कब दूर होगी सेना में हथियारों की कमी
punjabkesari.in Monday, Sep 03, 2018 - 01:59 AM (IST)
मार्च में संसद की स्थायी समिति ने देश की सुरक्षा की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सम्भालने वाली सेना की क्षमता को लेकर बेहद चिंताजनक खुलासे किए थे। इसमें कहा गया था कि भारतीय सेना के पास दो-तिहाई से अधिक यानी 68 प्रतिशत हथियार और उपकरण पुराने हैं और केवल 8 प्रतिशत ही अत्याधुनिक हैं।
हालत यह है कि सेना के पास जरूरत पडऩे पर हथियारों की आपात खरीद और 10 दिन के भीषण युद्ध के लिए जरूरी हथियार तथा साजो-सामान तथा आधुनिकीकरण की 125 योजनाओं के लिए भी पर्याप्त पैसा नहीं है। दो मोर्चों पर एक साथ युद्ध की तैयारी के नजरिए से भी सेना के पास हथियारों की कमी है और उसके ज्यादातर हथियार पुराने हैं। इतना ही नहीं, रक्षा मंत्रालय से संबद्ध संसद की स्थायी समिति का मानना था कि रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए शुरू की गई मेक इन इंडिया योजना के अंतर्गत सेना की 25 परियोजनाएं भी धन की कमी के कारण ठंडे बस्ते में जा सकती हैं।
गत वर्ष दिसम्बर में भाजपा सांसद मेजर जनरल बी.सी. खंडूरी (सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाली एक संसदीय समिति ने कहा था कि राइफलों की कमी सेना के लिए चिंता का सबब रही है परंतु रक्षा मंत्रालय की ओर से राइफलों की खरीदारी के लिए निविदाओं में होने वाले नित नए बदलावों से साफ है कि वह सेना के लिए जरूरी हथियारों की कमी को जल्द से जल्द दूर करने के प्रति जरा भी गम्भीर नहीं है।
देश की आंतरिक तथा बाहरी सुरक्षा के लिए पर्याप्त संख्या में अत्याधुनिक राइफलें सेना की पहली आवश्यकता हैं परंतु लगभग 3 दशक पुरानी इन्सास राइफलों को बदलने के लिए करीब 11 साल पहले शुरू किए गए प्रयासों को अभी तक अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है। हाल ही में सेना ने साढ़े 6 लाख नई असॉल्ट राइफलें खरीदने के लिए नई निविदा जारी की है परंतु राइफलों के लिए जरूरी मापदंडों में एक बार फिर महत्वपूर्ण बदलाव कर दिए गए। 2011 से अब तक यह चौथा तथा गत 18 महीने में दूसरा बदलाव है।
सेना को अब 7.62&39 मि.मी. गोली दागने वाली राइफलें चाहिएं जो जनवरी 2017 में रक्षा मंत्रालय द्वारा लिए गए एक निर्णय के विपरीत है जब उसने ‘ऑप्रेशनल जरूरतों’ में बदलाव का हवाला देते हुए 7.62&51 मि.मी. राइफलें खरीदने को मंजूरी दी थी। विदेशी स्रोतों से 72,400 ऐसी राइफलें खरीदने के लिए फिलहाल खरीद प्रक्रिया चालू है जिसके अंतर्गत विशेषज्ञों की एक टीम नई राइफलों की जांच करके रिपोर्ट तैयार कर रही है। हालिया बदलावों का अर्थ होगा कि राइफलों की फायरिंग रेंज और बैरल उन 72,400 राइफलों से अलग होंगे जिन्हें सेना पहले ही खरीद रही है। सेना फिलहाल तीन दशक पुराने डिजाइन की जिन इन्सास राइफलों का उपयोग करती है वे 5.6&46 मि.मी. की गोली दागने में सक्षम हैं।
फरवरी में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में डिफैंस एक्वीजिशन काऊंसिल ने विदेश से 72,400 असॉल्ट राइफलों की खरीद को स्वीकृति दी थी और रक्षा मंत्रालय ने अलग से भारतीय रक्षा उपकरण निर्माताओं को उस वक्त तय किए गए मापदंडों के तहत 7.62&51 मि.मी. की गोली दागने में सक्षम साढ़े 5 लाख राइफलों की आपूर्ति के लिए अपनी बोलियां भेजने के लिए आमंत्रित किया था। अब नए मापदंडों के साथ नए सिरे से निविदा जारी करने का अर्थ है कि उक्त निविदा को वापस ले लिया गया है।
गौरतलब है कि 2007 में भारतीय सेना ने 3 दशक पुरानी इन्सास राइफलों को नई आत्याधुनिक राइफलों से बदलने का फैसला लिया था परंतु इस संबंध में पहली निविदा 2011 में जारी हो सकी थी जब दोहरे कैलिबर वाली राइफलों की आपूर्ति की मांग रखी गई थी जो 7.62&39 मि.मी. तथा 5.56&45 मि.मी. की दो प्रकार की गोलियां दाग सके। हालांकि, इस निविदा को 2015 में वापस ले लिया गया। सेना को नई राइफलें दिलवाने का दूसरा प्रयास बेहतर गुणवत्ता वाली इन्सास 1सी राइफलें खरीदने के लिए किया गया लेकिन सेना द्वारा भारी 7.62&51 मि.मी. गोलियां दागने लायक राइफल का चयन करने के बाद इसे भी वापस ले लिया गया।
फिर जनवरी 2017 में राइफलों के मापदंडों में तीसरा बदलाव सामने आता है जब रक्षा मंत्रालय 7.62&51 मि.मी. राऊंड वाली 72,400 राइफलों की खरीद को मंजूरी दे देता है। अब हालिया निर्णय इसी चरण में चौथा बदलाव है। ऐसे में अभी भी स्पष्ट नहीं है कि सेना को अत्याधुनिक राइफलें कब तक नसीब हो सकेंगी।