शराब के ठेकों के विरुद्ध महिलाएं उतरीं सड़कों पर

Friday, Apr 07, 2017 - 10:29 PM (IST)

स्वतंत्रता से पूर्व ही कांग्रेस ने शराब के विरुद्ध अभियान छेड़ा था तथा जनवरी,1925 में 30,000 महिलाओं ने तत्कालीन वायसराय को अपना हस्ताक्षरयुक्त मांग पत्र देकर सभी नशों पर पूर्ण रोक लगाने की मांग की थी। गांधी जी ने तो ‘यंग इंडिया’ में यहां तक लिखा था कि ‘‘यदि मुझे एक घंटे के लिए ही भारत का शासक बना दिया जाए तो मैं सबसे पहला काम बिना कोई क्षतिपूर्ति दिए शराब की दुकानें बंद करवाने का करूंगा।’’ 

1932 में गांधी जी के चलाए मदिरापान के विरुद्ध अभियान के दौरान लाहौर में एक दिन मेरी माता शांति देवी जी भी मुझे गोद में उठाए उनके आंदोलन में भाग लेने पहुंच गईं और उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। पूज्य माता जी आठ महीने जेल में रहीं और मैं भी उनके साथ ही जेल में रहा। देश में पूर्ण शराबबंदी का गांधी जी का सपना आज तक अधूरा है तथा शराबबंदी लागू करने की बजाय स्वयं सरकारें ही शराबनोशी को बढ़ावा दे रही हैं। इसीलिए राष्ट्रीय राजमार्गों के निकट शराबबंदी के सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बावजूद अनेक राज्य सरकारों ने इन्हें ‘राज्य राजमार्गों’ में बदलने की प्रक्रिया शुरू कर दी है ताकि शराब के ठेकेदारों व होटल वालों को शराब की बिक्री बंद होने के कारण पहुंचने वाली क्षति से बचाया जा सके। 

इस बारे पंजाब सहित कुछ राज्य सरकारों पर शराब लॉबी की मदद करने के आरोप लगाए जा रहे हैं तो दूसरी ओर सरकार की टालू नीति के विरुद्ध महिलाएं उठ खड़ी हुई हैं और उनके नेतृत्व में शराबबंदी समर्थक समूहों द्वारा एक सप्ताह से प्रदर्शन और धरने आदि जारी हैं :

तमिलनाडु में राजधानी चेन्नई के निकट प्रदर्शन के दौरान एक पुलिस कर्मचारी पर हमला। मध्य प्रदेश के सागर में एक ठेकेदार द्वारा ठेका हटाने से इंकार करने पर उग्र भीड़ ने उसकी दुकान को तहस-नहस कर दिया। भोपाल, सतना, इंदौर, विदिशा आदि में भी शराब विरोधी उग्र प्रदर्शन। राजस्थान में बाड़मेर, कोटा, भरतपुर और सीकर आदि में दूध पीते बच्चों को गोद में उठाए महिलाओं के समूह प्रदर्शन कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के बरेली, शाहजहांपुर, मेरठ, गोरखपुर, मुरादाबाद आदि में उग्र भीड़ ने राष्ट्रीय राजमार्गों पर ट्रैफिक जाम करने के अलावा ठेकों के बाहर देवी-देवताओं की मूर्तियां लगाकर वहां मंत्रोच्चार व भजन गायन शुरू किया हुआ है। 

उत्तराखंड के चम्पावत, रुद्रप्रयाग आदि में कुल्हाडिय़ों, लाठी-डंडों और पत्थरों से लैस महिलाओं ने जगह-जगह प्रदर्शन किए। रुद्रप्रयाग में एक दुकान पर धावा बोल कर सारी शराब ‘मंदाकिनी’ नदी में बहा दी गई। हरियाणा में पंचकूला, पिंजौर, पानीपत की बत्तरा कालोनी में महिलाओं ने ठेके के अंदर रखी शराब की पेटियां बाहर निकाल कर फैंक दीं। पंजाब में भी फगवाड़ा, मुकेरियां आदि में शराब विरोधी प्रदर्शन किए गए। मुकेरियां के गांव बिशनपुर में नए खोले शराब के ठेके का गांव वासियों द्वारा विरोध करने पर ठेके के कर्मचारी भाग खड़े हुए। 

मानसा जिले में दरियापुर की पंचायत ने न सिर्फ गांव से शराब का ठेका उठवा दिया बल्कि शराब का ठेका खोलने के लिए जमीन देने वाले किसी भी व्यक्ति पर 1 लाख रुपए जुर्माना लगाने की घोषणा भी कर दी है। शराब के दुष्प्रभावों के चलते ही गांधी जी ने कहा था कि ‘‘देश में शराबबंदी लागू नहीं हुई तो हमारी स्वतंत्रता भी गुलामी बन कर रह जाएगी।’’ लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के अनुसार, ‘‘शराब पीने और पिलाने वाली सरकार का बहिष्कार करना चाहिए।’’ 

प्राय: शराब के पक्ष में सरकारें इससे होने वाली राजस्व की आय का तर्क देती हैं पर यह कमी आय के दूसरे साधन बढ़ा कर आसानी से पूरी की जा सकती है। तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री अन्नादुरई के अनुसार, ‘‘शराब से आय की बात बेमानी है। लाखों बहनों का रोना, बच्चों का बिलखना, परिवारों में क्लेश व अपराधों की भरमार देख कर मैं शराब बेचने की इजाजत नहीं दे सकता।’’
आंध्र के पूर्व राज्यपाल के.सी. पंत ने कहा था कि ‘‘आय तो वेश्यावृत्ति के अड्डों चलाने से भी हो सकती है तो क्या सरकार आय बढ़ाने के लिए वेश्यावृत्ति के अड्डों खुलवाएगी?’’ 

स्पष्टत: शराब की बिक्री से सरकार को होने वाले एकमात्र राजस्व के लाभ की तुलना में इससे होने वाली हानि कहीं अधिक है। अत: जनहित और बहुसंख्यक जनता की भावनाओं को देखते हुए सरकार को देश भर में शराबबंदी लागू करनी ही चाहिए।  —विजय कुमार 

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