महंगे जासूसी साफ्टवेयर के लिए रकम किसने दी

punjabkesari.in Monday, Nov 04, 2019 - 12:05 AM (IST)

राजनीति में जासूसी कोई नई बात नहीं है लेकिन ऐसा करते हुए पकड़े जाने वाला राजनीति में अनाड़ी समझा जाता है। ऐसे में परतें धीरे-धीरे खुलती हैं। पहले सरल लगने वाली ऐसी खबरों के अंतत: गहरे परिणाम सामने आते हैं। परंतु आनलाइन या इलैक्ट्रानिक जासूसी या जानकारी लीक होने से जहां जनता की निजता या सुरक्षा पर बन सकती है वहीं नागरिकों की निजी जानकारी का उपयोग करते हुए पकड़े जाना किसी भी सरकार या कम्पनी को कठिनाई में डाल देता है। 

इससे न केवल नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने वाले विभिन्न निजी कानूनों का उल्लंघन होता है, जासूसी से व्यक्ति को शारीरिक, वित्तीय तथा भावनात्मक हानि पहुंचने का खतरा भी बना रहता है। 2018 की शुरूआत में घटित प्रमुख राजनीतिक विवाद ‘फेसबुक-कैम्ब्रिज एनालिटिका डाटा स्कैंडल’ पर नजर डालें तो पता चलता है कि ‘कैम्ब्रिज एनालिटिका’ ने स्वीकृति के बगैर ही लाखों लोगों की जानकारी हासिल करके उसका उपयोग राजनीतिक विज्ञापनों के लिए किया था। परंतु लोगों को इस बाबत समझ देने वाली यह एक महत्वपूर्ण घटना थी कि सरकारें किस तरह उनकी निजी जानकारी का दुरुपयोग कर सकती हैं। 

मंगलवार को व्हाट्सएप ने इसराईली तकनीकी फर्म एन.एस.ओ. ग्रुप पर पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकत्र्ताओं तथा अन्यों की जासूसी करने के लिए फेसबुक के स्वामित्व वाले इस मैसेजिंग एप का उपयोग करने का आरोप लगाते हुए केस कर दिया। कैलीफोर्निया में दायर केस में कहा गया है कि एन.एस.ओ. ग्रुप ने 1400 लोगों को जासूसी करने वाले अपने सॉफ्टवेयर या मालवेयर ‘पैगेसिस’ से निशाना बनाते हुए उनके फोन कॉल्स को सुनने, उनकी लोकेशन जानने से लेकर उनके घरों तथा दफ्तरों में क्या हो रहा है जानने के लिए उनके फोन्स के कैमरों का भी उपयोग किया। यह वही सॉफ्टवेयर है जिसका उपयोग सऊदी सरकार ने अमेरिकी नागरिक बन चुके अपने पत्रकार खाशोगी की हत्या में किया था। 

अपने बचाव में इसराईली फर्म एन.एस.ओ. का कहना है कि वह इस सॉफ्टवेयर को सुरक्षा खतरों से निपटने के लिए केवल सरकारों को बेचती है। 2010 में तीन दोस्तों द्वारा स्थापित इस कम्पनी ने अपने 10 सालों के दौरान इस सॉफ्टवेयर को मैक्सिको तथा सऊदी अरब जैसे देशों को बेचा है। इसके ऑप्रेटर अमेरिका, मैक्सिको, भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, ब्राजील, हांगकांग, यू.ए.ई., बहरीन तथा मोजाम्बीक सहित 40 देशों में हैं। 

भारत सरकार ने व्हाट्सएप से पूछा है कि उसने क्यों लीक के बारे में उसे पहले जानकारी नहीं दी। इसके जवाब में व्हाट्सएप ने बताया कि मई और सितम्बर में उन्होंने इलैक्ट्रानिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को 121 लोगों पर सर्वेलांस के बारे में बताया था। सरकार के लिए यह प्रश्न भी उठता है कि आखिर हमारे देश में चुनिंदा लोगों के फोन को हैक करने के लिए इतना महंगा सॉफ्टवेयर सरकार नहीं तो और कौन खरीद सकता है। 

2015 में घाना कम्युनिकेशन अथॉरिटी तथा एन.एस.ओ. के बीच हुए कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार एक स्थानीय रीसैलर ने इस सॉफ्टवेयर के लिए 8 मिलियन डॉलर लिए थे। इसी प्रकार मैक्सिकन फैडरल एजैंसी ने 2011 से 2017 के बीच एन.एन.ओ. से इसे 80 मिलियन डॉलर में खरीदा था। पैसों के लेन-देन का पीछा करते हुए उस एजैंसी, कम्पनी या विभाग का पता लगाया जा सकता है जिसने भारत में वकीलों, पत्रकारों, कार्यकत्र्ताओं की जासूसी करने के लिए इस सॉफ्टवेयर के लिए भारी-भरकम राशि अदा की होगी। 


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