए ताकि उनमें आ रहे किसी भी असामान्य परिवर्तन का पता लगा कर उस पर समय रहते ही काबू पाया जा सके।       —विजय कुमार  

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