‘विधवा पुनर्विवाह’‘अंधकार में प्रकाश की किरण’

punjabkesari.in Wednesday, Jan 25, 2023 - 04:46 AM (IST)

राजा राम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर तथा स्वामी दयानंद आदि समाज सुधारकों ने सती प्रथा और बाल विवाह उन्मूलन तथा विधवा पुर्नविवाह को स्वीकृति दिलाने के लिए कानून भी बनवाए परंतु अभी तक विधवा पुनर्विवाह को समाज में आशा के अनुरूप स्वीकृति नहीं मिल पाई। आज भी पति की अकाल मृत्यु की शिकार महिलाओं को अत्यंत कठिन जीवन बिताना पड़ता है। एकमात्र तसल्ली की बात यही है कि अब कुछ परिवार इस दिशा में आगे आ कर अपनी विधवा बहुओं का पुनर्विवाह करके नया जीवन शुरू करने के लिए उन्हें अपनी बेटी की तरह विदा कर रहे हैं : 

* 23 जनवरी, 2022 को राजस्थान के ढांढण गांव में एक महिला ने अपनी विधवा बहू की अपनी बेटी की तरह धूमधाम से शादी की। शादी के 6 महीने बाद ही विदेश में डाक्टरी की पढ़ाई कर रहे उनके बेटे का ब्रेन स्ट्रोक से देहांत हो गया था। 

* 25 जून, 2022 को उत्तराखंड में ऋषिकेश के खैरीखुर्द गांव के निवासी दम्पति ने मात्र 25 वर्ष की उम्र में विधवा हुई बहू को बेटी की तरह रखा और नई जिंदगी शुरू करने का हौसला देने के साथ ही उसके लिए योग्य वर तलाश करने के बाद सादगीपूर्वक उसका विवाह सम्पन्न करवा कर उसे बेटी बनाकर विदा किया। इससे पूर्व 2020 में भी ऋषिकेश निवासी दम्पति ने अपनी विधवा बहू का पुनर्विवाह करवाया और विवाह की इस रस्म में बहू के भाई का कत्र्तव्य दम्पति के छोटे बेटे ने निभाया। 

* 27 नवम्बर, 2022 को मध्यप्रदेश में खंडवा जिले में खरगौन निवासी रामचंद्र राठौर और गायत्री राठौर ने एक पात्र विधुर युवक ढूंढ अपनी विधवा बहू मोनिका का पुर्नविवाह करवा कर उसे बेटी की तरह विदा किया। मोनिका के ससुर से पिता बने रामचंद्र राठौर के अनुसार, ‘‘अब मोनिका इस घर में बहू की तरह नहीं, बेटी की तरह आएगी।’’

* 5 दिसम्बर, 2022 को उत्तर प्रदेश में सहारनपुर के गांव ‘सावंत खेड़ी’ के व्यक्ति ने अपनी विधवा बहू के लिए एक उपयुक्त वर ढूंढ कर उसका विवाह सम्पन्न करवाया और कन्यादान भी उन्होंने और उनकी पत्नी ने ही किया। उन्होंने पुत्रवधू के पुर्नविवाह में लग्जरी कार और 1.51 लाख रुपए सहित काफी दहेज भी दिया। 

* 14 दिसम्बर, 2022 को मुरैना जिले के अम्बाह में बी.एस.एफ. के रिटायर्ड इंस्पैक्टर प्रमोद सिंह ने अपनी विधवा बहू की शादी अपने छोटे भाई के बेटे के साथ करके एक मिसाल पैदा की। 
उनके अनुसार, ‘‘हमारी बहू हमारे लिए बेटी जैसी ही है। उसके भी पिता और भाई नहीं हैं। मैं और मेरी पत्नी भी बुजुर्ग हो गए हैं, चिंता होती थी कि हमारे जाने के बाद बहू का क्या होगा? हम नहीं चाहते थे कि वह अपना जीवन अकेले गुजारे।’’ 

* और अब महाराष्ट्र के कोल्हापुर में ‘युवराज शेले’ नामक एक युवक ने अपनी विधवा मां की दूसरी शादी करवा कर मिसाल पेश की है। उसके पिता की मृत्यु 5 वर्ष पूर्व एक सड़क दुर्घटना में हो गई थी। 
‘शेले’ के अनुसार अपने पिता को खोना उसके लिए बड़ा सदमा था परन्तु उसके पिता की मौत का सर्वाधिक प्रभाव उसकी 45 वर्षीय विधवा मां पर पड़ा, जिसे अकेलेपन से जूझना पड़ा और वह उदास तथा परेशान रहने लगी।

उक्त सभी मामलों में सही अर्थों में प्रगतिशील विचारधारा के लोगों ने महिलाओं के साथ अन्याय करने वाली कई परम्पराओं को तोड़ा है और संदेश देने की कोशिश की है कि यदि पत्नी की मृत्यु के बाद पति का पुनर्विवाह हो सकता है तो एक महिला पर यही नियम क्यों नहीं लागू हो सकता। वास्तव में जीवन में हर किसी को एक साथी की आवश्यकता होती है। उम्र के एक पड़ाव के बाद यह और भी अधिक महसूस होने लगती है। महिलाओं के मामले में तो यह बात और भी अधिक लागू होती है। अत: विधवा पुनर्विवाह  से बढ़कर तो पुण्य का कोई और काम हो ही नहीं सकता। इसलिए इसे जितना बढ़ावा दिया जाए उतना ही अच्छा होगा।—विजय कुमार 


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