आयुध भंडारों में अग्निकांडों का सिलसिला कब रुकेगा

punjabkesari.in Monday, Mar 27, 2017 - 10:06 PM (IST)

गोला-बारूद का सही हालत में होना किसी भी देश की प्रतिरक्षा के लिए जितना आवश्यक है, उतना ही जरूरी इस गोला-बारूद का सुरक्षित और निरापद ढंग से भंडारण करना भी है ताकि किसी भी चूक से कोई अप्रिय घटना न घट जाए। भारतीय सेना का कालातीत हो चुका अर्थात पुराना पड़ चुका गोला-बारूद, जिसे योजनाबद्ध ढंग से नष्ट करना वांछित है, आयुध भंडारों में ही पड़ा है और विभिन्न दुर्घटनाओं का कारण बन रहा है। 

हालांकि संयुक्त राष्ट्र ने विभिन्न प्रकार के गोला-बारूद को सुरक्षित रखने के मापदंड निर्धारित कर रखे हैं और 1970 से ही भारत में विभिन्न समितियों द्वारा इसे सुरक्षित रखने संबंधी सिफारिशें की जाती रही हैं, फिर भी हमारे आयुध भंडारों में अक्सर अग्निकांड एवं विस्फोट होते ही रहते हैं। 

मात्र पिछले तीन सालों में ही देश के आयुध भंडारों में लगभग दो दर्जन अग्निकांड हो चुके हैं जिनमें हजारों करोड़ रुपए का गोला-बारूद नष्ट होने के अलावा अनेक मूल्यवान प्राण भी चले गए। अभी गत वर्ष ही 31 मई को महाराष्ट्र में पुलगांव स्थित आयुध भंडार के दर्जनों शैडों में से एक शैड में हुए भीषण विस्फोट से 130 टन गोला-बारूद जल कर नष्ट हो गया तथा 19 अनमोल जानें भी चली गईं। 

अब 25 मार्च शाम को मध्य प्रदेश में जबलपुर के निकट ‘आर्डनैंस फैक्टरी खमरिया’ (ओ.एफ.के.) में पड़े लगभग 20 वर्ष पुराने 106 एम.एम. की रिकायल लैस बंदूकों (आर.सी.एल.) के परित्यक्त गोला-बारूद के ढेर में आग लगने से अचानक एक के बाद एक लगातार हुए लगभग 20-25 धमाकों से आसपास का 4 किलोमीटर इलाका दहल गया और इमारत भी जल कर राख हो गई। धमाकों से आसपास के कई मकानों की दीवारें तक हिल गईं। 

इस कारण लगी भारी आग को बुझाने के लिए, जिसकी लपटें काफी दूर से नजर आ रही थीं, दिल्ली से सेना की 3 टीमें पहुंचीं और 50 अग्निशमन वाहनों की सहायता से कई घंटे के संघर्ष के बाद इसे बुझाया जा सका। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार ये धमाके उस समय शुरू हुए जब ‘एफ. 3’ सैक्शन में बमों की भराई की जा रही थी। ‘ओ.एफ.के.’ के जनरल मैनेजर श्री ए.के. अग्रवाल का कहना है कि ‘‘विस्फोट संभवत: 40 डिग्री सैल्सियस तक पहुंचे तापमान के चलते भीषण गर्मी के कारण गोला-बारूद में आग लगने से हुए होंगे परंतु इसके वास्तविक कारणों का पता तो घटना की विस्तृत जांच के बाद ही चलेगा।’’ 

उल्लेखनीय है कि 1942 में स्थापित इस आयुध फैक्टरी में मध्यम और उच्च क्षमता के गोला-बारूद की सामग्री, खोल आदि का निर्माण किया जाता है। यहां दरम्यानी और उच्च क्षमता वाले  छोटे हथियारों और गोला-बारूद की भराई आदि का काम भी किया जाता है। यहां इससे पहले 2002 और फिर 2015 में भी विस्फोट और अग्निकांड हो चुके हैं, जिनके परिणामस्वरूप भारी तबाही होने के अलावा अनेक लोग घायल भी हुए थे। 

समय-समय पर भारतीय आयुध भंडारों और कारखानों में होने वाले विस्फोटों और अग्निकांडों के परिणामस्वरूप एक बार फिर उक्त घटना ने सेना के गोला-बारूद की प्रबंधन प्रणाली को पूरी तरह ओवरहाल करने की आवश्यकता की ओर अधिकारियों का ध्यान दिलाया है। कुछ वर्ष पूर्व सेना के एक दल ने यह जानने के लिए यूरोप का दौरा किया था कि ‘नाटो’ देश अपना गोला-बारूद किस प्रकार सुरक्षित रखते हैं। इस दल ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि‘‘अधिकांश देशों ने अपने गोला-बारूद के लिए विशेष रूप से भूमिगत ‘इगलू’ (बर्फ से निर्मित विशेष प्रकार के घर) बना रखे हैं।’’ 

भारतीय सेना गोला-बारूद और हथियारों की कमी से जूझ रही है। अत: अब समय आ गया है कि हम गोला-बारूद सुरक्षित रखने की विकसित देशों की सर्वश्रेष्ठï तकनीकों का गहराई से अध्ययन करके ऐसे उपाय करें जिनसे भविष्य में ऐसी घटनाओं से प्राणहानि तथा राष्ट्र की इस मूल्यवान सम्पदा और सार्वजनिक राजस्व की क्षति न हो। —विजय कुमार 


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