सीमांत क्षेत्रों की कमजोर सड़कें ‘भारतीय प्रतिरक्षा के लिए खतरे की घंटी’

punjabkesari.in Thursday, Mar 16, 2017 - 10:46 PM (IST)

पाकिस्तान और चीन के बीच लम्बे समय से करीबी राजनीतिक और सैन्य संबंध हैं। पाकिस्तान से 43 साल के लिए ग्वादर बंदरगाह लीज पर लेने के अलावा चीन वहां 3218 कि.मी. लम्बा एक आॢथक गलियारा भी बना रहा है जिसमें रेल लाइन, सड़क सम्पर्क और तेल पाइपलाइन तीनों शामिल हैं। सैन्य क्षमता, प्रक्षेपास्त्रों, पनडुब्बियों, लड़ाकू विमानों और प्रतिरक्षा बजट आदि के मामले में चीन भारत से बहुत आगे है। इस बारे 2 वर्ष पूर्व मेजर जनरल बी.सी. खंडूरी की अध्यक्षता में स्थायी संसदीय प्रतिरक्षा समिति ने कहा था : 

‘‘आपात स्थिति में चीनी सेना मात्र 2-3 घंटों के समय में ही सीमा पर तावांग पहुंच सकती है जबकि भारतीय सेनाओं को वहां तक पहुंचने में 24 घंटे लग जाएंगे।’’ उक्त टिप्पणी इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तावांग शहर को असम के तेजपुर से जोडऩे वाली सड़क की हालत खस्ता होने के कारण मौजूदा हालत में आपात स्थिति में तीव्र गति से वहां भारी साज-सामान वाले वाहन तो एक ओर, सेनाएं भेजना भी मुश्किल है। 

केवल तावांग को तेजपुर से जोडऩे वाली सड़क की ही नहीं, चीन और पाकिस्तान सीमा से लगने वाली सामरिक महत्व की अन्य सड़कों की भी यही हालत है। जम्मू-कश्मीर में सेना और सुरक्षा बलों को सीमा के अंतिम छोर तक पहुंचाने के लिए आवश्यक निर्माणाधीन 7 महत्वपूर्ण सड़कों का निर्माण भी रुका पड़ा है। इसी संदर्भ में संसद में, हाल ही में, पेश किए गए ‘कम्पट्रोलर एंड ऑडीटर जनरल’ (कैग) ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में 73 सीमावर्ती सड़कों में से 61 सड़कों की गुणवत्ता पर प्रश्रचिन्ह लगाते हुए इनके निर्माण में कमजोर योजना, खराब कार्यान्वयन और वित्तीय अनियमितताओं का खुलासा करते हुए कहा: 

‘‘चीन से लगती सड़कें सैन्य वाहनों, तोपखाना, होवित्जर, बोफोर्स और मल्टीपल लांच रॉकेट सिस्टम पिनाका के चलने के लिहाज से कमजोर व ऐसे सामान का बोझ उठाने में सक्षम नहीं हैं तथा भविष्य में युद्ध होने पर ये कारगर सिद्ध नहीं होंगी।’’ कैग के अनुसार, ‘‘संवेदनशील क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा न होने या कमजोर होने के कारण सुरक्षा बलों की कार्यक्षमता कमजोर होती है। अत: चीन से लगने वाली 4,057 किलोमीटर लम्बी वास्तविक सीमा रेखा के निकट सामरिक महत्व की सड़कों के तुरंत निर्माण के लिए कार्रवाई करने की आवश्यकता है।’’ कैग ने यह भी कहा है कि ‘‘इस घपले की जिम्मेदारी तय करने के लिए ‘कोर्ट ऑफ इंक्वायरी’ भी की जानी चाहिए ताकि दोषी अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने के साथ-साथ सड़कों के निर्माण में तकनीकी खामियों का भी पता लगाया जा सके।’’ 

ये सड़कें बनाने का जिम्मा ‘सीमा सड़क संगठन’ के पास है। प्रतिरक्षा मंत्रालय ने 2 वर्ष पूर्व सामरिक महत्व की जो 73 सड़कें निर्माण के लिए चुनी थीं, उनके निर्माण के लिए स्वीकृत 4,644 करोड़ रुपए में से 4,536 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। इतनी बड़ी रकम खर्च करने के बावजूद अभी तक 707 किलोमीटर लम्बी 22 सड़कों का ही निर्माण किया जा सका है और इनमें से भी अनेक सड़कें इतनी त्रुटिपूर्ण हैं कि उन पर सैन्य सामान से लैस विशेष वाहन चल ही नहीं सकते। स्पष्टï है कि सीमांत क्षेत्रों में प्रतिरक्षा का भारी सामान लाने-ले जाने के महत्वपूर्ण काम में इस्तेमाल होने वाली सड़कों की जर्जर हालत ने भारत की प्रतिरोध क्षमता पर एक और प्रश्रचिन्ह लगा दिया है। 

अस्तित्व में आने के समय से ही कैग केंद्र और राज्य सरकारों पर पहरेदार का काम करता आ रहा है और वर्तमान मामले में भी सामरिक महत्व की सड़कों की दयनीय स्थिति और इनसे जुड़े जोखिम को उजागर करके इसने सराहनीय कार्य किया है। 

नि:संदेह भारत ने 1990 के अंतिम चरण में अपने रक्षा संसाधनों का विकास करने में तेजी लाकर बुनियादी ढांचे का कुछ विकास किया है परन्तु यह पर्याप्त नहीं है लिहाजा इस मामले में सीमावर्ती सड़कों तथा अन्य बुनियादी ढांचे को अविलम्ब मजबूत करने की आवश्यकता है ताकि किसी भी प्रकार की सैन्य कार्रवाई की नौबत आने पर भारतीय सेनाओं के मार्ग में सीमांत क्षेत्रों की सड़कें बाधा न बनें क्योंकि  हर लिहाज से सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों को मजबूत करना सामरिक और नीतिगत दृष्टिïकोण से अत्यंत आवश्यक है।                                                                                                                  —विजय कुमार


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