अमरीकी चुनाव नतीजों का ‘भारत-अमरीका संबंधों पर असर’

Monday, Nov 09, 2020 - 02:51 AM (IST)

अमरीका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने राष्ट्र के नाम अपने पहले संदेश में अपनी नीति के बारे में बात की है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं देश को तोडऩे नहीं जोडऩे वाला राष्ट्रपति बनूंगा। राष्ट्रपति के तौर पर मैं ब्लू या रैड स्टेट नहीं देखता मैं सिर्फ यूनाइटिड स्टेट्स आफ अमेरिका को देखता हूं। कठोर बयानबाजी को पीछे छोड़ कर एक-दूसरे को फिर से देखने, एक-दूसरे को फिर से सुनने का समय है।’’ 

3 नवम्बर को मतदान के बाद डोनाल्ड ट्रम्प (रिपब्लिकन) और जो बाइडेन (डैमोक्रेट) द्वारा जीत के दावों और जवाबी दावों तथा ट्रम्प द्वारा जो बाइडेन पर मतगणना में हेराफेरी के आरोपों के बीच 7 नवम्बर को देर से घोषित परिणामों में बाइडेन विजयी घोषित कर दिए गए और इस प्रकार दूसरी बार भी अमरीका का राष्ट्रपति बनने का ट्रम्प का सपना टूट गया। भारत में सभी लोगों का ध्यान इस बात पर टिका है कि जो बाइडेन के साथ भारत के रिश्ते कैसे होंगे क्योंकि अब परिदृश्य से डोनाल्ड ट्रम्प गायब हो चुके हैं। बेशक भारत-अमरीका के आपसी संबंधों के बारे में बहुत कुछ कहा गया है लेकिन यह बड़ी सच्चाई है कि दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र लगातार एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं। 

विश्लेषकों ने भारत तथा अमरीकी नेताओं के बीच व्यक्तिगत संबंधों पर बहुत अधिक जोर दिया है परंतु मुख्य नीति यह है कि अमरीकी-भारतीय संबंधों में प्रगति हुई है। अब जबकि जो बाइडेन अमरीका के राष्ट्रपति चुने जा चुके हैं तो लोगों के मन में यह प्रश्र है कि अब आगे क्या होगा? जो बाइडेन प्रशासन के अंतर्गत क्या बदल सकता है? बहुत ज्यादा नहीं। चाहे वाजपेयी और किं्लटन के दौर की बात करें या फिर बराक ओबामा तथा मनमोहन सिंह के दौर की बात करें तो यह बात सामने आती है कि भारत-अमरीका में द्विपक्षीय समझौतों के साथ विदेशी नीति के मुद्दों पर सहमति हुई थी। 

‘‘हालांकि 2015 में ओबामा (डैमोक्रेट) ने भी भारत यात्रा के दौरान हिन्दू बहुलता की आलोचना की थी। इसके बावजूद दोनों देशों के बीच संबंध काफी मजबूत हैं। अंतत: चीन के खिलाफ अपने सख्त रुख को लेकर अमरीका और भारत एक-दूसरे का साथ देंगे।’’ट्रम्प के साथ मोदी की कथित दोस्ती के बारे में जोरदार प्रचार के बीच यह बात याद रखनी चाहिए कि मीडिया ने अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ मोदी के संबंधों के बारे में भी ऐसी ही बातें कही थीं। दूसरे शब्दों में मोदी ने दिखाया है कि वह रिपब्लिकन और डैमोक्रेटिक दोनों नेताओं के साथ संबंध बना सकते हैं। 

यानी नेताओं के बीच आपसी व्यक्तिगत संबंधों पर जरूरत से अधिक जोर दिया जाता है जबकि व्यापक रुझान यही है कि गत दो दशकों के दौरान रक्षा तथा खुफिया तालमेल, व्यापार से लेकर लोगों के बीच संबंधों तक अमरीकी-भारतीय संबंध प्रगति पर हैं फिर चाहे सत्ता में किसी भी विचारधारा के नेता रहे हों। भारत उन कुछ विदेश नीति मुद्दों में से एक है जिन पर अमरीका के दोनों दल सहमत नजर आते हैं। हालांकि, जरूरी नहीं है कि बाइडेन के तहत सब कुछ निर्बाध तरीके से ही आगे बढ़ेगा। साल्वातोर बाबोन्स अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ‘फॉरेन पॉलिसी’ में लिखते हैं, ‘‘भारत को इस बात से सावधान रहना चाहिए कि उपराष्ट्रपति के रूप में कमला हैरिस मानवाधिकारों को लेकर कैसे भारत पर सख्त हो सकती हैं।’’ 

भारत के अलावा भी बाइडेन के नेतृत्व में अन्य दक्षिण एशियाई देशों को लेकर अमरीकी नीतियों के संबंध में बहुत बदलाव नहीं होगा। जैसा कि ‘अली लतीफी’ ने गत सप्ताह ‘फॉरेन पॉलिसी’ में लिखा था, ‘‘अफगान जानते हैं कि उनके लिए फैसला पहले ही हो चुका है-बाइडेन के भी अमरीकी सैनिकों की वापसी जारी रखने की सम्भावना है जिसमें ट्रम्प के कार्यकाल के दौरान तेजी आई थी। पाकिस्तान और बंगलादेश के बारे में क्या? दोनों देश दुनिया के सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाले शीर्ष 5 देशों में शामिल हैं और इसी कारण वे ट्रम्प से निपटने की समस्या से बच निकले हैं। कोई संदेह नहीं कि पाकिस्तान को याद होगा कि बाइडेन ने 2008 में उसे सैन्य सहायता के रूप में 1.5 बिलियन डॉलर की मदद हासिल करने में मदद की थी-ऐसी मदद जिसके लिए उन्हें पाकिस्तान के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘हिलाल-ए-पाकिस्तान’ से सम्मानित किया गया। 

अगर बात करें अमरीकी चुनाव में भारतीय अमरीकियों की तो कमला हैरिस देश की पहली महिला उपराष्ट्रपति, पहली अश्वेत उपराष्ट्रपति और भारतीय मूल की पहली उपराष्ट्रपति बन गई हैं। यह भारतीय अमरीकी समुदाय के लिए एक बहुत बड़ा मील का पत्थर है जो अमरीका की आबादी का 1 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है। कमला हैरिस भारत में मानवाधिकार को अच्छी तरह से लागू करने की बात कर सकती हैं। कई अन्य भारतीय अमरीकियों ने भी सदन की सीटों पर कब्जा करने में सफलता पाई है। डैमोक्रेट प्रॉमिला जयपाल, अमी बेरा, राजा कृष्णामूर्ति और रो खन्ना दूसरे कार्यकाल के लिए सदन में लौटेंगे लेकिन कई अन्य उम्मीदवार असफल भी रहे जिनमें टैक्सास से प्रेस्टन कुलकर्णी और मेन से चुनाव लड़ रहे ‘सारा गिडियोन’ शामिल हैं। भारतीय अमरीकियों ने इस चुनाव में बड़ी भूमिका निभाई है। चुनावों को लेकर विस्तार से आंकड़े सामने आने के बाद हम जान पाएंगे कि उनका समर्थन किसे मिला। 

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