आखिर कब होंगे चुनाव प्रणाली में सुधार

Monday, Dec 03, 2018 - 03:42 AM (IST)

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अगले मुख्य चुनाव आयुक्त (सी.ई.सी.) के रूप में श्री सुनील अरोड़ा की नियुक्ति को स्वीकृति दे दी है जिन्होंने 2 दिसम्बर को कार्यभार संभाल लिया और उन्हीं के मार्गदर्शन में 7 दिसम्बर को राजस्थान और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव सम्पन्न होंगे।

इस बीच निवर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त श्री ओम प्रकाश रावत ने एक साक्षात्कार में अपने कार्यकाल के दौरान अनुभवों की चर्चा करते हुए कहा है कि सी.ई.सी. के सामने सबसे बड़ी चुनौती देश में वर्ष भर ‘बैक-टू- बैक’ चुनाव करवाने की रही है और यह समस्या लगभग सुलझा ली गई है। 

उन्होंने कहा कि उन्होंने त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड के चुनावों के दरम्यान अपना कार्यभार संभाला और अत्यंत संवेदनशील होने के बावजूद ये चुनाव बहुत अच्छी तरह सम्पन्न हुए। त्रिपुरा में एक बड़ा मुद्दा एक राजनीतिक दल द्वारा इलैक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनों (ई.वी.एम्स) के संबंध में संदेह था। वे समझते थे कि पिछले 5 चुनावों के दौरान इन्हीं मशीनों के इस्तेमाल के कारण माक्र्सवादी पार्टी को बहुमत मिला, लिहाजा इन्हें बदलना चाहिए। श्री रावत के अनुसार आयोग ने इस मांग को रद्द कर दिया। वोटिंग मशीनें मेघालय तथा नागालैंड में तो बदली गईं लेकिन त्रिपुरा में नहीं और जब चुनाव परिणाम आए तब उन्होंने भी मान लिया कि समस्या ई.वी.एम्स के साथ नहीं है क्योंकि इस बार वे चुनाव जीत गए थे। 

श्री रावत के अनुसार इस समय सोशल मीडिया, चुनावों में धन के दुरुपयोग एवं अन्य मुद्दों ने चुनावों को ग्रस्त कर रखा है जिस समय चुनाव संबंधी कानून बनाए गए थे उस समय इस तरह के मुद्दे मौजूद नहीं थे। जन प्रतिनिधित्व कानून में सिर्फ टैलीविजन व सिनेमा की बात कही गई है। अब टैलीविजन और सिनेमा लोगों के मोबाइल पर हैं। इसके साथ ही मोबाइल पर सोशल मीडिया प्लेटफार्म भी है। इसीलिए दूसरा महत्वपूर्ण सुधार सोशल मीडिया सहित मीडिया को लेकर है। ‘फेक न्यूज’ बड़े स्तर पर मतदाताओं के ‘मतदान व्यवहार’ (वोटिंग बिहेवियर) को प्रभावित करती हैं और इस समय इस बारे एकमात्र उपलब्ध नियमावली धारा-126 तथा चुनाव आयोग द्वारा पेड न्यूज बारे निर्देश ही हैं। 

रावत का ‘पेड/ फेक न्यूज’ के बारे में कहना है कि यह मामला न्यायालय में विचाराधीन होने के कारण वह इस संबंध में कुछ नहीं कहेंगे। श्री रावत के अनुसार हमें सोशल मीडिया मंचों के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए एक कठोर नियमावली बनानी होगी जिस पर हम काम कर रहे हैं। इस संबंध में हमने पहले ही गूगल और व्हाट्सएप जैसे संगठनों से संपर्क किया है। चुनाव आयोग उन सब विचार-विनिमयों पर विचार करेगा। श्री रावत ने कहा कि वह इसका पुनरीक्षण करवा कर इसे भावी आवश्यकताओं के अनुरूप करना चाहते थे। इसके लिए चुनाव आयोग ने एक समिति गठित की थी जिसने अपनी सिफारिशें आयोग को पेश कर दी हैं। 

श्री रावत के अनुसार यह एक चुनावी वर्ष होने के कारण हम इन सिफारिशों पर विचार करने के लिए समय नहीं निकाल सके और न ही कानून मंत्रालय में पेश करने के लिए अपने सुझावों को अंतिम रूप दे सके तथा संभवत: नए मुख्य चुनाव आयुक्त को भी लोकसभा के चुनावों के कारण इनके लिए समय नहीं मिल पाएगा। चुनाव आयोग ने चुनाव सुधारों के लिए सरकार को अनेक पग उठाने का सुझाव दिया है। एक महत्वपूर्ण सुधार चुनावों में धन के इस्तेमाल के संबंध में है। यदि राजनीतिक दलों द्वारा खर्च की सीमा तय कर दी जाए तो इससे व्यय एवं चुनाव अभियान में व्यय संबंधी नियमों में सुधार होगा और एक समान खर्च की व्यवस्था होने के कारण यह अधिक पारदर्शी हो जाएगा। 

केवल सत्तारूढ़ दल ही मिलने वाले धन का अधिकांश हिस्सा हासिल करता जा रहा है...90 प्रतिशत के आसपास। अत: चुनाव अभियान पर किया जाने वाला खर्च पारदर्शी माध्यमों से उपलब्ध करवाया जाना चाहिए। राजनीतिक दलों को विदेशों से मिलने वाले चंदे तथा चुनाव अभियान पर किए जाने वाले खर्च को पारदर्शी बनाने की जरूरत है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि श्री रावत के पास चुनाव प्रणाली में सुधार करने का समय नहीं था तो नए मुख्य चुनाव आयुक्त श्री अरोड़ा के पास कैसे होगा और यदि चुनाव संबंधी यह समस्या 2019 के चुनाव से पहले नहीं सुधारी गई, जबकि इसके सुधार की सबसे अधिक आवश्यकता अब है, तो क्या पांच साल और इंतजार करना होगा।

Pardeep

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