गुलामी के दौर की याद दिलाते ‘माई लार्ड’, ‘युअर लार्डशिप’ जैसे शब्द अब बंद होने चाहिएं
punjabkesari.in Saturday, Nov 25, 2023 - 04:42 AM (IST)

भारतीय अदालतों में मुकद्दमों की सुनवाई के दौरान अक्सर वकीलों द्वारा जजों के सामने पेश होते समय अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे सिर झुका कर दो खास शब्दों ‘माई लार्ड’ और ‘युअर लॉर्डशिप’ का प्रयोग किया जाता है। परंतु अब कुछ माननीय न्यायाधीश इस परंपरा को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। इसी सिलसिले में 2019 में राजस्थान हाईकोर्ट की फुल-कोर्ट ने सर्वसम्मति से एक नोटिस जारी कर वकीलों से अनुरोध किया था कि जजों को ‘माई लार्ड’ और ‘युअर लार्डशिप’ कहने की प्रथा समाप्त की जाए।
इससे पूर्व जनवरी, 2014 में जस्टिस एच.एल. दत्तू व जस्टिस एस.ए. बोबडे की पीठ ने भी कहा था कि जजों को ऐसे शब्दों से संबोधित नहीं करना चाहिए। उन्हें सम्मानजनक तरीके से संबोधित करना ही काफी है। मद्रास हाईकोर्ट और ‘बार कौंसिल आफ इंडिया’ ने भी कहा था कि गुलामी के दौर के प्रतीक होने के कारण उक्त दोनों शब्द इस्तेमाल नहीं करने चाहिएं। 5 नवम्बर, 2023 को सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा ने ‘माई लार्ड’ और ‘युअर लॉर्डशिप’ शब्द कहने पर एतराज जताते हुए कहा कि इनके स्थान पर ‘सर’ शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता है। एक मुकद्दमे की सुनवाई के दौरान जब एक वरिष्ठ वकील ने जस्टिस नरसिम्हा को ‘माई लार्ड’ कह कर संबोधित किया तो वह बोले,‘‘आप कितनी बार मुझे ‘माई लार्ड’ कहेंगे? यदि आप ऐसा कहना बंद कर देंगे तो मैं आपको अपना आधा वेतन दे दूंगा।’’
और अब 21 नवम्बर को पाकिस्तान के प्रधान न्यायाधीश काजी फयाज ईसा ने लोक सेवकों के पदों के नाम के साथ ‘साहब’ शब्द जोडऩे पर रोक लगाते हुए कहा है कि ‘‘यह गैर जरूरी तौर पर उनके रुतबे को बढ़ाता है और उन्हें लोगों के प्रति जवाबदेह नहीं होने का एहसास कराता है।’’‘‘इसलिए किसी के पद के नाम के साथ ‘साहब’ शब्द जोडऩा सही नहीं है क्योंकि इससे उनमें अपने रुतबे को लेकर गलतफहमी और गैर जिम्मेदारी की भावना पैदा हो सकती है जो अस्वीकार्य है क्योंकि यह उस जनता के हितों के विरुद्ध है, जिनकी उन्हें सेवा करनी है।’’ जजों और लोकसेवकों के मामले में उपरोक्त टिप्पणियां प्रशंसनीय हैं। किसी स्वतंत्र देश के लिए गुलामी के प्रतीक शब्दों के इस्तेमाल को त्यागने में ही बुद्धिमत्ता है।—विजय कुमार