यशवंत सिन्हा के त्यागपत्र से ‘भाजपा को बड़ा झटका’

Sunday, Apr 22, 2018 - 02:51 AM (IST)

इस समय देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा तथा उसके सहयोगी दलों का भले ही देश के 21 राज्यों पर शासन है परंतु इसके बावजूद यह विडम्बना ही है कि पार्टी में सब ठीक नहीं चल रहा है। 

पार्टी के भीतर बगावती सुर रह-रह कर सुनाई दे रहे हैं तथा अनेक वरिष्ठï नेता उनके साथ सौतेला व्यवहार होने का आरोप लगा रहे हैं जिनमें सर्वश्री लाल कृष्ण अडवानी, मुरली मनोहर जोशी, अरुण शोरी और शत्रुघ्न सिन्हा के बाद अब यशवंत सिन्हा का नाम भी जुड़ गया है। 1984 में जनता पार्टी के सदस्य के रूप में सक्रिय राजनीति से जुड़े श्री यशवंत सिन्हा नवम्बर, 1990 से जून, 1991 तक चंद्रशेखर के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री रहे और जून, 1996 में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता बने। मार्च, 1998 में उन्हें श्री वाजपेयी की सरकार में वित्त मंत्री नियुक्त किया गया। 

जहां श्री सिन्हा को अनेक प्रमुख सुधारों को आगे बढ़ाने का श्रेय प्राप्त है वहीं ये ऐसे पहले वित्त मंत्री के रूप में भी जाने जाते हैं जिन्होंने अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही भारतीय बजट को स्थानीय समय के अनुसार शाम 5 बजे प्रस्तुत करने की 53 वर्ष पुरानी परम्परा को तोड़ा। 2014 के चुनावों में इन्हें टिकट न देकर पार्टी नेतृत्व ने इनके पुत्र जयंत सिन्हा को टिकट दिया जो इस समय केंद्र सरकार में नागरिक विमानन राज्यमंत्री हैं और यशवंत सिन्हा को अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण अडवानी तथा मुरली मनोहर जोशी की भांति ही मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया गया। इस पर उन्होंने जून, 2015 में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की आलोचना करते हुए कहा था कि, ‘‘26 मई, 2014 को 75 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को ‘ब्रेन डैड’ घोषित कर दिया गया और मैं उनमें शामिल हूं।’’

उन्होंने नोटबंदी व जी.एस.टी. लागू करने की भी कड़ी आलोचना करते हुए नरेंद्र मोदी की तुलना चौदहवीं सदी के दिल्ली सल्तनत के शासक मोहम्मद बिन तुगलक से की। हालिया करंसी संकट पर भी इन्होंने कहा कि सरकार और रिजर्व बैंक के पास इससे निपटने की वैकल्पिक योजना नहीं है। यही नहीं नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू ‘मेक इन इंडिया’ अभियान की भी आलोचना करते हुए उन्होंने कहा ‘मेक इंडिया फस्र्ट’। गौ रक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा पर भी इन्होंने कहा कि, ‘‘ऐसी घटनाओं से देश में विदेशी निवेश प्रभावित हुआ है और विदेशों में भारत की छवि खराब हुई है।’’ 

भाजपा से मोहभंग के ऐसे माहौल में श्री यशवंत सिन्हा ने इसी वर्ष 30 जनवरी को ‘राष्ट्र मंच’ नामक एक संगठन बनाया तथा कहा कि ‘‘यह गैर राजनीतिक संगठन केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों को उजागर करेगा।’’ अभी इस सप्ताह के शुरू में ही भाजपा सांसदों के नाम खुले पत्र में उन्होंने पार्टी और सरकार में घर कर गई कमजोरियों का उल्लेख करते हुए उन्हें इसके विरुद्ध आवाज उठाने का आह्वान करते हुए लिखा था कि : 

हमने पूरे विश्वास से प्रधानमंत्री का समर्थन किया मगर अब ऐसा लगता है कि हम रास्ता भटक गए हैं और मतदाताओं का विश्वास खो चुके हैं। भ्रष्टाचार फिर सिर उठाने लगा है, कई बैंक घोटाले सामने आए हैं। महिलाएं आज जितनी असुरक्षित हैं पहले कभी नहीं थीं। कई मामलों में हमारे अपने लोग इस घृणित कार्य में शामिल होते हैं। प्रधानमंत्री के लगातार विदेश दौरों और विदेशी राजनेताओं के साथ गले लगने की तस्वीरें ही दिखती हैं। पड़ोसियों से हमारे रिश्ते मधुर नहीं हैं। पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र पूर्णत: समाप्त हो गया है। प्रधानमंत्री के पास आपके लिए समय ही नहीं। 

संसद की कार्रवाई हास्यास्पद स्तर पर पहुंच गई है। इसे सुचारू रूप से चलाने के लिए विपक्षी नेताओं से बैठक करने की बजाय दूसरों पर इसका ठीकरा फोडऩे के लिए प्रधानमंत्री उपवास पर बैठ गए जबकि श्री वाजपेयी के दौर में हमें स्पष्ट निर्देश था कि विपक्ष से सामंजस्य बनाकर सदन सुचारू ढंग से चलाया जाए। कुछ ऐसी भावनाओं के साथ श्री यशवंत सिन्हा ने 21 अप्रैल को भाजपा छोडऩे, इसके साथ अपने सभी संबंधों को समाप्त करने और किसी भी तरह की पार्टी पॉलिटिक्स से संन्यास लेने की घोषणा कर दी है। आज जबकि भाजपा नेतृत्व अनेक वरिष्ठï नेताओं को पहले ही हाशिए पर डाल चुका है, अपनी उपेक्षा से आहत श्री यशवंत सिन्हा द्वारा पार्टी से त्यागपत्र देना निश्चय ही खेदजनक है जिससे पार्टी को हानि हो सकती है। एक ओर भाजपा एक के बाद एक सफलताएं अर्जित कर रही है दूसरी ओर इसके गठबंधन सहयोगी और अपने साथी भाजपा से नाराज हो रहे हैं। अत: भाजपा नेतृत्व को सोचना होगा कि ऐसा क्यों हो रहा है ताकि पार्टी में इससे होने वाले क्षरण को रोका जा सके।—विजय कुमार 

Pardeep

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